यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 27
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - पशुपालनविद्याविदात्मा देवता
छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
132
प॒ष्ठ॒वाट् च॑ मे पष्ठौ॒ही च॑ मऽउ॒क्षा च॑ मे व॒शा च॑ मऽऋष॒भश्च॑ मे वे॒हच्च॑ मेऽन॒ड्वाँश्च॑ मे धेनु॒श्च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥२७॥
स्वर सहित पद पाठप॒ष्ठ॒वाडिति॑ पष्ठ॒ऽवाट्। च॒। मे॒। प॒ष्ठौ॒ही। च॒। मे॒। उ॒क्षा। च॒। मे॒। व॒शा। च॒। मे॒। ऋ॒ष॒भः। च॒। मे॒। वे॒हत्। च॒। मे॒। अ॒न॒ड्वान्। च॒। मे॒। धे॒नुः। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पष्ठवाट्च मे पष्ठौही च मऽउक्षा च मे वशा च मऽऋषभश्च मे वेहच्च मे नड्वाँश्च मे धेनुश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
पष्ठवाडिति पष्ठऽवाट्। च। मे। पष्ठौही। च। मे। उक्षा। च। मे। वशा। च। मे। ऋषभः। च। मे। वेहत्। च। मे। अनड्वान्। च। मे। धेनुः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥२७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
मे पष्टवाट् च मे पष्ठौही च म उक्षा च मे वशा च मे ऋषभश्च मे वेहच्च मेऽनड्वाँश्च मे धेनुश्च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥२७॥
पदार्थः
(पष्ठवाट्) यः पष्ठेन पृष्ठेन वहति सो हस्त्युष्ट्रादिः (च) तत्सम्बन्धी (मे) (पष्ठौही) व[वादिः (च) हस्तिन्यादिभिरुत्थापिताः पदार्थाः (मे) (उक्षाः) वीर्यसेचकः (च) वीर्यधारिका (मे) (वशा) वन्ध्या गौः (च) वीर्यहीनः (मे) (ऋषभः) बलिष्ठः (च) बलवती (मे) (वेहत्) यस्य वीर्यं यस्या गर्भो वा विहन्यते स सा च (च) सामर्थ्यहीनः (मे) (अनड्वान्) हलशकटादिवहनसमर्थः (च) शकटवाही जनः (मे) (धेनुः) दुग्धदात्री (च) दोग्धा (मे) (यज्ञेन) पशुशिक्षाख्येन (कल्पन्ताम्) समर्थयन्तु॥२७॥
भावार्थः
ये पशून् सुशिक्ष्य कार्येषु संयुञ्जते, ते सिद्धार्था जायन्ते॥२७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(मे) मेरे (पष्ठवाट्) पीठ से भार उठानेहारे हाथी, ऊंट आदि (च) और उनके सम्बन्धी (मे) मेरी (पष्ठौही) पीठ से भार उठाने हारी घोड़ो, ऊंटनी आदि (च) और उनसे उठाये गये पदार्थ (मे) मेरा (उक्षा) वीर्य सेचन में समर्थ वृषभ (च) और वीर्य धारण करने वाली गौ आदि (मे) मेरी (वशा) वन्ध्या गौ (च) और वीर्यहीन बैल (मे) मेरा (ऋषभः) समर्थ बैल (च) और बलवती गौ (मे) मेरी (वेहत्) गर्भ गिराने वाली (च) और सामर्थ्यहीन गौ (मे) मेरा (अनड्वान्) हल और गाड़ी आदि को चलाने में समर्थ बैल (च) और गाड़ीवान आदि (मे) मेरी (धेनुः) नवीन व्यानी दूध देने हारी गाय (च) और उसको दोहने वाला जन ये सब (यज्ञेन) पशुशिक्षारूप यज्ञकर्म से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें॥२७॥
