यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 7
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - प्रजापतिर्देवता
छन्दः - भुरितिजगती
स्वरः - निषादः
109
य॒न्ता च॑ मे ध॒र्त्ता च॑ मे॒ क्षेम॑श्च मे॒ धृति॑श्च मे॒ विश्वं॑ च मे॒ मह॑श्च मे सं॒विच्च॑ मे॒ ज्ञात्रं॑ च मे॒ सूश्च॑ मे प्र॒सूश्च॑ मे॒ सीरं॑ च मे॒ लय॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥७॥
स्वर सहित पद पाठय॒न्ता। च॒। मे॒। ध॒र्त्ता। च॒। मे॒। क्षेमः॑। च॒। मे॒। धृतिः॑। च॒। मे॒। विश्व॑म्। च॒। मे॒। महः॑। च॒। मे॒। सं॒विदिति॑ स॒म्ऽवित्। च॒। मे॒। ज्ञात्र॑म्। च॒। मे॒। सूः। च॒। मे॒। प्र॒सूरिति॑ प्र॒ऽसूः। च॒। मे॒। सीर॑म्। च॒। मे॒। लयः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्ता च मे धर्ता च मे क्षेमश्च मे धृतिश्च मे विश्वञ्च मे महश्च मे सँविच्च मे ज्ञात्रञ्च मे सूश्च मे प्रसूश्च मे सीरञ्च मे लयश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
यन्ता। च। मे। धर्त्ता। च। मे। क्षेमः। च। मे। धृतिः। च। मे। विश्वम्। च। मे। महः। च। मे। संविदिति सम्ऽवित्। च। मे। ज्ञात्रम्। च। मे। सूः। च। मे। प्रसूरिति प्रऽसूः। च। मे। सीरम्। च। मे। लयः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
मे यन्ता च मे धर्त्ता च मे क्षेमश्च मे धृतिश्च मे विश्वं च मे महश्च मे संविच्च मे ज्ञात्रं च मे सूश्च मे प्रसूश्च मे सीरं च मे लयश्च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥७॥
पदार्थः
(यन्ता) नियमकर्त्ता (च) नियतः (मे) (धर्त्ता) धारकः (च) धृतः (मे) (क्षेमः) रक्षणम् (च) रक्षकः (मे) (धृतिः) धरन्ति यया सा (च) क्षमा (मे) (विश्वम्) अखिलं जगत् (च) एतदनुकूला क्रिया (मे) (महः) महत् (च) महान् (मे) (संवित्) प्रतिज्ञा (च) विज्ञातम् (मे) (ज्ञात्रम्) जानामि येन (च) ज्ञातव्यम् (मे) (सूः) या सुवति प्रेरयति सा (च) उत्पन्नम् (मे) (प्रसूः) या प्रसूतम्, उत्पादयति सा (च) प्रसवः (मे) (सीरम्) कृषिसाधकं हलादिकम् (च) कृषीवलाः (मे) (लयः) लीयन्ते यस्मिन् सः (च) लीनम् (मे) (यज्ञेन) सुनियमानुष्ठानाख्येन (कल्पन्ताम्)॥७॥
भावार्थः
ये शमदमादिगुणान्विताः सुनियमान् पालयेयुस्ते स्वाभीष्टानि साधयेयुः॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(मे) मेरा (यन्ता) नियम करने वाला (च) और नियमित पदार्थ (मे) मेरा (धर्त्ता) धारण करने वाला (च) और धारण किया हुआ पदार्थ (मे) मेरी (क्षेमः) रक्षा (च) और रक्षा करने वाला (मे) मेरी (धृतिः) धारणा (च) और सहनशीलता (मे) मेरे सम्बन्ध का (विश्वम्) जगत् (च) और उसके अनुकूल मर्यादा (मे) मेरा (महः) बड़ा कर्म (च) और बड़ा व्यवहार (मे) मेरी (संवित्) प्रतिज्ञा (च) और जाना हुआ विषय (मे) मेरा (ज्ञात्रम्) जिससे जानता हूं, वह ज्ञान (च) और जानने योग्य पदार्थ (मे) मेरी (सूः) प्रेरणा करने वाली चित्त की वृत्ति (च) और उत्पन्न हुआ पदार्थ (मे) मेरी (प्रसूः) जो उत्पत्ति करानेवाली वृत्ति (च) और उत्पत्ति का विषय (मे) मेरे (सीरम्) खेती की सिद्धि कराने वाले हल आदि (च) और खेती करने वाले तथा (मे) मेरा (लयः) लय अर्थात् जिसमें एकता को प्राप्त होना हो, वह विषय (च) और जो मुझ में एकता को प्राप्त हुआ, वह विद्यादि गुण। ये उक्त सब (यज्ञेन) अच्छे नियमों के आचरण से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥७॥
