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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 3
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - मधुलौषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
    53

    ति॒स्रश्च॑ मे त्रिं॒शच्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ति॒स्र: । च॒ । मे॒ । त्रिं॒शत् । च॒ । मे॒ । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तिस्रश्च मे त्रिंशच्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तिस्र: । च । मे । त्रिंशत् । च । मे । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विघ्नों के हटाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (मे) मेरे लिये (तिस्रः) तीन (च च) और (मे) मेरे लिये (त्रिंशत्) तीस... मं० १ ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १–० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥

    टिप्पणी

    १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

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    विषय

    तेतीस से एकसौ दस तक

    पदार्थ

    (मे) = मेरे (तिनः च) = तीन तथा (मे त्रिंशत् च) = मेरे तीस अर्थात शरीरस्थ मेरे तेतीस देव (अपवक्तार:) = सब दोषों को रोकनेवाले हों-सब दोषों को मुझसे दूरे करनेवाले हों। शेष पूर्ववत् ।

    भावार्थ

    जीवन में सदा ही दोषों के आजाने की सम्भावना बनी रहती है। मैं सदा वेदवाणी को अपनाते हुए दोषों को दूर रखने के लिए यत्नशील रहूँ।


     

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    भाषार्थ

    (तिस्र: च) तीन इन्द्रियों की त्रिविध [तीन प्रकार की] वृत्तियाँ, तथा आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की ३० इन्द्रियवृत्तियाँ ये ३३ अपवक्तारः हैं। ये ३३ इन्द्रियवृत्तियां मन्त्र १, २, ३ की मिश्रित वृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।

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    विषय

    निन्दकों पर वश प्राप्त करने की साधना।

    भावार्थ

    (तिस्रश्च मे त्रिंशत् च अपवक्तारः०) यदि तीस मेरी निन्दा करने वाले हों तो मेरी सत्य वाणी तीन गुणी होकर मुझे बल दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-३, ६, १०, ११ अनुष्टुभः। ४ पुरस्ताद् बृहती। ५, ७, ८,९ भुरिजः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Antidote of Pollution and Disease

    Meaning

    O Oshadhi, born of the truth and law of existence, observer of the laws of life, creator of the honey sweets of life, let there be three or thirty, any number of distractors, abusers, revilers or spoilers of health and happiness, three, and even thirty let them be, create for us the honey sweets of life and joy in spite of them.

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    Translation

    Three (females) of mine and thirty of mine are averters of disaster, O herb. O born of right and preserver of right, being sweet yourself, may you create sweetness for me. (3-->30)

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    Translation

    Let this Madhula herb used in performing yajna and full of juicy potentialities make us regain health if we are attacked by three diseases of thirty.

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    Translation

    O God, the Companion and Embodiment of Truth, the Bestower of knowledge and sweetness, grant me knowledge and sweetness, though my revilers be three and thirty!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥

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