अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 7
ऋषिः - विश्वामित्रः
देवता - मधुलौषधिः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त
48
स॒प्त च॑ मे सप्त॒तिश्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒प्त । च॒ । मे॒ । स॒प्त॒ति: । च । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒: ॥१५.७॥
स्वर रहित मन्त्र
सप्त च मे सप्ततिश्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥
स्वर रहित पद पाठसप्त । च । मे । सप्तति: । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर: ॥१५.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विघ्नों के हटाने का उपदेश।
पदार्थ
(मे) मेरे लिये (सप्त) सात (च च) और (मे) मेरे लिये (सप्ततिः) सत्तर... म० १ ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य संसार में अनेक विघ्नों से बचने के लिये पुरुषार्थपूर्वक परमेश्वर का आश्रय लें ॥१॥ इस सूक्त में मन्त्र १ की संख्या ११, म० २ में द्विगुणी बाईस, म० ३ में तीन गुणी तेंतीस, इत्यादि, म० १० तक एक सौ दस, और म० ११ में एक सहस्र एक सौ है। अर्थात् सम मन्त्रों में सम और विषम में विषम संख्यायें हैं ॥
टिप्पणी
१−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥
विषय
तेतीस से एकसौ दस तक
पदार्थ
मेरे जीवन के सतत्तर वर्ष मुझसे दोषों को पृथक् रखनेवाले हों। शेष पूर्ववत् ।
भावार्थ
जीवन में सदा ही दोषों के आजाने की सम्भावना बनी रहती है। मैं सदा वेदवाणी को अपनाते हुए दोषों को दूर रखने के लिए यत्नशील रहूँ।
भाषार्थ
(सप्त च) ७ इन्द्रियों की सप्तविध [७ प्रकार की] वृत्तियाँ, तथा १० आयतनों सम्बन्धी दस-दस प्रकार की ७० इन्द्रियवृत्तीयाँ ये ७७ अपवक्तार: हैं। ये ७७ इन्द्रियवृत्तियाँ मन्त्र १ से ७ तक की मिश्रित बृत्तियाँ हैं। (ऋतजाते) हे सत्यमय जीवन मे प्रकट हुई, (ऋतावरि) सत्यमयी (ओषधे) ओषधि ! (मधुला) मधुरस्वरूपा तु ( मे ) मेरे जीवन को ( मधु) मधुमय अर्थात् मीठा (कर:) कर दे, या तूने कर दिया है।
विषय
निन्दकों पर वश प्राप्त करने की साधना।
भावार्थ
(सप्ततिः च मे०, सप्त च मे०) यदि मेरे निन्दक ७० होजावें तो मेरी वाणी ७ गुणा होकर मुझे बल दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-३, ६, १०, ११ अनुष्टुभः। ४ पुरस्ताद् बृहती। ५, ७, ८,९ भुरिजः। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Antidote of Pollution and Disease
Meaning
Let there be seven, and even seventy abusers and revilers of life against me, O Oshadhi, born of the truth and law of existence, observer of the laws of life, creator of the honey sweets of life and health, create for us the honey sweets of life.
Translation
Seven (females) of mine and seventy of mine are averters of disaster, O herb. O born of right-and preserver of right, being Sweet yourself. may you create sweetness for me. (7-->70)
Translation
Let this Madhula herb used in performing yajna and full of juicy potentialities make us regain health if we are attacked by seven diseases or seventy.
Translation
O God, the Companion and Embodiment of Truth, the Bestower of knowledge and sweetness, grant me knowledge and sweetness, though my revilers be seven and seventy!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(एका) एकसंख्या (च च) समुच्चये (मे) मह्यम् (दश) (अपवक्तारः) निन्दका व्यवहाराः (ओषधे) हे तापनाशिके शक्ते परमेश्वर (ऋतजाते) सत्येनोत्पन्ने (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। ऋत−वनिप्। हे सत्यशीले (मधु) ज्ञानं माधुर्य्यं वा (मधुला) मधु+ला दाने−क। मधुनो ज्ञानस्य माधुर्यस्य वा दात्री (करः) लेटि रूपम्। त्वं कुर्याः ॥
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