Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 18

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 5
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - स्वराट् शक्वरी स्वरः - धैवतः
    142

    स॒त्यं च॑ मे श्र॒द्धा च॑ मे॒ जग॑च्च मे॒ धनं॑ च मे॒ विश्वं॑ च मे॒ मह॑श्च मे क्री॒डा च॑ मे॒ मोद॑श्च मे जा॒तं च॑ मे जनि॒ष्यमा॑णं च मे सू॒क्तं च॑ मे सुकृ॒तं च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒त्यम्। च॒। मे॒। श्र॒द्धा। च॒। मे॒। जग॑त्। च॒। मे॒। धन॑म्। च॒। मे॒। विश्व॑म्। च॒। मे॒। महः॑। च॒। मे॒। क्री॒डा। च॒। मे॒। मोदः॑। च॒। मे॒। जा॒तम्। च॒। मे॒। ज॒नि॒ष्यमा॑णम्। च॒। मे॒। सू॒क्तमिति॑ सुऽउ॒क्तम्। च॒। मे॒। सु॒कृ॒तमिति॑ सुऽकृ॒तम्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सत्यञ्च मे श्रद्धा च मे जगच्च मे धनञ्च मे विश्वञ्च मे महश्च मे क्रीडा च मे मोदश्च मे जातञ्च मे जनिष्यमाणञ्च मे सूक्तञ्च मे सुकृतञ्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सत्यम्। च। मे। श्रद्धा। च। मे। जगत्। च। मे। धनम्। च। मे। विश्वम्। च। मे। महः। च। मे। क्रीडा। च। मे। मोदः। च। मे। जातम्। च। मे। जनिष्यमाणम्। च। मे। सूक्तमिति सुऽउक्तम्। च। मे। सुकृतमिति सुऽकृतम्। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    मे सत्यं च मे श्रद्धा च मे जगच्च मे धनञ्च मे विश्वं च मे महश्च मे क्रीडा च मे मोदश्च मे जातञ्च मे जनिष्यमाणं च मे सूक्तं च मे सुकृतं च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥५॥

    पदार्थः

    (सत्यम्) यथार्थम् (च) सर्वहितम् (मे) (श्रद्धा) श्रत् सत्यं दधाति यया सा। श्रदिति सत्यनामसु पठितम्॥ (निघं॰३.१०) (च) एतत्साधनानि (मे) (जगत्) यद् गच्छति तत् (च) एतत्स्थाः सर्वे पदार्थाः (मे) (धनम्) सुवर्णादिकम् (च) धान्यम् (मे) (विश्वम्) सर्वम् (च) अखिलोपकरणम् (मे) (महः) महत्त्वयुक्तं पूज्यं वस्तु (च) सत्कारः (मे) (क्रीडा) विहारः (च) एतत्साधनम् (मे) (मोदः) हर्षः (च) परमानन्दः (मे) (जातम्) यावदुत्पन्नम् (च) यावदुत्पद्यते तावत् (मे) (जनिष्यमाणम्) उत्पत्स्यमानम् (च) यावत्तत्सम्बन्धि (मे) (सूक्तम्) सुष्ठु कथितम् (च) सुविचारितम् (मे) (सुकृतम्) पुण्यात्मकं सुष्ठु निष्पादितं कर्म (च) एतत्साधनानि (मे) (यज्ञेन) सत्यधर्मोन्नतिकरणेनोपदेशाख्येन (कल्पन्ताम्)॥५॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या विद्याध्ययनाध्यापनश्रवणोपदेशान् कुर्वन्ति कारयन्ति च ते नित्यमुन्नता जायन्ते॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (मे) मेरा (सत्यम्) यथार्थ विषय (च) और सब का हित करना (मे) मेरी (श्रद्धा) अर्थात् जिससे सत्य को धारण करते हैं (च) और उक्त श्रद्धा की सिद्धि देने वाले पदार्थ (मे) मेरा (जगत्) चेतन सन्तान आदि वर्ग (च) और उस में स्थिर हुए पदार्थ (मे) मेरा (धनम्) सुवर्ण आदि धन (च) और धान्य अर्थात् अनाज आदि (मे) मेरा (विश्वम्) सर्वस्व (च) और सबों पर उपकार (मे) मेरी (महः) बड़ाई से भरी हुई प्रशंसा करने योग्य वस्तु (च) और सत्कार (मे) मेरा (क्रीडा) खेलना विहार (च) और उसके पदार्थ (मे) मेरा (मोदः) हर्ष (च) और अति हर्ष (मे) मेरा (जातम्) उत्पन्न हुआ पदार्थ (च) तथा जो होता है (मे) मेरा (जनिष्यमाणम्) जो उत्पन्न होने वाला (च) और जितना उससे सम्बन्ध रखने वाला (मे) मेरा (सूक्तम्) अच्छे प्रकार कहा हुआ (च) और अच्छे प्रकार विचारा हुआ (मे) मेरा (सुकृतम्) उत्तमता से किया हुआ काम (च) और उसके साधन ये उक्त सब पदार्थ (यज्ञेन) सत्य और धर्म की उन्नति करने रूप उपदेश से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य विद्या का पठन-पाठन, श्रवण और उपदेश करते वा कराते हैं, वे नित्य उन्नति को प्राप्त होते हैं॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यज्ञ से सत्य, श्रद्धा, हर्ष, आनन्द, त्रैलौकिक ऐश्वर्य, धर्म, शुभ वाणी की प्राप्ति ।

