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यजुर्वेद अध्याय - 18

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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 26
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - पशुविद्याविदात्मा देवता छन्दः - ब्राह्मी बृहती स्वरः - मध्यमः
    107

    त्र्यवि॑श्च मे त्र्य॒वी च॑ मे दित्य॒वाट् च॑ मे दित्यौ॒ही च॑ मे॒ पञ्चा॑विश्च मे पञ्चा॒वी च॑ मे त्रिव॒त्सश्च॑ मे त्रिव॒त्सा च॑ मे तुर्य॒वाट् च॑ मे तुर्यौ॒ही च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्र्यवि॒रिति॑ त्रि॒ऽअविः॑। च॒। मे॒। त्र्य॒वीति॑ त्रिऽअ॒वी। च॒। मे॒। दि॒त्य॒वाडिति॑ दित्य॒ऽवाट्। च॒। मे॒। दि॒त्यौ॒ही। च॒। मे॒। पञ्चा॑वि॒रिति॒ पञ्च॑ऽअविः। च॒। मे॒। प॒ञ्चा॒विति॑ पञ्चऽअ॒वी। च॒। मे॒। त्रि॒व॒त्स इति॑ त्रिऽव॒त्सः। च॒। मे॒। त्रि॒व॒त्सेति॑ त्रिऽव॒त्सा। च॒। मे॒। तु॒र्य॒वाडिति॑ तुर्य॒ऽवाट्। च॒। मे॒। तु॒र्यौ॒ही। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ताम् ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्र्यविश्च मे त्र्यवी च मे दित्यवाट्च मे दित्यौही च मे पञ्चाविश्च मे पञ्चावी च मे त्रिवत्सश्च मे त्रिवत्सा च मे तुर्यवाट्च मे तुर्याही च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्र्यविरिति त्रिऽअविः। च। मे। त्र्यवीति त्रिऽअवी। च। मे। दित्यवाडिति दित्यऽवाट्। च। मे। दित्यौही। च। मे। पञ्चाविरिति पञ्चऽअविः। च। मे। पञ्चाविति पञ्चऽअवी। च। मे। त्रिवत्स इति त्रिऽवत्सः। च। मे। त्रिवत्सेति त्रिऽवत्सा। च। मे। तुर्यवाडिति तुर्यऽवाट्। च। मे। तुर्यौही। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पशुपालनविषयमाह॥

    अन्वयः

    मे त्र्यविश्च मे त्र्यवी च मे दित्यवाट् च मे दित्यौही च मे पञ्चाविश्च मे पञ्चावी च मे त्रिवत्सश्च मे त्रिवत्सा च मे तुर्यवाट् च मे तुर्यौही च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥२६॥

    पदार्थः

    (त्र्यविः) तिस्रोऽवयो यस्य सः (च) अतो भिन्ना सामग्री (मे) (त्र्यवी) तिस्रोऽवयो यस्याः सा (च) एतज्जन्यं घृतादि (मे) (दित्यवाट्) दितौ खण्डितायां क्रियायां भवा दित्यास्तान् यो वहति पृथक् करोति सः (च) एतत्पालनम् (मे) (दित्यौही) तत्स्त्री (च) अन्यदपि (मे) (पञ्चाविः) पञ्चावयो यस्य सः (च) एतद्रक्षणम् (मे) (पञ्चावी) स्त्री (च) एतत्पालनम् (मे) (त्रिवत्सः) त्रयो वत्सा यस्य सः (च) एतच्छिक्षणम् (मे) (त्रिवत्सा) त्रयो वत्सा यस्याः सा (च) एतस्या रक्षा (मे) (तुर्यवाट्) यस्तुर्यं चतुर्थं वर्षं वहति प्राप्नोति स वृषभादिः। यस्य त्रीणि वर्षाणि पूर्णानि जातानि चतुर्थः प्रविष्टः स इत्यर्थः (च) अस्य शिक्षणम् (मे) (तुर्यौही) पूर्वोक्तसदृशी गौः (च) अस्याः शिक्षा (मे) (यज्ञेन) पशुपालनविधिना (कल्पन्ताम्) समर्थयन्तु॥२६॥

