Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 18

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 3
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - भुरिक् शक्वरी स्वरः - धैवतः
    186

    ओज॑श्च मे॒ सह॑श्च मऽआ॒त्मा च॑ मे त॒नूश्च॑ मे॒ शर्म॑ च मे॒ वर्म॑ च॒ मेऽङ्गा॑नि च॒ मेऽस्थी॑नि च मे॒ परू॑षि च मे॒ शरी॑राणि च म॒ऽआयु॑श्च मे ज॒रा च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओजः॑। च॒। मे॒। सहः॑। च॒। मे॒। आ॒त्मा। च॒। मे॒। त॒नूः। च॒। मे॒। शर्म॑। च॒। मे॒। वर्म॑। च॒। मे॒। अङ्गा॑नि। च॒। मे॒। अस्थी॑नि। च॒। मे॒। परू॑षि। च॒। मे॒। शरी॑राणि। च॒। मे॒। आयुः॑। च॒। मे॒। ज॒रा। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओजस्च मे सहश्च मऽआत्मा च मे तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मेङ्गानि च मेस्थानि च मे परूँषि च मे शरीराणि च मऽआयुश्च मे जरा च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ओजः। च। मे। सहः। च। मे। आत्मा। च। मे। तनूः। च। मे। शर्म। च। मे। वर्म। च। मे। अङ्गानि। च। मे। अस्थीनि। च। मे। परूषि। च। मे। शरीराणि। च। मे। आयुः। च। मे। जरा। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    मे ओजश्च मे सहश्च म आत्मा च मे तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मेऽङ्गानि च मेऽस्थीनि च मे परूंषि च मे शरीराणि च म आयुश्च मे जरा च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥३॥

    पदार्थः

    (ओजः) शरीरस्थं तेजः (च) सेना (मे) (सहः) शारीरं बलम् (च) मानसम् (मे) (आत्मा) स्वस्वरूपम् (च) स्वसामर्थ्यम् (मे) (तनूः) शरीरम् (च) सम्बन्धिनः (मे) (शर्म) गृहम् (च) गृह्याः पदार्थाः (मे) (वर्म) रक्षकं कवचम् (च) शस्त्रास्त्राणि (मे) (अङ्गानि) (च) उपाङ्गानि (मे) (अस्थीनि) (च) अन्यान्तरङ्गानि (मे) (परूंषि) मर्मस्थलानि (च) जीवननिमित्तानि (मे) (शरीराणि) मत्सम्बन्धिनां देहाः (च) सूक्ष्मा देहावयवाः (मे) (आयुः) जीवनम् (च) जीवनसाधनानि (मे) (जरा) वृद्धावस्था (च) युवावस्था (मे) (यज्ञेन) सत्कर्त्तव्येन परमात्मना (कल्पन्ताम्)॥३॥

    भावार्थः

    राजपुरुषैः सबलाः सेनादयो धार्मिकरक्षणाय दुष्टताडनाय च प्रवर्त्तनीयाः॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (मे) मेरे (ओजः) शरीर का तेज (च) और मेरी सेना (मे) मेरे (सहः) शरीर का बल (च) तथा मन (मे) मेरा (आत्मा) स्वरूप और (च) मेरा सामर्थ्य (मे) मेरा (तनूः) शरीर (च) और सम्बन्धीजन (मे) मेरा (शर्म) घर (च) और घर के पदार्थ (मे) मेरी (वर्म) रक्षा जिससे हो, वह बख्तर (च) और शस्त्र-अस्त्र (मे) मेरे (अङ्गानि) शिर आदि अङ्ग (च) और अङ्गुलि आदि प्रत्यङ्ग (मे) मेरे (अस्थीनि) हाड़ (च) और भीतर के अङ्ग प्रत्यङ्ग अर्थात् हृदय मांस नसें आदि (मे) मेरे (परूंषि) मर्मस्थल (च) और जीवन के कारण (मे) मेरे (शरीराणि) सम्बन्धियों के शरीर (च) और अत्यन्त छोटे-छोटे देह के अङ्ग (मे) मेरी (आयुः) ऊमर (च) तथा जीवन के साधन अर्थात् जिनसे जीते हैं (मे) मेरा (जरा) बुढ़ापा (च) और जवानी ये सब पदार्थ (यज्ञेन) सत्कार के योग्य परमेश्वर से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें॥३॥

    भावार्थ

    राजपुरुषों को चाहिये कि धार्मिक सज्जनों की रक्षा और दुष्टों को दण्ड देने के लिये बली सेना आदि जनों को प्रवृत्त करें॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यज्ञ द्वारा ओज, शारीरिक बल, आत्मिक बल, सुख शस्त्रास्त्र बल, दृढ शरीर और शरीरांग, दीर्घ आयु और सुखी वार्धक्य की प्राप्ति ।

