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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 39
    ऋषिः - देवावत ऋषिः देवता - रक्षोघ्नो देवता छन्दः - अतिजगती स्वरः - निषादः
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    स॒वि॒ता त्वा॑ स॒वाना॑ सुवताम॒ग्निर्गृ॒हप॑तीना॒ सोमो॒ वन॒स्पती॑नाम्। बृह॒स्पति॑र्वा॒चऽइन्द्रो॒ ज्यैष्ठ्या॑य रु॒द्रः प॒शुभ्यो॑ मित्रः॒ स॒त्यो वरु॑णो॒ धर्म॑पतीनाम्॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒ता। त्वा॒। स॒वाना॑म्। सु॒व॒ता॒म्। अ॒ग्निः। गृ॒ह॑पतीना॒मिति॑ गृ॒हऽप॑तीनाम्। सोमः॑। वन॒स्पती॑नाम्। बृह॒स्पतिः॑। वा॒चे। इन्द्रः॑। ज्यैष्ठ्या॑य। रु॒द्रः। प॒शुभ्य॒ इति॑ पशुऽभ्यः॑। मि॒त्रः॒। स॒त्यः। वरु॑णः। धर्म॑पतीना॒मिति॒ धर्म॑ऽपतीनाम् ॥३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सविता त्वा सवानाँ सुवतामग्निर्गृहपतीनाँ सोमो वनस्पतीनाम् । बृहस्पतिर्वाच ऽइन्द्रो ज्यैष्ठ्याय रुद्रः पशुभ्यो मित्रः सत्यो वरुणो धर्मपतीनाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सविता। त्वा। सवानाम्। सुवताम्। अग्निः। गृहपतीनामिति गृहऽपतीनाम्। सोमः। वनस्पतीनाम्। बृहस्पतिः। वाचे। इन्द्रः। ज्यैष्ठ्याय। रुद्रः। पशुभ्य इति पशुऽभ्यः। मित्रः। सत्यः। वरुणः। धर्मपतीनामिति धर्मऽपतीनाम्॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 39
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    भाषार्थ -
    हे सभापति राजन् ! जो आप (सवानाम्) ऐश्वर्यों के (सविता) उत्पादक सूर्य के समान ही (गृहपतीनाम्) गृहस्थों की (अग्निः) प्रकाशयुक्त अग्नि के समान हो, (वनस्पतीनाम्) पिप्पली आदि औषधियों के (सोमः) सोम्यगुणों से युक्त वैद्यक विषय में औषधियों के राजा सोमलता के समान हो, (धर्मपतीनाम्) धर्म के रक्षकों के (सत्यः) सत्पुरुषों में विद्यमान सत्य हो, (वरुणः) धर्माचरण से श्रेष्ठ हो, (मित्र:) सबके मित्र के समानहो, (वाचे) वेदार्थ सम्बन्धी सुशिक्षा युक्त वाणी के विज्ञान के लिये (बृहस्पतिः) पूर्ण विद्वान् आप्त पुरुष के समान हो, (ज्यैष्ठ्याय) अत्यन्त बड़प्पन के लिये (इन्द्रः) परमैश्वर्य रूप योग में आरूढ़ वृद्ध पुरुष के समान हो, (पशुभ्यः) गौ आदि पशुओं के लिये (रुद्र:) शत्रुओं को रुलाने वाले शूरवीर के समान हो, रक्षक हो, सो (त्वा) आप को आप्त विद्वान् उपदेशक प्रजापालन के लिये (सुवताम्) प्रेरित करे ॥ ९। ३९॥

    भावार्थ - हे राजन् ! आप, जो लोग आपको अधर्म से हटाकर, धर्माचरण में प्रेरित करें, उन्हीं का सङ्ग करो, अन्यों का नहीं ॥९ । ३९॥

    भाष्यसार - सभासद लोग राजा को किस किस विषय में प्रेरित करें--सभासद् लोग राजा को प्रेरित करें कि राजन् ! आप सब ऐश्वर्यों के उत्पादक हो तथा गृहाश्रमी जनों में प्रकाशक अग्नि के समान बनो, पिप्पली आदि वनस्पतियों में औषधियों के राजा सोम के समान बनो, धर्म के रक्षकों में सत्य, श्रेष्ठ धर्माचारी, सब के मित्र बनो, वेदार्थ-सम्बन्धी उत्तम शिक्षा से युक्त वाणी को जानने के लिये बृहस्पति अर्थात् पूर्ण विद्यावान्आप्त पुरुष बनो, अत्यन्त ज्येष्ठभाव बड़प्पन के लिये इन्द्र अर्थात् परम ऐश्वर्य रूप योग समाधि को प्राप्त वृद्ध पुरुष बनो, गौ आदि पशुओं की रक्षा के लिये रुद्र अर्थात् शत्रुओं को रुलाने वाले शूरवीर बनो। सभ्य आप्त विद्वान उपदेशकों का कर्त्तव्य है कि वे राजा को प्रजा के पालन में प्रेरित करें। राजा को भी चाहिये कि जो लोग उसे अधर्म से निवारण करके धर्माचरण में प्रेरित करें राजा उन्हीं का सङ्ग सदा करे, अन्यों का सङ्ग कभी न करे ॥९ । ३९॥

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