    भावार्थ

    ( सत्यं च ) यथार्थ, सत्यभाषण और सर्वहित, ( श्रद्धा च ) सत्य धारणा, ( जगत् च ) जगत्, जंगम सम्पत्ति, ( धनं च ) सुवर्णादि धन, धान्य, ( विश्वं च ) समस्त स्थावर पदार्थ, ( क्रीड़ा च) क्रीड़ा, विनोद के साधन, ( मोदः च ) आनन्द, हर्ष, परमानन्द, ( जातं च ) उत्तम पुत्र पौत्रादि, अथवा उत्पन्न कृषि, सस्यादि ( जनिष्यमाणं च मे ) आगे उत्पन्न होने वाले ऐश्वर्य, ( सूक्तं च ) वेदमन्त्र, सुभाषित, सुविचार, ( सुकृतं च ) पुण्याचरण, ( मे ) मुझे ( यज्ञेन कल्पन्ताम् ) यज्ञ, धर्मानुष्ठान, ईश्वर कृपा, प्रजापालन व्यवहार और राज्यव्यवस्था द्वारा प्राप्त हों ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिः । स्वराट् शक्वरी । धैवतः ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सत्य+सुकृत

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र की ज्येष्ठता के लिए आवश्यक है कि (सत्यं च मे) = मुझमें यथार्थ भाषण हो, (श्रद्धा च मे) = मेरा परलोक व प्रभु में विश्वास हो। २. इनके साथ भौतिक ज्येष्ठता के लिए (जगत् च मे) = जंगम गवादि धन मुझे प्राप्त हो, (धनं च मे) = और सुवर्णादि धातुएँ मुझे प्राप्त हों। ३. (विश्वं च मे) = वह सबमें प्रविष्ट प्रभु मेरा हो और (महः च मे) = प्रभु-सम्पर्क से प्राप्त होनेवाली तेजस्विता [मह: दीप्ति] मेरी हो। ४. महस्वाला बनकर मैं (क्रीडा च मे) = संसार के सब घटनाचक्र को क्रीडा के रूप में देखनेवाला बनूँ। (मोदः च मे) = और क्रीडा-दर्शन से उत्पन्न आनन्द को सदा प्राप्त करूँ। ५. (जातं च मे) मेरा भूतकाल में भी विकास हुआ हो और (जनिष्यमाणं च मे) = भविष्यत् में भी मेरा विकास हो । ६. (सूक्तं च मे) = मेरे मुख से सदा (सु-उक्त) = मधुर शब्द उच्चरित हों और (सुकृतं च मे) = मेरा पुण्य (यज्ञेन) = प्रभु के संग से (कल्पन्ताम्) = सम्पन्न हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मैं सत्य व श्रद्धादि से अपने को परिपूर्ण करूँ ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे विद्येचे अध्ययन-अध्यापन, श्रवण व उपदेश करतात किंवा करवितात त्यांची (धन, धान्य, संतती व अनेक बाबतीत) सदैव उन्नती होते.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुनश्च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (उपासक परमेश्वराला प्रार्थना करीत आहे अथवा स्वत:च्या मनात हृढ इच्छा करीत आहे की) (मे) माझे (सत्यम्) यथार्थ ज्ञान (च) आणि सर्वांचे कल्याण करण्याची (इच्छा वा प्रवृत्ती) (सत्य आणि धर्मोपदेशाद्वारे) (अधिक समर्थ होत राहो) (मे) माझी (माझ्या मनातील) (श्रद्धा) श्रद्धा म्हणजे सत्यधारण करण्याची प्रवृत्ती (च) आणि ती श्रद्धा पूर्ण करणारे पदार्थ (अधिकाधिक समर्थ व्हावेत) (मे) माझे जे (जगत्) चेतन-वा जड (चर-अचर) जगत् (च) आणि त्यातील पदार्थ (तसेच (मे) माझे (धनम्) सुवर्ण आदी धन (च) आणि धान्य आदी पदार्थ (अधिक समर्थ व्हावेत) (मे) माझे (विश्वम्) सर्वस्व (च) आणि सर्वांवर उपकार करण्याची माझी भावना तसेच (मे) माझे (मह:) मोठेपण (उदारवृत्ती) असणारी प्रशंसनीय भावना (च) आणि त्याची कीर्ती (निरंतर वाढत राहो) (मे) माझे (क्रीडा) खेळणे, माझी आमोद-विहार आदी विषयांची वृत्ती (च) आणि त्यासाठी आवश्यक पदार्थ तसेच (मे) माझ्या मनातील (मोद:) आनंदीवृत्ती (च) आणि अति प्रसन्न राहण्याची इच्छा (अधिक समर्थ होत राहावी) (मे) आता होत आहे, ते पदार्थ तसेच (मे) मी (जमिष्म-माणम्) पुढे निर्मित करणार्‍या वस्तु (च) आणि त्या वस्तुंशी संबंधित सर्व काही (निरंतर समर्थ व सुखकर होवो) (मे) मी (सुत्कम्) उचारलेले उत्तम वचन (च) आणि चांगल्याप्रकारे चिंतन केलेले विचार तसेच (मे) माझे उत्तमरीत्या केलेले काम (च) आणि त्यासाठी उपयोगात करीत असलेल्या सत्य आणि धर्ममय उपदेशाद्वारे (कल्पन्ताम्) (अधिकाधिक) समर्थ होत राहोत. ॥5॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक विद्येचे (सत्यज्ञान आणि धर्माचे) पठन-पाठन करतात तसेच श्रवण आणि उपदेश करतात, वा करवितात, ते सदा-सर्वदा उन्नती प्राप्त करतात. ॥5॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May my truth and love for all, my faith and things that lead to its accomplishment, my progeny and their possessions, my wealth and food stuffs, my belongings and philanthropy, my beauty and honour, my play and sports materials, my enjoyment and extreme delight, my children born before and those born anew, my future children and my relation with them, my nice words and reflections, my pious acts and their aids prosper through true religious teachings.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    By yajna, Grace of God and observance of Dharma: Truth is mine and the good of all is mine to work for, faith is mine and the reason and basis of faith is mine, the dynamic world is mine and the sense of change is mine, the wealth is mine and the sense of value is mine, all life is mine and all its opportunities are mine, glory is mine and the respect for glory is mine, fun is mine and games are mine, joy of the world is mine and the freedom of liberation is mine, all that is born is mine and I am for it, all that is being created is for me and I am for it, all that will be created will be for me and I shall be for it, all that has been said well is for me and I am for it, all that has been well done is for me and I am for it, all these and all my good words, thoughts and deeds may grow and be firm and favourable for me and for all by virtue of yajna.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May my truthfulness and my faith, my cattle and my wealth, my entirety and my greatness, my sports and my enjoyment, my offsprings and my would-be offsprings, my pleasent talk and my pious actions be secured by means of sacrifice. (1)