    भावार्थ

    (ओजः च) ओज, शरीर में स्थित तेजोमय धातु, (सहः च) शत्रु पराजय का बल, सहनशीलता, ( आत्मा च ) आत्मा, परमात्मा या इन्द्रियगण, ( तनूः च ) उत्तम दृढ़ शरीर ( शर्म च ) गृह और गृहोचित सुख, ( वर्मं च ) शरीररक्षक कवच, शस्त्रास्त्र, (अङ्गानि च ) देह के अंग उपाङ्ग, ( अस्थीनि च ) छोटी-बड़ी समस्त अस्थियाँ, (पपि च मे ) अंगुली आदि पोरू और मर्मस्थान, ( शरीराणि च ) शरीर के अन्य अवयव अथवा मेरे अन्यों के शरीर और सूक्ष्म देह; (आयुः च मे ) पूर्णायु और जीवनोपयोगी साधन, ( जरा च ) और वृद्धावस्था और यौवन आदि भी ( यज्ञेन ) सत् कर्मानुष्ठान और परमेश्वर की कृपा से ( मे कल्पन्ताम् ) मुझे प्राप्त हों ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिः। भुरिग् अतिशक्वरी । पंचमः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ओजः-जरा

    पदार्थ

    १. पिछला मन्त्र 'बल' पर समाप्त किया था। उसी बल का विस्तार प्रस्तुत मन्त्र में करते हैं। (ओजः च मे) = मेरा ओज = [ओज to increase] सब प्रकार की वृद्धि की कारणभूत शक्ति यज्ञ के द्वारा (कल्पन्ताम्) = सम्पन्न हो तथा सहश्च मे मुझमें सहनशक्ति हो। प्रकृति का ठीक प्रयोग करता हुआ मैं ओजस्वी बनूँ। ओजस्वी बनकर भौतिक व्याधियों को जीत पाऊँ तथा जीवों के साथ बर्ताव के लिए मुझमें सहनशक्ति हो । २. (आत्मा च मे तनूः च मे) = मैं आत्मा की शक्ति का वर्धन करूँ तथा शरीर की शक्ति का भी विकास करूँ। ऐहिक व आमुष्मिक सुख के लिए दोनों का समन्वय आवश्यक है । ३. (शर्म च मे वर्म च मे) = ज्ञान के द्वारा प्राप्त होनेवाला तथा वासनाओं की क्षीणता से प्राप्त होनेवाला सुख मुझे प्राप्त हो, जिससे मैं रोगरूप शत्रुओं के आक्रमण से बच पाऊँ । शर्मा बनूँ-वर्मा बनूँ- ब्राह्मशक्ति का विस्तार करूँ और क्षात्रशक्ति को बढ़ानेवाला बनूँ। इन शक्तियों के बढ़ाने पर (अङ्गानि च मे, अस्थीनि च मे) = मेरे हाथ आदि अवयव तथा सब अस्थियाँ यज्ञ द्वारा शक्तिसम्पन्न बनें। ५. (परुँषि च मे) = मेरी अंगुलियाँ आदि सब पर्व यज्ञ द्वारा शक्तिसम्पन्न हों तथा (शरीराणि च मे) = मेरे स्थूल, सूक्ष्म व कारण- सभी शरीर ठीक हों, ६. (आयुः च मे) = मेरा सारा जीवन यज्ञ से शक्तिसम्पन्न बने और (जरा च मे) = मेरी वृद्धावस्था भी यज्ञ से शक्तिसम्पन्न बने, अर्थात् वृद्धावस्था में भी मैं युवक की भाँति शक्तिसम्पन्न होकर कार्य करता रहूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मैं ओजस्वी बनूँ वृद्धावस्था तक युवक के समान शक्तिसम्पन्न बना रहूँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    राज पुरुषांनी धार्मिक सज्जनांचे रक्षण व दुष्टांना दंड देण्यासाठी शरीराचे सर्व अवयव (मन, मस्तक, हृदय, अस्थि, मर्मस्थळ, अंगप्रत्यंग) सुदृढ करून धार्मिक सज्जनांचे रक्षण व दुष्टांना दंड देण्यासाठी सेनेला बलवान बनवून तयार ठेवावे.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुनश्च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (मे) माझ्या (ओज:) शरीराचे तेज (च) आणि माझे सैन्य तसेच (मे) माझ्या (सह:) शरीरातील सबळ (च) आणि मन (ईश्वरोपासनेमुळे समर्थ व्हावेत) (मे) माझे (आत्मा) स्वरूप (च) आणि माझे सामर्थ्य तसेच (मे) माझें (तनू:) शरीर (च) आणि संबंधी लोक (माझ्यासाठी सामर्थ्य व सुख देणारे होवोत) (मे) माझे (शर्म) घर (च) आणि घरातील पदार्थ तसेच (मे) माझे रक्षण करण्याचे साधन कवच (कवच) (च) आणि माझे अस्त्र-शस्त्र (संहार करण्यात समर्थ होवोत) (मे) माझ्या (अड्नि) शरीरातील शिर आदी अंग (च) अंगुली आदी प्रत्यंग तसेच (मे) माझ्या (अस्थीनि) शरीरातील अस्थीसमूह (च) आणि त्यातील अंग प्रत्यंग म्हणजे हृदय, मांस, शिरा आदी प्रस्यंम (सुखकारी व समर्थ राहोत) (मे) माझे (परूंषि) मर्मस्थळ (च) जीवन-रक्षणाची साधनें (च) तसेच (मे) माझ्या (शरीराणि) नातेवाईकांचे शरीर (च) आणि त्यांचे अत्यंत लहान-लहान शीरावयव (सर्व सुखकारी होवोत) (मे) माझे (अष्यु:) आयुष्य (च) आणि जीवनाचे साधनें तसेच (मे) माझी (जरा) वृद्धावस्था (च) युवावस्था हे सर्व पदार्थ (यज्ञेन) सत्करणीय उपासणीय परमेश्वराच्या उपासनेमुळे (कल्पन्ताम्) समर्थ व सुखकारी व्हावेत ॥3॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राजपुरुषांचे कर्तव्य आहे की त्याती धार्मिक सज्जनांचे रक्षण करावे आणि दुर्जनांना दंडित करण्यासाठी बली सैन्य ठेवावे आणि (सैन्याचा वरील दोन उद्दिष्टांकरिता) उपयोग करावा ॥3॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May my energy and my army, my soul and my body, my house and my armour, my limbs and my bones, my joints and my relatives bodies, my life and my resources, my old age and youth prosper through the grace of God.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    My vigour and my power, my victory and my moral courage, my soul and my potential, my body and health, my home and my family, my defence and my weapons, my limbs and their functions, my bones and my blood, my generation and my vitality, the bodies and health of my people, my life and longevity, my old age and self-dependence, all these may grow, be good and auspicious, for me and for all by yajna, observance of Dharma, law and joint and individual discipline.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May my vigour and my endurance, my spirit and my body, my shelter and my armour, my limbs and my bones, my joints and my extremities, my life and my old age be secured by means of sacrifice. (1)

