Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 58
    ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः देवता - वसुरुद्रादित्यविश्वेदेवा देवताः छन्दः - पूर्वाद्धस्य स्वराट्संकृतिः, उत्तरार्धस्याभिकृतिः स्वरः - गान्धारः, ऋषभः
    5

    वस॑वस्त्वा कृण्वन्तु गाय॒त्रेण॒ छन्द॑साऽङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वासि॑ पृथि॒व्यसि धा॒रया॒ मयि॑ प्र॒जा रा॒यस्पोषं॑ गौप॒त्यꣳ सु॒वीर्य॑ꣳ सजा॒तान् यज॑मानाय रु॒द्रास्त्वा॑ कृण्वन्तु॒ त्रैष्टु॑भेन॒ छन्द॑साऽङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वास्य॒न्तरि॑क्षमसि धा॒रया॒ मयि॑ प्र॒जा रा॒यस्पोषं॑ गौप॒त्यꣳ सु॒वीर्य॑ꣳ सजा॒तान् यज॑मानायाऽऽदि॒त्यास्त्वा॑ कृण्वन्तु॒ जाग॑तेन॒ छन्द॑साऽङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वासि॒ द्यौर॑सि धा॒रया॒ मयि॑ प्र॒जा रा॒यस्पोषं॑ गौप॒त्यꣳ सु॒वीर्य॑ꣳ सजा॒तान् यज॑मानाय विश्वे॑ त्वा दे॒वाः वैश्वा॑न॒राः कृ॑ण्व॒न्त्वानु॑ष्टुभेन॒ छन्द॑साऽङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वासि॒ दिशो॑ऽसि धा॒रया॒ मयि॑ प्र॒जा रा॒यस्पोषं॑ गौप॒त्यꣳ सु॒वीर्य॑ꣳ सजा॒तान् यज॑मानाय॥५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वस॑वः। त्वा॒। कृ॒ण्व॒न्तु॒। गा॒य॒त्रेण॑। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। पृ॒थि॒वी। अ॒सि॒। धा॒रय॑। मयि॑। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। रा॒यः। पोष॑म्। गौ॒प॒त्यम्। सु॒वीर्य्य॒मिति॑ सु॒ऽवीर्य्य॑म्। स॒जा॒तानिति॑ सऽजा॒तान्। यज॑मानाय। रु॒द्राः। त्वा॒। कृ॒ण्व॒न्तु। त्रैष्टु॑भेन। त्रैस्तु॑भे॒नेति॒ त्रैऽस्तु॑भेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। अ॒न्तरि॑क्षम्। अ॒सि॒। धा॒रय॑। मयि॑। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। रा॒यः। पोष॑म्। गौ॒प॒त्यम्। सु॒वीर्य्य॒मिति॑ सु॒ऽवीर्य्य॑म्। स॒जा॒तानिति॑ सऽजा॒तान्। यज॑मानाय। आ॒दि॒त्याः। त्वा॒। कृ॒ण्व॒न्तु॒। जाग॑तेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। द्यौः। अ॒सि॒। धा॒रय॑। मयि॑। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। रा॒यः। पोष॑म्। गौ॒प॒त्यम्। सु॒वीर्य॒मिति॑ सु॒वीर्य॑म्। स॒जा॒तानिति॑ सऽजा॒तान्। यज॑मानाय। विश्वे॑। त्वा॒। दे॒वाः। वै॒श्वा॒न॒राः। कृ॒ण्व॒न्तु॒। आनु॑ष्टुभेन। आनु॑स्तुभे॒नेत्यानु॑ऽस्तुभेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। दिशः॑। अ॒सि॒। धा॒रय॑। मयि॑। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। रा॒यः। पोष॑म्। गौ॒प॒त्यम्। सु॒वीर्य॒मिति॑ सु॒ऽवीर्य॑म्। स॒जा॒तानिति॑ सऽजा॒तान्। यज॑मानाय ॥