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यजुर्वेद अध्याय - 18

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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 77
    ऋषिः - उशना ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृद गायत्री स्वरः - षड्जः
    83

    त्वं य॑विष्ठ दा॒शुषो॒ नॄँः पा॑हि शृणु॒धी गिरः॑। रक्षा॑ तो॒कमु॒त त्मना॑॥७७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम्। य॒वि॒ष्ठ॒। दा॒शुषः॑। नॄन्। पा॒हि॒। शृ॒णु॒धि। गिरः॑। रक्ष॑। तो॒कम्। उ॒त। त्मना॑ ॥७७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वँयविष्ठ दाशुषो नऋृँ पाहि शृणुधी गिरः । रक्षा तोकमुत त्मना ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। यविष्ठ। दाशुषः। नॄन्। पाहि। शृणुधि। गिरः। रक्ष। तोकम्। उत। त्मना॥७७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 77
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सभेशसेनेशयोः कर्त्तव्यमाह॥

    अन्वयः

    हे यविष्ठ राजन्! त्वं दाशुषो नॄन् पाह्येतेषां गिरः शृणुधि, यो वीरो युद्धे म्रियेत तस्य तोकं त्मना रक्षोतापि स्त्रियादिकं च॥७७॥

    पदार्थः

    (त्वम्) सभेश (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (दाशुषः) विद्यादातॄन् (नॄन्) अध्यापकान् मनुष्यान् (पाहि) (शृणुधि) अत्र अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा॰६.३.१३७] इति दीर्घः। (गिरः) विदुषां विद्यासुशिक्षिता वाचः (रक्ष) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा॰६.३.१३५] इति दीर्घः। (तोकम्) पुत्रादिकम् (उत) (त्मना) आत्मना॥७७॥

    भावार्थः

    सभेशसेनेशयोर्द्वे कर्मणी अवश्यं कर्त्तव्ये स्त, एकं विदुषां पालनं तदुपदेशश्रवणञ्च, द्वितीयं युद्धे हतानामपत्यस्त्र्यादिपालनञ्चैवं समाचरतां पुरुषाणां सदैव विजयः श्रीः सुखानि च भवन्तीति विद्वद्भिर्ध्येयम्॥७७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब सभापति तथा सेनापति के कर्त्तव्य को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (यविष्ठ) पूर्ण युवास्था को प्राप्त राजन्! (त्वम्) तू (दाशुषः) विद्यादाता (नॄन्) मनुष्यों की (पाहि) रक्षा कर और इनकी (गिरः) विद्या शिक्षायुक्त वाणियों को (शृणुधि) सुन। जो वीर पुरुष युद्ध में मर जावे, उसके (तोकम्) छोटे सन्तानों की (उत) और स्त्री आदि की भी (त्मना) आत्मा से (रक्ष) रक्षा कर॥७७॥

    भावार्थ

    सभा और सेना के अधिष्ठाताओं को दो कर्म अवश्य कर्त्तव्य हैं, एक विद्वानों का पालन और उनके उपदेश का श्रवण, दूसरा युद्ध में मरे हुओं के सन्तान, स्त्री आदि का पालन। ऐसे आचरण करने वाले पुरुष के सदैव विजय, धन और सुख की वृद्धि होती है॥७७॥

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    विषय

    राजा का प्रजा और उनकी सन्तानों की रक्षा का कर्तव्य ।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो अ० १३/५२ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृद् गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    उशना की प्रार्थना