भावार्थ
जो शम, दम आदि गुणों से युक्त अच्छे-अच्छे नियमों को भलीभांति पालन करें, वे अपने चाहे हुए कामों को सिद्ध करावें॥७॥
विषय
यज्ञ से उत्तम प्रबन्धकर्त्ता, उत्तम, ज्ञान, धैर्य, अधिकार, सन्तान, कृषि, आदि की प्राप्ति ।
भावार्थ
( यन्ता च ) नियमकर्त्ता, या अश्वादि का नियन्ता, या राष्ट्र, को नियम में रखने वाला और ( धर्त्ता च ) धारण-पोषण करने वाला पुरुष, ( क्षेमः च ) राष्ट्र आदि सम्पदा का संरक्षण, ( धृतिः च) धैर्य, आपत्ति में भी चित्त की स्थिरता, ( विश्वं च ) समस्त अनुकूल पदार्थ, ( महः च ) यश, आदर, ( संवित् च ) उत्तम प्रतिज्ञा, या वेदशास्त्र का उत्तम ज्ञान, ( ज्ञात्रम् ) ज्ञान साधन और उत्कृष्ट विज्ञानसामर्थ्य, ( सूः च) पुत्र और भृत्यादि को आज्ञा करने का सामथ्य और ( प्रसूः ) पुत्र आदि उत्पन्न करने का सामर्थ्य, उत्पन्न करने हारी माता, (सीरं च) कृषि के साधन हल आदि और अन्न आदि और ( लय: च ) कृषि आदि की बाधाओं के विनाशक साधन ये सब ( मे ) मुझे ( यज्ञेन ) पूर्वोक्त यज्ञ, से प्राप्त हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः । भुरिगतिजगती । निषादः ॥
विषय
यन्ता-लयः
पदार्थ
१. पिछले मन्त्र में 'सुदिन' पर समाप्ति हुई थी कि मेरा सारा दिन उत्तमता से बीते । यह उत्तमता से बीत तभी सकता है यदि मैं इन इन्द्रियाश्वों को आत्मवश्य करके विचरण करूँ, इसीलिए प्रस्तुत मन्त्र का प्रारम्भ इस प्रकार करते हैं कि (यन्ता च मे) = [यन्ता = यन्तृत्व] मेरा आत्मा इस शरीर रथ में जुते हुए इन्द्रियाश्वों का नियन्त्रण करनेवाला हो और (धर्ता च मे) = इनको धारण करनेवाला बने। इन वाणी आदि इन्द्रियों को मन में धारण करे, मन को बुद्धि में, बुद्धि को आत्मा में और आत्मा को परमात्मा में धारण करने का अभ्यास करे। २. इस धारण से (क्षेमश्च मे) = मेरा कल्याण हो अथवा विद्यमान धन की रक्षणशक्ति मुझमें हो । (धृतिः च मे) = आपत्तियों में भी मैं धीर व स्थिर चित्तवाला बनूँ। ३. (विश्वं च मे) = धैर्य के द्वारा मैं सम्पूर्ण संसार में प्रविष्ट परमात्मा को भी प्राप्त करूँ और (महः च मे) = मुझमें प्रभुपूजा की प्रवृत्ति हो । ४. (संवित् च मे) = प्रभु - पूजा से वेदशास्त्र - ज्ञान हमारा हो और, (ज्ञात्रं च मे) = मेरा विज्ञान - सामर्थ्य यज्ञ के द्वारा चमके । ५. (सूः च मे) मुझमें प्रेरणाशक्ति हो। मैं अपने पुत्रादि को उत्तम प्रेरणा दे सकूँ और (प्रसूः च मे) = मुझमें उत्पादन - सामर्थ्य हो । ६. धनादि के उत्पादन के लिए सीरं च मे हल मेरा हो। हल से भूमि को जोतकर मैं उत्तम धान्यों को प्राप्त करूँ और अन्त में (लयः च मे) = कृषि आदि के प्रतिबन्धों को विलीन कर कृषि को उन्नत करूँ। हमारी ये सब वस्तुएँ (यज्ञेन कल्पन्ताम्) = प्रभु- सम्पर्क द्वारा सम्पन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ- हम इन्द्रियाश्वों का नियमन करके उनको मन में धारण करें, जिससे अपने क्षेम का साधन कर सकें।