५८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वसवस्त्वा कृण्वन्तु गायत्रेण च्छन्दसाङ्गिरस्वद्धरुवासि पृथिव्यसि धारया मयि प्रजाँ रायस्पोषङ्गौपत्यँ सुवीर्यँ सजातान्यजमानाय रुद्रास्त्वा कृण्वन्तु त्रैष्टुभेन च्छन्दसाङ्गिरस्वद्धरुवास्यन्तरिक्षमसि धारया मयि प्रजाँ रायस्पोषङ्गौपत्यँ सुवीर्यँ सजातान्यजमानायादित्यास्त्वा कृण्वन्तु जागतेन च्छन्दसाङ्गिरस्वद्धरुवासि द्यौरसि धारया मयि प्रजाँ रायस्पोषङ्गौपत्यँ सुवीर्यँ सजातान्यजमानाय विश्वे त्वा देवा वैश्वानराः कृण्वन्त्वानुष्टुभेन छन्दसाङ्गिरस्वद्धरुवासि दिशोसि धारया मयि प्रजाँ रायस्पोषङ्गौपत्यँ सुवीर्यँ सजातान्यजमानाय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वसवः। त्वा। कृण्वन्तु। गायत्रेण। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। असि। पृथिवी। असि। धारय। मयि। प्रजामिति प्रऽजाम्। रायः। पोषम्। गौपत्यम्। सुवीर्य्यमिति सुऽवीर्य्यम्। सजातानिति सऽजातान्। यजमानाय। रुद्राः। त्वा। कृण्वन्तु। त्रैष्टुभेन। त्रैस्तुभेनेति त्रैऽस्तुभेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। असि। अन्तरिक्षम्। असि। धारय। मयि। प्रजामिति प्रऽजाम्। रायः। पोषम्। गौपत्यम्। सुवीर्य्यमिति सुऽवीर्य्यम्। सजातानिति सऽजातान्। यजमानाय। आदित्याः। त्वा। कृण्वन्तु। जागतेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। असि। द्यौः। असि। धारय। मयि। प्रजामिति प्रऽजाम्। रायः। पोषम्। गौपत्यम्। सुवीर्यमिति सुवीर्यम्। सजातानिति सऽजातान्। यजमानाय। विश्वे। त्वा। देवाः। वैश्वानराः। कृण्वन्तु। आनुष्टुभेन। आनुस्तुभेनेत्यानुऽस्तुभेन। छन्दसा। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। असि। दिशः। असि। धारय। मयि। प्रजामिति प्रऽजाम्। रायः। पोषम्। गौपत्यम्। सुवीर्यमिति सुऽवीर्यम्। सजातानिति सऽजातान्। यजमानाय॥५८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 58
    Acknowledgment

    भावार्थ - या मंत्रात उपामालंकार आहे. स्त्री व पुरुष यांनी एकमेकांची परीक्षा करावी व आपापसात दृढ प्रेम उत्पन्न झाल्यास वेदोक्त रीतीने यज्ञाचा विस्तार करून वेदोक्त नियमांप्रमाणे विवाह करावा व धर्मपूर्वक संतानांना जन्म द्यावा. जेव्हा कन्या व पुत्र आठ आठ वर्षांचे होतील तेव्हा आई-वडिलांनी त्यांना चांगले शिक्षण द्यावे. त्यानंतर ब्रह्मचर्य धारण करून त्यांना विद्या शिकण्यासाठी घरांपासून दूर आप्त विद्वान स्त्री-पुरुषांच्या पाठशाळेत पाठवावे. पाठशाळेमध्ये जितके धन खर्च करणे योग्य आहे तितकेच खर्च करावे. कारण संतानासाठी विद्यादानाखेरीज कोणताही उपकार किंवा धर्म नसतो. म्हणून त्याचे निरंतर अनुष्ठान करावे.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top