    भावार्थः

    अत्र गोजाविग्रहणमुपलक्षणार्थम्। ये मनुष्याः पशून् वर्द्धयन्ति ते रसाढ्या जायन्ते॥२६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अथ पशुपालन विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (मे) मेरा (त्र्यविः) तीन प्रकार का भेड़ों वाला (च) और इससे भिन्न सामग्री (मे) मेरी (त्र्यवी) तीन प्रकार की भेड़ों वाली स्त्री (च) और इनसे उत्पन्न हुए घृतादि (मे) मेरे (दित्यवाट्) खण्डित क्रियाओं में हुए विघ्नों को पृथक् करने वाला (च) और इसके सम्बन्धी (मे) मेरी (दित्यौही) उन्हीं क्रियाओं को प्राप्त कराने हारी गाय आदि (च) और उसकी रक्षा (मे) मेरा (पञ्चाविः) पांच प्रकार की भेड़ों वाला (च) और उसके घृतादि (मे) मेरी (पञ्चावी) पांच प्रकार की भेड़ों वाली स्त्री (च) और (मे) मेरा (त्रिवत्सः) तीन बछड़े वाला (च) और उसके बछड़े आदि (मे) मेरी (त्रिवत्सा) तीन बछड़े वाली गौ (च) और उसके घृतादि (मे) मेरा (तुर्यवाट्) चौथे वर्ष को प्राप्त हुआ बैल आदि (च) और इसको काम में लाना (मे) मेरी (तुर्यौही) चौथे वर्ष को प्राप्त गौ (च) और इसको शिक्षा ये सब पदार्थ (यज्ञेन) पशुओं के पालन के विधान से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें॥२६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में गौ और भेड़ के उपलक्षण से अन्य पशुओं का भी ग्रहण होता है। जो मनुष्य पशुओं को बढ़ाते हैं, वे इनके रसों से आढ्य होते हैं॥२६॥

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    विषय

    यज्ञ से सेना और नाना पशुओं की प्राप्ति ।

    भावार्थ

    ( त्र्यविः च त्र्यवी च ) तीन-तीन भेढ़ें, भेड़ा ( दिव्यवाट् च दित्यौही च ) दो वर्ष के बैल और गाय, (पञ्चावि: च पञ्चावी च ) पांच छमाही अढ़ाई वर्ष के बैल और गाय, ( त्रिवत्सः च त्रिवत्सा च ) तीन वर्ष के बैल और गाय, ( तुर्यवाट् च तुर्याही च ) चार वर्ष के बैल और गाय और उनके पालक पुरुष ( मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ) उक्त यज्ञ, प्रजापालन द्वारा मुझे प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पशुपालनविद्याविदात्मा (२६) ब्राह्मी बृहती । मध्यमः ।

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    विषय

    त्र्यवि+तुर्यौही [ गौ ]

    पदार्थ

    १. मन्त्र संख्या २४ तथा २५ में ३३ देवों के धारण व अड़तालीस वर्षों तक गुणों व शक्ति का आदान करते हुए 'आदित्य' बनने का उल्लेख था। यह सब तभी सम्भव है जब हमारी वृत्ति सात्त्विक बने । सात्त्विक वृत्ति बनने का सम्भव 'आहार की शुद्धि' पर है और यह सर्वोत्तम सात्त्विक व पूर्ण भोजन 'गोदुग्ध' ही है, अतः उस गोदुग्ध का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि- (त्र्यविः च मे) = [ अवि: = षण्मासात्मकः कालः, . त्रयोऽवयो यस्य] डेढ़ साल का वृष-बैल मेरा हो (त्र्यवी च मे) = डेढ़ साल की गौ मुझे प्राप्त हो। २. (दित्यवाट् च मे दित्यौही च मे) = द्विसंवत्सर [ दो साल का] बैल मुझे प्राप्त हो और इसी प्रकार दो साल की गौ मुझे यज्ञेन यज्ञ के निमित कल्पन्ताम् शक्तिशाली बनाएँ। ३. (पञ्चाविः च मे पञ्चावी च मे) = ढाई साल का बैल मुझे प्राप्त हो और इसी प्रकार ढाई साल की गौ मुझे यज्ञ के हेतु से समर्थ करे। ४. त्(रिवत्सश्च मे त्रिवत्सा च मे) = [ वत्स :- वत्सरः] तीन साल का बैल मेरा हो और तीन साल की गौ मुझे यज्ञ के हेतु समर्थ करे। ५. (तुर्यवाट् च मे तुर्यौही च मे) = [तुर्यं वर्षं वहति इति] साढ़े तीन साल का बैल मुझे प्राप्त हो और साढ़े तीन साल की गौ मुझे (यज्ञेन) = यज्ञ के निमित्त (कल्पन्ताम्) शक्तिशाली बनाए ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारे पास डेढ़ साल की उमर से साढ़े तीन साल तक की उमर के बैल व गाएँ हों।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात गाई, बकरे, लांडगे यांच्या उपलक्षणाने इतर पशूंचेही आकलन होते. हे विधान पशूसंबंधी आहे हे समजले पाहिजे. जी माणसे पशूंचे पालन करतात. त्यांच्या दूध वगैरेने ती माणसे संपन्न होतात.