भावार्थ
जो पशुओं को अच्छी शिक्षा देके कार्यों में सयुक्त करते हैं, वे अपने प्रयोजन सिद्ध करके सुखी होते हैं॥२७॥
विषय
यज्ञ से सेना और नाना पशुओं की प्राप्ति ।
भावार्थ
( पष्ठवाट् च पष्ठौही च ) पीठ से बोझा उठाने वाले बैल, हाथी, गधा, घोड़ा आदि नर और मादा जन्तु, ( उक्षा च वशा च) वीर्यसेचनमें समर्थ बेल और वीर्यं धारण में समर्थ गौएं (ऋषभः च) बलवान् बैल, ( वेहत् च ) गर्भघातिनी गौ, ( अनड्वान् च ) शकट में लगने वाला बैल और ( धेनुः च ) दुधार गौ, ये सब प्रकार के पशु और उनसे प्राप्त पदार्थ (मे) मुझे ( यज्ञेन ) यज्ञ द्वारा ( कल्पन्ताम् ) प्राप्त हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पशुपालनविद्याविदात्मा ( २७ ) भुरिगार्षी पंक्तिः । पंचमः ॥
विषय
पष्ठवाट्-धेनु
पदार्थ
१. [ पष्ठं = वर्षचतुष्कं वहति इति] पष्ठवाट् च मे=चार साल का बैल मेरा हो (पष्ठौही च मे) = और इसी प्रकार चार साला गौ मुझे प्राप्त हो। २. (उक्षा च मे) = वीर्य सेचन में समर्थ बैल मुझे प्राप्त हो (वशा च म) = वन्ध्या गौ भी मेरे पास रहे । ३. (ऋषभः च मे) = अति युवा वृषभ मेरे पास हो और (वेहत् च मे) = गर्भधारिनी गौ भी मुझे यज्ञ के हेतु समर्थ करे । ४. (अनड्वान् च मे) = शकट-वहनक्षम बैल मुझे प्राप्त हो और (धेनुः च मे) = नवप्रसूता गौ मुझे (यज्ञेन) = यज्ञ के द्वारा (कल्पन्ताम्) = शक्तिसम्पन्न बनाये । ५. वस्तुतः गौ के सम्पर्क के बिना मनुष्य अपने जीवन का विकास नहीं कर सकता। ऋषियों के आश्रम गौवों पर आधारित थे। कन्यादान से पहले गोदान का होना इस बात का संकेत करता है कि घर के उत्तम निर्माण का सम्भव गौ पर ही स्थित है। इन गौओं के साथ बैलों का होना आवश्यक है। गौ के बिना बैल नहीं, बैल के बिना गौ नहीं। सब प्रकार के गौ-बैलों का सम्भव कृषिप्रधान जीवन में ही सम्भव है, अतः वेद में कृषि को उत्तम स्थान दिया गया है- 'अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्कृषस्व'- कृषि - अतिरिक्त कार्यों को जुआ ही कहा गया है। इस कृषि में ही गाएँ हैं 'तत्र गावः'। यहीं उत्तम घर का निर्माण होता है। मैं इन गौ-बैलोंवाला होऊँ और उन गौवें के द्वारा यज्ञनामक प्रभु का वर्णन करनेवाला बनूँ।
भावार्थ
भावार्थ- गोरक्षा द्वारा गोदुग्ध को अपना मुख्य भोजन बनाकर मैं सात्त्विक बनूँ, दिव्य आदित्य बनकर जीवन-यात्रा को पूर्ण करूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
जे पशूंना चांगले शिक्षण देऊन त्यांच्याकडून काम करून घेतात ते आपले प्रयोजन सिद्ध करून सुखी होतात.