    Notes

    Parūmnși, joints. Sarīrāni, extremities, fingers and toes. Jarā, old age. Ayuh, my long life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–(মে) আমার (ওজঃ) শরীরের তেজ (চ) এবং আমার সেনা (মে) আমার (সহঃ) শরীরের বল (চ) তথা মন (মে) আমার (আত্মা) স্বরূপ এবং (চ) আমার সামর্থ্য (মে) আমার (তনূঃ) শরীর (চ) এবং সম্পর্কীয় ব্যক্তি (মে) আমার (শর্ম) গৃহ (চ) এবং গৃহের পদার্থ (মে) আমার (বর্ম) রক্ষা যাহাতে হয় সেই কবচ (চ) এবং অস্ত্র শস্ত্র (মে) আমার (অঙ্গানি) শিরাদি অঙ্গ (চ) এবং অঙ্গুলি আদি প্রত্যঙ্গ (মে) আমার (অস্থীনি) অস্থি (চ) এবং ভিতরের অঙ্গ প্রত্যঙ্গ অর্থাৎ হৃদয়, মাংস, শিরাদি (মে) আমার (পরূংষি) মর্মস্থল (চ) এবং জীবনের কারণ (মে) আমার (শরীরাণি) সম্পর্কীয়দের শরীর (চ) এবং অত্যন্ত ক্ষুদ্র ক্ষুদ্র দেহের অঙ্গ (মে) আমার (আয়ুঃ) আয়ু (চ) তথা জীবনের সাধন অর্থাৎ যাহার দ্বারা বাঁচিয়া আছি । (মে) আমার (জরা) বৃদ্ধত্ব (চ) এবং যৌবনের সকল পদার্থ (য়জ্ঞেন) সৎকারের যোগ্য পরমেশ্বর দ্বারা (কল্পন্তাম্) সমর্থ হউক ॥ ৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ– রাজপুরুষদিগের উচিত যে, ধার্মিক সজ্জনদিগের রক্ষা এবং দুষ্টদিগকে দন্ড দিবার জন্য বলবান্ সেনাদি ব্যক্তিদিগকে প্রবৃত্ত করিবে ॥ ৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ওজ॑শ্চ মে॒ সহ॑শ্চ মऽআ॒ত্মা চ॑ মে ত॒নূশ্চ॑ মে॒ শর্ম॑ চ মে॒ বর্ম॑ চ॒ মেऽঙ্গা॑নি চ॒ মেऽস্থী॑নি চ মে॒ পরূ॑ᳬंষি চ মে॒ শরী॑রাণি চ ম॒ऽআয়ু॑শ্চ মে জ॒রা চ॑ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ওজশ্চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । প্রজাপতির্দেবতা । ভুরিক্ শক্বরী ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top