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र का उत्कील 'तेजस्विता की रक्षा' व यज्ञिय वृत्ति' के द्वारा प्रभु-प्राप्ति की कामना करनेवाला होने से 'उशनाः' नामवाला होता है। यह प्रभु की आराधना करता है कि (यविष्ठ) = हमारे दुर्गुणों को अधिक-से-अधिक पृथक् करनेवाले तथा सद्गुणों का हमारे साथ सम्पर्क करानेवाले प्रभो! [यु-मिश्रण व अमिश्रण] (त्वम्) = आप (दाशुषः) = आपके प्रति अपने को दे डालनेवाले, अपना अर्पण करनेवाले (नृ:) = हम लोगों को (पाहि) = रक्षित कीजिए। हमें दुर्गुणों से दूर व सद्गुणों के समीप करके हीनावस्था से बचाइए । २. (गिरः शृणुधी) = हमसे आप स्तुति-वाणियों को ही सुनिए, अर्थात् आपकी कृपा से हम ज्ञान से परिपूर्ण इन स्तुति - वाणियों को ही बोलनेवाले हों। हमारे मुख से कभी कोई अशुभ शब्द न निकले। ३. (उत) = और हे प्रभो! आप (त्मना) = स्वयं (तोकम्) = आपका पुत्र जो मैं हूँ उसकी (रक्ष) = रक्षा कीजिए। मैं आपका भजन करूँ आप मेरी रक्षा करें। आपकी कृपा से ही मैं आपका सुपुत्र बन पाऊँगा और आपका रक्षणीय होऊँगा। मेरी कामना है कि मैं आपको प्राप्त कर पाऊँ। ४. आपकी प्राप्ति के लिए [क] अधिक-से-अधिक अवगुणों को दूर करके सद्गुणों को प्राप्त करूँ [ यविष्ठ] [ख] आपके प्रति अपना अर्पण करनेवाला बनूँ [ दाशुषः] । [ग] मेरे मुख से ज्ञान व स्तुति की उत्तम वाणियाँ ही उच्चरित हों [गिरः ] [घ] मैं आपका सुपुत्र बनूँ [ तोकम्] ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु यविष्ठ हैं। दाश्वान् की रक्षा करते हैं। हमें चाहिए कि ज्ञान व स्तुति वाणियों का ही उच्चारण करें और प्रभु के सुपुत्र बनें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    सभा व सेनेच्या अधिष्ठात्यांनी दोन प्रकारची कर्तव्ये अवश्य पार पाडली पाहिजेत. एक म्हणजे विद्वानांचे पालन व त्यांच्या उपदेशाचे श्रवण. दुसरे युद्धात मृत्यू पावलेल्या व्यक्तींच्या स्री व पुत्रांचे पालन. अशा प्रकारचे आचरण करणाऱ्या माणसांना सदैव विजय धनाची प्राप्ती व सुखाची वृद्धी होते.

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    विषय

    पुढील मंत्रात सभापती व सेनापती यांच्या कर्तव्याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (यविष्ठ) पूर्ण युवा अशा हे राजा (त्वम्) तू (दाशुष:) विद्वा देणार्‍या (नृन्) मनुष्यांची (षाहि) रक्षा कर आणि त्या विद्वानांच्या (गिर:) विद्या, नीती, विज्ञान आदीनी युक्त अशा वचनांचे (त्यांच्या मंत्रणेचे, मार्गदर्शनाचे) (शृणुधि) श्रवण कर (त्यांचे म्हणणे ऐक) जे वीर सैनिक युद्धात कामीं येतील, त्यांच्या (तोकम्) लहान-लहान बालकांचे (उत) आणखी त्यांच्या पत्नी आदी परिवार जनांचे (त्मना) पूर्ण मनाने, सावध राहून (रक्ष) रक्षण कर व पालन कर ॥77॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राजसभेचे जे सदस्य आणि सैन्याचे जे अधिकारी असतात, त्यांनी दोन आवश्यक कर्में अवश्य करावीत- एक-राज्यातील विद्वज्जनांचे रक्षण-पालन आणि त्यांच्या उपदेशांचे श्रवण-दुसरे कर्तव्य कर्म हे की युद्धात मरण पावलेल्या सैनिकांच्या पाल्यांचे, पत्नी आदींचे पालन केले पाहिजे. असे आचरण करणार्‍या राजाधिकारी वा सभापुरुषांचा सदैव विजय होत असतो आणि त्याच्या सुखात वृद्धी होत जाते ॥77॥

