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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 27
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - पशुपालनविद्याविदात्मा देवता छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    प॒ष्ठ॒वाट् च॑ मे पष्ठौ॒ही च॑ मऽउ॒क्षा च॑ मे व॒शा च॑ मऽऋष॒भश्च॑ मे वे॒हच्च॑ मेऽन॒ड्वाँश्च॑ मे धेनु॒श्च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒ष्ठ॒वाडिति॑ पष्ठ॒ऽवाट्। च॒। मे॒। प॒ष्ठौ॒ही। च॒। मे॒। उ॒क्षा। च॒। मे॒। व॒शा। च॒। मे॒। ऋ॒ष॒भः। च॒। मे॒। वे॒हत्। च॒। मे॒। अ॒न॒ड्वान्। च॒। मे॒। धे॒नुः। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पष्ठवाट्च मे पष्ठौही च मऽउक्षा च मे वशा च मऽऋषभश्च मे वेहच्च मे नड्वाँश्च मे धेनुश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पष्ठवाडिति पष्ठऽवाट्। च। मे। पष्ठौही। च। मे। उक्षा। च। मे। वशा। च। मे। ऋषभः। च। मे। वेहत्। च। मे। अनड्वान्। च। मे। धेनुः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 27
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    भावार्थ - जे पशूंना चांगले शिक्षण देऊन त्यांच्याकडून काम करून घेतात ते आपले प्रयोजन सिद्ध करून सुखी होतात.

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