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  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 13
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - यजमानो देवता छन्दः - आर्ची पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    उदी॑ची॒मारो॑हानु॒ष्टुप् त्वा॑वतु वैरा॒जꣳ सामै॑कवि॒॑ꣳश स्तोमः॑ श॒रदृ॒तुः फलं॒ द्रवि॑णम्॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उदाची॑म्। आ। रो॒ह॒। अ॒नु॒ष्टुप्। अ॒नु॒स्तुबित्य॑नु॒ऽस्तुप्। त्वा॒। अ॒व॒तु॒। वै॒रा॒जम्। साम॑। ए॒क॒वि॒ꣳश इत्ये॑कऽवि॒ꣳशः। स्तोमः॑। श॒रत्। ऋ॒तुः। फल॑म्। द्रवि॑णम् ॥१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदीचीमारोहानुष्टुप्त्वावतु वैराजँ सामैकविँश स्तोमः शरदृतुः पलन्द्रविणम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उदाचीम्। आ। रोह। अनुष्टुप्। अनुस्तुबित्यनुऽस्तुप्। त्वा। अवतु। वैराजम्। साम। एकविꣳश इत्येकऽविꣳशः। स्तोमः। शरत्। ऋतुः। फलम्। द्रविणम्॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 13
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    भावार्थ - जे पुरुष आळस सोडून सर्व काळी पुरुषार्थ कारतात त्यांना उत्तम फळ प्राप्त होते.

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