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    विषय

    पुढील मंत्रात पशुपालनाविषयी कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (एक पशुपती वा गोव आदी पशूंचे पालन करणारा अपेक्षा वा इच्छा करीत आहे) (मे) माझा तीन मेंढ्यांचा (कळप (च) तसेच पशुपालनसंबंधी आवश्यक साहित्य, तसेच (मे) माझी (त्र्यवी) तीन मेंढ्यांचे पालन करणारी स्त्री (सेविका अथवा पत्नी (च) आणि मेंढर्‍यांपासून प्राप्त व उत्पन्न घृत आदी पदार्थ (माझ्यासाठी लाभकर व्हावेत) (मे) माझा (दित्यवाट्) (पशुपालन आदी दैनिक कार्यांमधे येणार विघ्न दूर करणारा (माझा सेवक) (च) आणि त्याचे सर्व सहकारी, तसेच (मे) माझे (दित्यौही) दैनिक कार्यांना पूर्तता देणारे गौ आदी पशू (च) आणि त्यांचे रक्षणासाठी होणारी व्यवस्था (माझ्यासाठी सुखकर व्हावी) (मे) माझा (पंचावि:) पाच प्रकारच्या मेंढराचा कळप (च) आणि त्यापासून प्राप्त घृत आदी पदार्थ, तसेच (मे) माझी (पंचावी) पाच प्रकारच्या मेंढरांचे पालन करणारी स्त्री (व माझी पत्नी) (च) आणि त्यासंबंधीचे सर्व कामकाज (माझ्याकरिता सुखमय व्हावे) (मे) माझा (त्रिवत्स:) तीन वासरें असणारा (वा त्यांचे पालन करणारा सेवक) (च) आणि त्याची ती तीन वासरें, तसेच (मे) माझी (त्रिवत्सा) तीन वासरें असणारी गाय (च) आणि तिच्यापासून प्राप्त दुग्ध, घृत आदी पदार्थ (माझ्यासाठी लाभकारी व्हावेत) (मे) माझे (तुय्यविट्) चार वर्ष वयाचा (शेती आदी कामासाठी योग्य झालेला वळू अथवा तरूण) बैल (च) आणि त्याला शेतीकामात गुंतविणे आदी कामें, तसेच (मे) माझी (तुर्योही) चार वर्ष वयाची गाय (च) आणि तिचे (दोहन, पालन आदी कार्य) (यज्ञेन) पशुपालनासंबंधी नियमांमुळे (माझ्यासाठी) (कल्पन्ताम्) समर्थ वा सुखकर व्हावेत ॥26॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात गाय, शेळी आणि आणि मेंढरे या प्राण्यांच्या उल्लेखावरून अन्य पाळीव पशूंचा देखील बोध होत आहे. जे लोक पालनादी कार्याद्वारे या पशूंची वृद्धी करतात, ते या पशूंपासून मिळणार्‍या (दूध, दही, घृत, ताक व मूत्र आदी) रसांचे सेवन करून श्रीमान व आरोग्य संपन्न होतात. ॥26॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May my eighteen months bull and cow, my two years bull and cow, my thirty months bull and cow, my three years bull and cow, my four years bull and cow prosper through the science of rearing cattle.