    टिप्पणी

    या अठराव्या अध्यायात गणितविद्या, राजा-प्रजा, अध्ययन-अध्यापन करणारे लोक यांच्याविषयी वर्णन केले आहे. या अध्यायात जे जे विषय सांगितले आहेत, त्यांची संगती पूर्वीच्या सतराव्या अध्यायाशी आहे, असे जाणावे. ^यजुर्वेदाच्या अठरावा अध्याय समाप्त

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O most youthful king, guard the teachers who impart knowledge and listen to their sermons. Protect with all thy force the offspring and the ladies of those who have died in war.

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    Meaning

    Lord of life and humanity, ever young, generous giver, listen to the voice and prayers of the people. Protect and promote humanity, and preserve the race with the breath of life.

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    Translation

    O most youthful Lord, may you protect the men, who offer oblations (or who give liberally). Listen to their invocations. Protect the offsprings of the sacrificer as well as himself. (1)

    Notes

    Repeated from XIII. 52.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ সভেশসেনেশয়োঃ কর্ত্তব্যমাহ ॥
    এখন সভাপতি তথা সেনাপতির কর্ত্তব্যকে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (য়বিষ্ঠ) পূর্ণ যুবাবস্থা প্রাপ্ত রাজন্! (ত্বম্) তুমি (দাশুষঃ) বিদ্যাদাতা (নৃন্) মনুষ্যদিগের (পাহি) রক্ষা কর এবং ইহার (গিরঃ) বিদ্যা শিক্ষাযুক্ত বাণীগুলিকে (শৃনুতি) শোন ! যে বীর পুরুষ যুদ্ধে মারা যায় তাহার (তোকম্) ছোট সন্তানদিগের (উত) এবং স্ত্রী ইত্যাদিরও (ত্মনা) আত্মা দ্বারা (রক্ষ) রক্ষা কর ॥ ৭৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–সভা ও সেনার অধিষ্ঠাতাদের দুইটি কর্ম অবশ্য কর্ত্তব্য–প্রথম বিদ্বান্দের পালন এবং তাহাদের উপদেশ শ্রবণ, দ্বিতীয়–যুদ্ধে নিহত ব্যক্তিদের সন্তানাদির পালন । এইরকম আচরণকারী পুরুষের সদৈব বিজয়, ধন ও সুখের বৃদ্ধি হইয়া থাকে ॥ ৭৭ ॥
    এই অষ্টাদশ অধ্যায়ে গণিতবিদ্যা, রাজা-প্রজা এবং পঠন-পাঠনকারী পুরুষদিগের কর্মাদির বর্ণন দ্বারা এই অধ্যায়ে কথিত অর্থ পূর্ব অধ্যায়ে কথিত অর্থ সহ সঙ্গতি আছে–ইহা জানা উচিত ।
    ইতি শ্রীমৎপরমহংসপরিব্রাজকাচার্য়াণাং পরমবিদুষাং শ্রীয়ুতবিরজানন্দসরস্বতীস্বামিনাং শিষ্যেণ পরমহংসপরিব্রাজকাচার্য়েণ শ্রীমদ্দয়ানন্দসরস্বতীস্বামিনা নির্মিতে সুপ্রমাণয়ুক্তে সংস্কৃতার্য়্যভাষাভ্যাং বিভূষিতে য়জুর্বেদভাষ্যে অষ্টাদশোऽধ্যায়ঃ পূর্ত্তিমগাৎ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ত্বং য়॑বিষ্ঠ দা॒শুষো॒ নৃৃঁঃ পা॑হি শৃণু॒ধী গিরঃ॑ । রক্ষা॑ তো॒কমু॒ত ত্মনা॑ ॥ ৭৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ত্বমিত্যস্যোশনা ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । নিচৃদ্ গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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