Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 19
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - ब्राह्मी अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
    0

    घृ॒तं घृ॒॑तपावानः पिबत॒ वसां॑ वसापावानः पिबता॒न्तरि॑क्षस्य ह॒विर॑सि॒ स्वाहा॑। दिशः॑ प्र॒दिश॑ऽआ॒दिशो॑ वि॒दिश॑ऽउ॒द्दिशो॑ दि॒ग्भ्यः स्वाहा॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    घृ॒तम्। घृ॒त॒पा॒वा॒न॒ इति॑ घृतऽपावानः। पि॒ब॒त॒। वसा॑म्। व॒सा॒पा॒वा॒न॒ इति॑ वसाऽपावानः। पि॒ब॒त॒। अ॒न्तरि॑क्षस्य। ह॒विः। अ॒सि॒। स्वाहा॑। दिशः॑। प्र॒दिश॒ इति॑ प्र॒ऽदिशः॑। आ॒दिश॒ इत्या॒ऽदिशः॑। वि॒दिश॒ इति॑ वि॒ऽदिशः॑। उ॒द्दिश॒इत्यु॒त्ऽ दिशः॑। दि॒ग्भ्य इति॑ दिक्ऽभ्यः। स्वाहा॑ ॥१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    घृतङ्घृतपावानः पिबत वसाँ वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा । दिशः प्रदिशऽआदिशो विदिशऽउद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    घृतम्। घृतपावान इति घृतऽपावानः। पिबत। वसाम्। वसापावान इति वसाऽपावानः। पिबत। अन्तरिक्षस्य। हविः। असि। स्वाहा। दिशः। प्रदिश इति प्रऽदिशः। आदिश इत्याऽदिशः। विदिश इति विऽदिशः। उद्दिशइत्युत्ऽ दिशः। दिग्भ्य इति दिक्ऽभ्यः। स्वाहा॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    भाषार्थ -
    हे (घृतपावानः) जल पीने वाले वीरो! तुम (घृतम्) जल का (पिबत) पान करो। हे (वसापावान:) निवास की रक्षा करने वाले वीरो! तुम (वसाम्) वीर रस से पूर्ण नीति का (पिबत) पान करो। हे सेनाध्यक्ष! चक्रव्यूह आदि सेना के रचयिता! तू प्रत्येक वीर के लिये (अन्तरिक्षस्य) आकाश की (हविः) ग्रहण करने योग्य आहुति के समान (असि ) है, इसलिये (स्वाहा) युद्ध के अनुकूल सुन्दर वाणी से सब वीरों को आदेश दे, तथा जो (दिश:) पूर्व आदि दिशायें, (प्रदिशः) आग्नेयी आदि अन्तर्दिशायें (आदिशः) सामने की दिशायें, (विदिश:) पीछे की दिशायें, (उद्विशः) लक्ष्यदिशायें हैं, उन सब (दिग्भ्यः) दिशाओं के लिये [स्वाहा] उस-उस स्थान के अनुकूल सुन्दर वाणी से सेनाओं को विभक्त करके शत्रुओं पर विजय प्राप्त करो।। ६। १९।।

    भावार्थ - सेनाध्यक्षों को यह उचित है कि अपनी सेना के वीरों को शारीरिक बल से युक्त तथा युद्धविद्या में सुशिक्षित करके, युद्ध में सब दिशाओं में यथायोग्य अपनी सेना के भागों कोस्थापित करके, सब ओर से शत्रुओं को घेर कर और उन्हें जीत कर न्याय से प्रजा का पालन करें।। ६। १९।।

    भाष्यसार - रण में क्या करें--युद्ध में वीर लोग जल का पान करें, निवास-स्थानों की रक्षा करने वाले वीर निवासों की रक्षा करें तथा वीर रस से परिपूर्ण नीति को स्वीकार करें। सेनाध्यक्षों को उचित है कि वे चक्रव्यूह आदि सेना की रचना करें। वे अपनी सेना के प्रत्येक वीर को शारीरिक बल की वृद्धि के लिये हवि रूप अन्न आदि उत्तम पदार्थ प्रदान करें तथा युद्धानुकूल श्रेष्ठ वाणी से युद्ध विद्या की उत्तम शिक्षा करें। युद्ध में पूर्व आदि सब दिशाओं में जैसे योग्य समझें वैसे अपनी सेना के भागों को स्थापित करके सब ओर से शत्रुओं को घेर कर विजय प्राप्त करें और न्याय से प्रजा का पालन करें।। ६। १९।।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top