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    Meaning

    By yajna, veterinary science and the science of animal husbandry: My man of three breeds of sheep and their maintenance, the woman of three breeds of sheep and their milk, etc. , the man in-charge of damage control and his knowledge, and the woman in-charge of maintenance against damage and her stores, and the man of five grades of sheep and his staff, and the woman of five grades of sheep and her assistants, the man of three breeds of calf and his knowledge, and the woman of three breeds of calf and her knowledge, the bull of the fourth year of age and its training and maintenance, and the cow of the fourth year of age and its maintenance, may all these grow in number and quality and be good and auspicious for me and for all.

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    Translation

    May my one and a half year old steer (tryavih) and my one and a half year old heifer, and my two years old bull (dityavat) and two years old cow, and my thirty months old bull (pancavih) and thirty months old cow, and my three years old bull (trivatsah) and three years old cow, and my four years old bull (turyavat) and my four years old cow be secured by means of sacrifice. (1)

    Notes

    26 and 27 enumerate the cows and bul s of various age groups and of various types.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ পশুপালনবিষয়মাহ ॥
    এখন পশুপালন বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–(মে) আমার (ত্র্যবিঃ) তিন প্রকারের মেষযুক্ত (চ) এবং ইহা হইতে ভিন্ন সামগ্রী (মে) আমার (ত্র্যবী) তিন প্রকার মেষ যুক্তা স্ত্রী (চ) এবং ইহা দ্বারা উৎপন্ন ঘৃতাদি (মে) আমার (দিত্যবাট্) খণ্ডিত ক্রিয়াগুলিতে সংঘটিত বিঘ্নকে পৃথককারী (চ) এবং তদ্সম্বন্ধীয় (মে) আমার (দিতৌহী) সেই সব ক্রিয়া প্রাপ্তকারী গাভি ইত্যাদি (চ) এবং তাহার রক্ষা (মে) আমার (পঞ্চাবীঃ) পাঁচ প্রকার মেষ যুক্ত (চ) এবং তাহার ঘৃতাদি (মে) আমার (পঞ্চাবী) পাঁচ প্রকার মেষ যুক্তা স্ত্রী (চ) এবং (মে) আমার (ত্রিবৎসঃ) তিন বৎস যুক্ত (চ) এবং তাহার বৎসাদি (মে) আমার (ত্রিবৎসা) তিন বৎসাযুক্তা গাভি (চ) এবং তাহার ঘৃতাদি (মে) আমার (তুর্য়্যবাট্) চতুর্থ বৎসর প্রাপ্ত হওয়া বলদ ইত্যাদি (চ) এবং ইহাকে কাজে লাগানো (মে) আমার (তুর্য়োহী) চতুর্থ বৎসর প্রাপ্ত গাভি (চ) এবং ইহার শিক্ষা এই সব পদার্থ (য়জ্ঞেন) পশুদের পালনের বিধান দ্বারা (কল্পন্তাম) সমর্থ হউক ॥ ২৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে গাভি ও মেষের উপলক্ষণ দ্বারা পশুদেরও গ্রহণ হয় । যে সব মনুষ্য পশুদেরকে বৃদ্ধি করে, তাহারা ইহাদের রস দ্বারা আঢ্য হয় ॥ ২৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ত্র্যবি॑শ্চ মে ত্র্য॒বী চ॑ মে দিত্য॒বাট্ চ॑ মে দিত্যৌ॒হী চ॑ মে॒ পঞ্চা॑বিশ্চ মে পঞ্চা॒বী চ॑ মে ত্রিব॒ৎসশ্চ॑ মে ত্রিব॒ৎসা চ॑ মে তুর্য়॒বাট্ চ॑ মে তুর্য়ৌ॒হী চ॑ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ২৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ত্র্যবিশ্চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । পশুবিদ্যাবিদাত্মা দেবতা । ব্রাহ্মী বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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