मराठी (2)
भावार्थ
जे शम, दम इत्यादी गुणांनी युक्त होऊन चांगल्या नियमांचे योग्यप्रकारे पालन करतात. ते आपले इच्छित कार्य सिद्ध करू शकतात.
विषय
पुनश्च, पुढील मंत्रात तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (मे) माझा (यन्ता) नियामक वा नियमकर्ता (च) आणि त्याने नियनित वा नियंत्रित केलेले पदार्थ (जगन्नियन्ता परमेश्वराद्वारे उत्पन्न या जगातील सर्व पदार्थ माझ्यासाठी) (समर्त वा प्रेरणादायी असावेत) (च) आणि (मे) माझा धारणकर्ता (परमात्मा) (च) आणि मी धारण केलेले पदार्थ तसेच (मे) माझे (क्षेम:) क्षेम (च) आणि माझे क्षेम व रक्षण करणारा परमेश्वर (अथवा माझा रक्षक) (मे) माझी धारणावृत्ती (च) आणि सहनशीलता (माझ्यासाठी अनुकुल राहो) (मे) माझ्याशी संबंधित (विश्वम्) जगत (च) आणि जगातील मर्यादा अथवा नियम-व्यवस्था तसेच (मे) माझे (मह:) महिमामय कर्म (च) आणि माझी मोठी कामें (समर्थ असावीत) (मे) माझी (संवित) प्रतिज्ञा (निर्धार वा संकल्प) (च) आणि ज्ञात केलेले विषय तसेच (मे) माझे (ज्ञात्रम्) ज्ञान (च) आणि ज्ञानाद्वारे प्राप्त पदार्थ (समर्थ वा अनुकूल असावेत) (मे) मला (सू:) प्रेरणा देणारी चित्तवृत्ती (च) आणि उत्पन्न पदार्थ तसेच (मे) माझी (प्रसू:) उत्पत्तीविषयी (नवनिर्माणाविषयी) प्रेरणा देणारी वृत्ती (च) आणि उत्पन्न विषय (माझ्यासाठी अनुकूल असावेत) (मे) माझी (सीरम्) शेतीसाठी आवश्यक असलेली नांगर आदी साधनें (च) आणि शेती करणारे कृषक तसेच (मे) माझी (लय:) वस्तू वा कर्तव्याविषयी एकाकार होणारी वृत्ती, त्याचे विषय आणि माझ्याशी एकात्म झालेले विद्या आदी गुण आहेत, ते सर्व (यज्ञेन) मला नियमितपणे वा नेहमी सदाचरणाकडे (कल्पन्ताम्) नेवोत (नियम मला अधिक समर्थ बनविणारे वा सदाचार युक्त करणारे होवोत-मी सदा नियमाने वागावे) ॥7॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक शम, दम आदी गुणांनी युक्त अशा उत्तम नियमांचे पालन करणारे असतात, ते आपले इच्छित उद्दिष्ट अवश्य प्राप्त करतात ॥7॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May my leader and well-controlled possessions, my supporters and accepted truths, my protection and protector, my finances and toleration, my world and obedience to its laws, my mighty deeds and fair dealings, my determination and knowledge, my understanding and objects worth knowing, my impulses and thoughts, my propagation and eugenics, my plough and cultivators, my concentration and learning, prosper by following noble principles.
