अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 4
ऋषिः - विश्वामित्रः
देवता - मधुलौषधिः
छन्दः - पुरस्ताद्बृहती
सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
46
चत॑स्रश्च मे चत्वारिं॒शच्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठचत॑स्र: । च॒ । मे॒ । च॒त्वा॒रिं॒शत् । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
चतस्रश्च मे चत्वारिंशच्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥
स्वर रहित पद पाठचतस्र: । च । मे । चत्वारिंशत् । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विघ्नों के हटाने का उपदेश।
पदार्थ
(मे) मेरे लिये (चतस्रः) चार (च च) और (मे) मेरे लिये (चत्वारिंशत्) चालीस... म० १ ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥
टिप्पणी
१−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥
विषय
तेतीस से एकसौ दस तक
पदार्थ
मेरे जीवन के चवालीस वर्ष मुझसे दोषों को पृथक् रखनेवाले हों। शेष पूर्ववत् ।
भावार्थ
जीवन में सदा ही दोषों के आजाने की सम्भावना बनी रहती है। मैं सदा वेदवाणी को अपनाते हुए दोषों को दूर रखने के लिए यत्नशील रहूँ।
भाषार्थ
(चतस्र: च) चार इन्द्रियों की चतुर्विध [चार प्रकार की] वृत्तियाँ, तथा १० आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की ४० इन्द्रियवृत्तियाँ, ये ४४ अपवक्तारः हैं। ये ४४ इन्द्रियवृत्तियाँ मन्त्र १ से ४ तक की मिश्रित वृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।
विषय
निन्दकों पर वश प्राप्त करने की साधना।
भावार्थ
(चतस्रः च मे चत्वारिंशत् च०) यदि ४० (चालीस) पुरुष मेरी निन्दा करने वाले हों तो मेरी चार गुणी वाणी मुझे आनन्द और बल दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-३, ६, १०, ११ अनुष्टुभः। ४ पुरस्ताद् बृहती। ५, ७, ८,९ भुरिजः। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Antidote of Pollution and Disease
Meaning
O Oshadhi, born of the truth and law of existence, observer of the laws of life, creator of honey sweets, let there be four or forty, any number of polluters, abusers and revilers of health and happiness, four, and even forty may be, create for us the honey sweets of life and joy in spite of them.
Translation
Four (females) of mine and forty of mine are averters of disaster, O herb. O born of right and preserver of right, being sweet yourself, may you create sweetness for me. (4-->40) .
Translation
Let this madhula herb used in performing yajna and full of juicy potentialities make use regain health if we are attacked by four diseases or forty.
Translation
O God, the Companion, and Embodiment of Truth, the Bestower of knowledge and sweetness, grant me knowledge and sweetness, though my revilers be four and forty!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥
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