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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 11
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - मधुलौषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
    66

    श॒तं च॑ मे स॒हस्रं॑ चापव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम् । च॒ । मे॒ । स॒हस्र॑म् । च॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवरि । मधु॑ ।मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒: ॥१५.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतं च मे सहस्रं चापवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम् । च । मे । सहस्रम् । च । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवरि । मधु ।मे । मधुला । कर: ॥१५.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विघ्नों के हटाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (मे) मेरे लिये (शतम्) सौ (च च) और (सहस्रम्) सहस्र (अपवक्तारः) निन्दक व्यवहार हैं, (ऋतजाते) हे सत्य में उत्पन्न हुई (ऋतावरी) हे सत्यशील, (ओषधे) हे तापनाशक शक्ति परमेश्वर ! (मधुला) ज्ञान वा मिठास देनेवाली तू (मे) मेरे लिये (मधु) ज्ञान वा मिठास (करः) कर ॥११॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान ॥११॥ इति तृतियोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    ११−शब्दार्थः प्रथममन्त्रेण समानः सुगमश्च ॥

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    विषय

    अपक्षय से दूर

    पदार्थ

    १. मे (शतम् च) = मेरे जीवन के सौ वर्ष (च) = तथा (सहस्त्रम्) = हजारों वर्ष भी (अपवक्तार:) = बुराइयों व अपयश को मुझसे दूर रखनेवाले हों। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    यहाँ सहल के साथ 'मे' जोड़ना बहुत महत्त्वपूर्ण है। हजारों वर्ष तक जीना सामान्यतया सम्भव नहीं, परन्तु हज़ारों वर्ष तक भी मैं अपयश से बचा रहे। मेरी अपकीर्ति न हो।

    विशेष

    जीवन को मधुर बनाता हुआ यह सबके प्रति मधुर वाणी बोलता हुआ सबका मित्र बनता है, अतः विश्वामित्र कहलाता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है।

     

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    भाषार्थ

    (शतं च) १०० इन्द्रियवृत्तियोँ अर्थात् शतबिध [१०० प्रकार की] वृत्तियाँ, (सहस्रम्) हजार होकर अपवक्तारः है। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र ११वें में इन्द्रियवृत्तियाँ है मनोवृत्तियाँ अर्थात् चित्तवृत्तियाँ। मन है ११वीं इन्द्रिय यह इन्द्रिय उभयात्मक है, ज्ञानेन्द्रियरूप तथा कर्मेन्द्रियरूप है। यथा "एकादशं मनो ज्ञेयमिन्द्रियमुभयात्मकम्" (मनु)। चित्त की वृत्तियाँ पञ्चविध है, "वृत्तयः पञ्चतयः" (योग १।५), यथा "प्रमाण- विपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः" (योग १।६)। परन्तु "क्लिष्टा: अक्लिष्टा:" (योग १।५) भेद से ये पांच वृत्तियाँ १० हो जाती हैं। मन्त्र क्रमानुसार उत्तरोत्तर दस-दस की वृद्धि द्वारा ये वृत्तियाँ ११० होनी चाहिएँ १०० + १० । परन्तु १०० और १० का जोड़ न कर, मन्त्र ११वे में १०० को १० से गुणित कर, सहस्र संख्या में 'अपवक्तार:' कहा है। मनोवृत्तियों अर्थात् चित्तवृत्तियों के सम्बन्ध में योगदर्शन के टीकाकार वाचस्पतिमिश्र ने कहा है कि "न च सहस्रणापि पुरुषायुषैरलमि या: [वृत्ती:] कश्चित् परिगणयितुम्, असंख्याताश्च [वृत्तयः]", अर्थात पुरुष की हजार आयुओं में भी इन चित्तवृत्तियों को कोई गिन नहीं सकता, वृत्तियां असंख्यात है, (योगदशन सूत्र ५ की टीका)। चित्तवृत्तियों के सम्बन्ध में इस सचाई के दर्शन के लिए सूत्र ११ में "सहस्रम् अपवक्तारः" कहा है। "सहस्रम्" पद असंख्यातार्थक है।

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    विषय

    निन्दकों पर वश प्राप्त करने की साधना।

    भावार्थ

    (सहस्रं च मे अपवक्तारः) यदि मेरे हज़ार अपवादक निन्दक हों तो हे घोषधे ! सत्य वाणी ! तू (शतं च मे०) सौ गुणा होकर मुझे बल और आनन्द प्रदान कर। दुष्ट वक्ताओं का मुख बांधने के लिये इस मन्त्र = विचार का मनन करना चाहिये इससे शक्ति बढ़ेगी और साहस उत्पन्न होगा। अध्यात्म में—दशों इन्द्रियां प्रलोभन से गिरावें तो एक सत्यमति से उन पर वश करें। यदि दुनियां में प्रलोभन बढ़े तो अपनी शक्ति को और बढ़ावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-३, ६, १०, ११ अनुष्टुभः। ४ पुरस्ताद् बृहती। ५, ७, ८,९ भुरिजः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Antidote of Pollution and Disease

    Meaning

    Let there be hundred, and even thousand abusers and revilers of life and truth ranged against me, O Oshadhi, born of the truth and law of existence, observer of the laws of life without relent, creator of the beauty and honey sweets of life and health, create for us the honey sweets of life and strength to stand by truth against a thousand odds.

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    Translation

    A hundred of mine and a Thousand of mine are averters of disaster, O herb. O born of right and preserver of right, being sweet yourself, may you create sweetness for me. (100--> 1000)

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    Translation

    Let this Madhula herb used in performing yajna and full of juicy potentialities make us regain health if we are attacked by hundred diseases or by thousand.

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    Translation

    O God, the Companion and Embodiment of Truth, the Bestower of knowledge and sweetness, grant me knowledge and sweetness, though my revilers bea hundred and a thousand!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−शब्दार्थः प्रथममन्त्रेण समानः सुगमश्च ॥

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