Meaning
My ruler and my observance of the rules, my sustainer and supports, my security and the protector, my constancy and self-protection, my world around and my behaviour, my nobility and noble actions, my awareness and self-knowledge, my field of specialisation and my achievement, my inspiration and initiative, my potency of generation and my children, my agriculture and the farmers, my house and my property, all these may grow, be strong and firm and good and auspicious for me and for all by yajna, personal endeavour, corporate action and the Grace of God.
Translation
May my controlling and sustaining power, my capacity to retain and my firmness, my entirety and my greatness, my knowledge and capacity to understand, my control over my family and my power to beget, my plough and my harrow be secured by means of sacrifice. (1)
Notes
Suḥ, control over family. Prasuḥ, power to beget.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(মে) আমার (য়ন্তা) নিয়মকারী (চ) এবং নিয়মিত পদার্থ (মে) আমার (ধর্ত্তা) ধারণকারী (চ) এবং ধারণা করা পদার্থ (মে) আমার (ক্ষেমঃ) রক্ষা (চ) এবং রক্ষাকারী (মে) আমার (ধৃতিঃ) ধারণা (চ) এবং সহ্যশীলতা (মে) আমার সম্পর্কের (বিশ্বম্) জগৎ (চ) এবং তাহার অনুকূল মর্যাদা (মে) আমার (মহঃ) মহৎ কর্ম (চ) এবং মহৎ ব্যবহার (মে) আমার (সংবিৎ) প্রতিজ্ঞা (চ) এবং জানা বিষয় (মে) আমার (জ্ঞাত্রম্) যদ্দ্বারা জানি সেই জ্ঞান (চ) এবং জানিবার যোগ্য পদার্থ (মে) আমার (সূঃ) প্রেরণাকারিণী চিত্তবৃত্তিঃ (চ) এবং উৎপন্ন পদার্থ (মে) আমার (প্রসূঃ) যাহা উৎপন্নকারিণী বৃত্তি (চ) এবং উৎপত্তির বিষয় (মে) আমার (সীরম্) কৃষি সিদ্ধকারী হলাদি (চ) এবং কৃষিকর্মকারী তথা (মে) আমার (লয়ঃ) লয় অর্থাৎ যন্মধ্যে একতা প্রাপ্ত হইবে সেই বিষয় (চ) এবং যা আমা মধ্যে একতা প্রাপ্ত সেই বিদ্যাদি গুণ এই সব উক্ত সব (য়জ্ঞেন) উত্তম নিয়মের আচরণ দ্বারা (কল্পন্তাম্) সমর্থ হউক ॥ ৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যাহারা শম, দমাদি গুণযুক্ত উত্তম উত্তম নিয়মগুলিকে ভালমতো পালন করিবে তাহারা তাহাদের আকাঙ্ক্ষিত কর্মকে সিদ্ধ করাইবে ॥ ৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়॒ন্তা চ॑ মে ধ॒র্ত্তা চ॑ মে॒ ক্ষেম॑শ্চ মে॒ ধৃতি॑শ্চ মে॒ বিশ্বং॑ চ মে॒ মহ॑শ্চ মে সং॒বিচ্চ॑ মে॒ জ্ঞাত্রং॑ চ মে॒ সূশ্চ॑ মে প্র॒সূশ্চ॑ মে॒ সীরং॑ চ মে॒ লয়॑শ্চ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ন্তা চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । প্রজাপতির্দেবতা । ভুরিগতিজগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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