    Notes

    Jagat, wealth that moves, cattle. Viśvam, entirety; all round excellence. Mahaḥ, greatness; brilliance.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–(মে) আমার (সত্যম্) যথার্থ বিষয় (চ) এবং সকলের হিত করা (মে) আমার (শ্রদ্ধা) শ্রদ্ধা অর্থাৎ যদ্দ্বারা সত্য ধারণ করে (চ) এবং উক্ত শ্রদ্ধার সিদ্ধি দিবার পদার্থ (মে) আমার (জগৎ) চেতন সন্তানাদি বর্গ (চ) এবং তাহাতে স্থির হওয়া পদার্থ (মে) আমার (ধনম্) সুবর্ণাদি ধন (চ) এবং ধান্য অর্থাৎ শস্যাদি (মে) আমার (বিশ্বম্) সর্বস্ব (চ) এবং সকলের উপর উপকার (মে) আমার (মহঃ) গর্ব পূর্ণ প্রশংসনীয় বস্তু (চ) এবং সৎকার (মে) আমার (ক্রীড়া) ক্রীড়া-বিহার (চ) এবং তাহার পদার্থ (মে) আমার (মোদঃ) হর্ষ (চ) এবং অতি হর্ষ (মে) আমার (জাতম্) উৎপন্ন পদার্থ (চ) তথা যাহা হইয়া থাকে (মে) আমার (জনিষ্যমানম্) যাহা উৎপন্ন হইবে (চ) এবং যত তাহার সঙ্গে সম্পর্কিত (মে) আমার (সূক্তম্) উত্তম প্রকার কথিত (চ) এবং উত্তম প্রকার বিচার্য (মে) আমার (সুকৃতম্) উত্তমতাপূর্বক কৃত কার্য্য (চ) এবং তাহার সাধন এই সব উক্ত সব পদার্থ (য়জ্ঞেন) সত্য ও ধর্মে উন্নতি করা রূপ উপদেশ দ্বারা (কল্পন্তাম্) সমর্থ হউক ॥ ৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে সব মনুষ্য বিদ্যার পঠন-পাঠন, শ্রবণ এবং উপদেশ করে বা করায় তাহারা নিত্য উন্নতি প্রাপ্ত হয় ॥ ৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    স॒ত্যং চ॑ মে শ্র॒দ্ধা চ॑ মে॒ জগ॑চ্চ মে॒ ধনং॑ চ মে॒ বিশ্বং॑ চ মে॒ মহ॑শ্চ মে ক্রী॒ডা চ॑ মে॒ মোদ॑শ্চ মে জা॒তং চ॑ মে জনি॒ষ্যমা॑ণং চ মে সূ॒ক্তং চ॑ মে সুকৃ॒তং চ॑ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সত্যং চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । প্রজাপতির্দেবতা । স্বরাট্ শক্বরী ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top