विषय
पुनश्च पुढील मंत्रात तोच विषय (पशुपालन) -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (पशुपालक कामना व्यक्त करीत आहे) (मे) माझे (पष्ठवाट्) पाठीवर भार वाहून नेणारे हत्ती, उंट आदी पशू (च) आणि त्या पशूंशी संबंधित (वासरें, पिलें, वा सेवकगण) तसेच (मे) माझी (पष्ठौही) पाठीवर ओझें वाहणार्या घोडी, उंटणी आदी पशू (च) ते वाहून नेत असलेले पदार्थ (माझ्यासाठी हितकर व लाभकारी व्हावेत) (मे) माझा (उक्षा) वीर्य-सेचन कार्यात समर्थ वृषभ (कळू) (च) आणि वीर्य धारण करण्यास समर्थ गाय आदी पशू, तसेच (मे) माझी (माझ्या गोठ्यात असणारी) (वशा) वंध्या (भाकड) गाय (च) आणि प्रजोत्पादनात व शेतीकामात असमर्थ झालेला वीर्यहीन बैल (च) माझे (ऋषभ:) प्रोतीकामासाठी उपयुक्त बैल (च) आणि बलवती गाय (माझ्यासाठी उपयोग असावेत) (मे) माझी (बेहत्) जिचा गर्भ ठरत नाही अशी गाय अथवा वंध्या गाय, तसेच ज्याच्या वीर्यात प्रजोत्पादन शक्ती नाही असा (मे) माझा (अनड्वान्) नांगर, गळा आदीत जुंपणारा समर्थ असा शक्तिमान बैल (य) आणि गाडीवान, सेवक आदी, तसेच (मे) माझी (धेनु:) नवीन व्यालेली दूध देणारी गाय (व) आणि त्याचे दोहन करणारे सेवक, हे सर्व पशू व माणसें (यज्ञेन) पशू पालनरूप यज्ञकर्मामुळे (माझ्यासाठी) समर्थ व हितकारी व्हावेत ॥27॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक पशूंना चांगले प्रशिक्षण देऊन, उपयोगी कार्यात लावतात, ते आपल्या प्रयोजनात यशस्वी होतात. ॥27॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May my male beasts of burden like elephant and camel and similar beasts, my female beasts of burden like mare and she camel, and their loads, my powerful bull and cow, my impotent bull and barren cow, my young bull and strong cow, my calf-slipping and lean cow, my ox and cart driver, my milch-cow and its milk man prosper through proper training of cattle.
Meaning
And my beasts of burden both male and female and the articles and materials for trade and transport, and my virile bull and my infertile cow, and my strong bull and my miscarrying cow, and my bullock and my milch cow, may all these grow by the yajna of animal husbandry and veterinary science and may all these be good and auspicious for me and for all.
Translation
May my six years old bull (pasthavat) and my six years old cow, and my impregnator bull (uksan) and my barren cow (vasa) and my very young bull (rsabha) and my aborting cow (vehat), and my cartbullock (anadvan) and milch-cow (dhenu) be secured by means of sacrifice. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
এখন সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– (মে) আমার (পষ্ঠবাট্) পিঠ দিয়া ভার বহনকারী হাতি, উঁট ইত্যাদি (চ) এবং তৎসম্বন্ধীয় (মে) আমার (পষ্ঠৌহী) পিঠ দিয়া ভার বহনকারিণী অশ্বী, উটনী ইত্যাদি (চ) এবং তাহাদের দ্বারা উত্থাপিত পদার্থ (মে) আমার (উক্ষা) বীর্য্য সেচনে সমর্থ বৃষভ (চ) এবং বীর্য্য ধারণকারিণী গাভি ইত্যাদি (মে) আমার (বশা) বন্ধ্যা গাভি (চ) এবং বীর্য্যহীন বলদ (মে) আমার (ঋষভঃ) সমর্থ বৃষ (চ) এবং বলবতী গাভি (মে) আমার (বেহৎ) গর্ভপাতকারিণী (চ) এবং সামর্থ্যহীন গাভি (মে) আমার (অনড্বান) লাঙল ও গাড়ি ইত্যাদি চালাইতে সক্ষম বলদ (চ) এবং গাড়োয়ানাদি (মে) আমার (ধেনুঃ) নবীন প্রসূতা দুগ্ধদাত্রী গাভি (চ) এবং তাহাকে দোহনকারী ব্যক্তি এই সব (য়জ্ঞেন) পশু শিক্ষারূপ যজ্ঞকর্ম দ্বারা (কল্পন্তাম) সমর্থ হউক ॥ ২৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ– যাহারা পশুদেরকে উত্তম শিক্ষা প্রদান করিয়া কার্য্যে সংযুক্ত করে তাহারা নিজ প্রয়োজন সিদ্ধ করিয়া সুখী হয় ॥ ২৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প॒ষ্ঠ॒বাট্ চ॑ মে পষ্ঠৌ॒হী চ॑ মऽউ॒ক্ষা চ॑ মে ব॒শা চ॑ মऽঋষ॒ভশ্চ॑ মে বে॒হচ্চ॑ মেऽন॒ড্বাঁশ্চ॑ মে ধেনু॒শ্চ॑ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ২৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
পষ্ঠবাট্ চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । পশুপালনবিদ্যাবিদাত্মা দেবতা । ভুরিগার্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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