यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 20
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - यज्ञानुष्टानात्मा देवता
छन्दः - स्वराडतिधृतिः
स्वरः - षड्जः
107
आ॒ग्र॒य॒णश्च॑ मे वैश्वदे॒वश्च॑ मे ध्रु॒वश्च॑ मे वैश्वान॒रश्च॑ मऽऐन्द्रा॒ग्नश्च॑ मे म॒हावै॑श्वदेवश्च मे मरुत्व॒तीया॑श्च मे॒ निष्के॑वल्यश्च मे सावि॒त्रश्च॑ मे सारस्व॒तश्च॑ मे पात्नीव॒तश्च॑ मे हारियोज॒नश्च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥२०॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ग्र॒य॒णः। च॒। मे॒। वै॒श्व॒दे॒व इति॑ वैश्वऽदे॒वः। च॒। मे॒। ध्रु॒वः। च॒। मे॒। वै॒श्वा॒न॒रः। च॒। मे॒। ऐ॒न्द्रा॒ग्नः। च॒। मे॒। म॒हावै॑श्वदेव॒ इति॑ म॒हाऽवै॑श्वदेवः। च॒। मे॒। म॒रु॒त्व॒तीयाः॑। च॒। मे॒। निष्के॑वल्यः। निःके॑वल्य॒ इति॒ निःऽके॑वल्यः। च॒। मे॒। सा॒वि॒त्रः। च॒। मे॒। सा॒र॒स्व॒तः। च॒। मे॒। पा॒त्नी॒व॒त इति॑ पात्नीऽव॒तः। च॒। मे॒। हा॒रि॒यो॒ज॒न इति॑ हारिऽयोज॒नः। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२० ॥
स्वर रहित मन्त्र
आग्रयाणश्च मे वैश्वदेवश्च मे धु्रवश्च मे वैश्वानरश्च मऽऐन्द्राग्नश्च मे महावैश्वदेवश्च मे मरुत्वतीयाश्च मे निष्केवल्यश्च मे सावित्रश्च मे सारस्वतश्च मे पत्नीवतश्च मे हारियओजनश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
आग्रयणः। च। मे। वैश्वदेव इति वैश्वऽदेवः। च। मे। ध्रुवः। च। मे। वैश्वानरः। च। मे। ऐन्द्राग्नः। च। मे। महावैश्वदेव इति महाऽवैश्वदेवः। च। मे। मरुत्वतीयाः। च। मे। निष्केवल्यः। निःकेवल्य इति निःऽकेवल्यः। च। मे। सावित्रः। च। मे। सारस्वतः। च। मे। पात्नीवत इति पात्नीऽवतः। च। मे। हारियोजन इति हारिऽयोजनः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥२०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
म आग्रयणश्च मे वैश्वदेवश्च मे ध्रुवश्च मे वैश्वानरश्च म ऐन्द्राग्नश्च मे महावैश्वदेवश्च मे मरुत्वतीयाश्च मे निष्केवल्यश्च मे सावित्रश्च मे सारस्वतश्च मे पात्नीवतश्च मे हारियोजनश्च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥२०॥
पदार्थः
(आग्रयणः) मार्गशीर्षादिमासनिष्पन्नो यज्ञविशेषः (च) (मे) (वैश्वदेवः) विश्वेषां देवानामयं सम्बन्धी (च) (मे) (ध्रुवः) निश्चलः (च) (मे) (वैश्वानरः) विश्वेषां सर्वेषां नराणामयं सत्कारः (च) (मे) (ऐन्द्राग्नः) इन्द्रो वायुरग्निर्विद्युच्च ताभ्यां निर्वृत्तः (च) (मे) (महावैश्वदेवः) महतां विश्वेषां सर्वेषामयं व्यवहारः (च) (मे) (मरुत्वतीयाः) मरुतां सम्बन्धिनो व्यवहाराः (च) (मे) (निष्केवल्याः) नितरां केवलं सुखं यस्मिंस्तस्मिन् भवः (च) (मे) (सावित्रः) सवितुः सूर्यस्यायं प्रभावः (च) (मे) (सारस्वतः) सरस्वत्या वाण्या अयं सम्बन्धी (च) (मे) (पात्नीवतः) प्रशस्ता पत्नी यज्ञसम्बन्धिनी तद्वतोऽयम् (च) (मे) (हारियोजनः) हरीणामश्वानां योजयिता तस्यायमनुक्रमः (च) (मे) (यज्ञेन) संगतिकरणेन (कल्पन्ताम्)॥२०॥
भावार्थः
ये मनुष्यास्सामयिकीं क्रियां विद्वत्सङ्गं चाश्रित्य विवाहितस्त्रीव्रता भवेयुस्ते पदार्थविद्यां कुतो न जानीयुः॥२०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(मे) मेरा (आग्रयणः) अगहन आदि महीनों में सिद्ध हुआ यज्ञ (च) और इसकी सामग्री (मे) मेरा (वैश्वदेवः) समस्त विद्वानों से सम्बन्ध करने वाला विचार (च) और इसका फल (मे) मेरा (ध्रुवः) निश्चल व्यवहार (च) और इसके साधन (मे) मेरा (वैश्वानरः) सब मनुष्यों का सत्कार (च) तथा सत्कार करने वाला (मे) मेरा (ऐन्द्राग्नः) पवन और बिजुली से सिद्ध काम (च) और इसके साधन (मे) मेरा (महावैश्वदेवः) समस्त बड़े लोगों का यह व्यवहार (च) इनके साधन (मे) मेरे (मरुत्वतीयाः) पवनों का सम्बन्ध करनेहारे व्यवहार (च) तथा इनका फल (मे) मेरा (निष्केवल्यः) निरन्तर केवल सुख हो जिसमें वह काम (च) और इसके साधन (मे) मेरा (सावित्रः) सूर्य का यह प्रभाव (च) और इससे उपकार (मे) मेरा (सारस्वतः) वाणी सम्बन्धी व्यवहार (च) और इनका फल (मे) मेरा (पात्नीवतः) प्रशंसित यज्ञसम्बन्धिनी स्त्री वाले का काम (च) इसके साधन (मे) मेरा (हारियोजनः) घोड़ों को रथ में जोड़ने वाले का यह आरम्भ (च) इसकी सामग्री (यज्ञेन) पदार्थों के मेल करने से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥२०॥
भावार्थ
जो मनुष्य कार्यकाल की क्रिया और विद्वानों के सङ्ग का आश्रय लेकर विवाहित स्त्री का नियम किये हों, वे पदार्थविद्या को क्यों न जानें॥२०॥
विषय
आग्रयण आदि राज्यांगों की प्राप्ति।
भावार्थ
( आग्रयण: च ) आग्रयण और मार्गशीर्ष का विशेष यज्ञ, (वैश्वदेव: च ) वैश्वदेव, ( ध्रुवः च) ध्रुव, ( वैश्वानरः च ) वैश्वानर और ( इन्द्रान: च ) इन्द्र-अग्नि का पद, ( महावैश्वदेवः च) महावैश्वदेव, ( मरुत्वतीयाः च ) मरुत्वतीय, (निष्कैवल्यः च) निष्कैवल्य, मोक्षोपदेश, ( सावित्रः च ) सावित्र, ( सारस्वतः च ) सारस्वत, ( पात्नीवतः च ) पात्नीवत् और ( हारियोजनः च) हारियोजन ये समस्त राज्यांग भौर राज्यान्तर्गत अधिकार ( मे ) मेरे ( यज्ञेन कल्पन्ताम् ) परस्पर की संगठित व्यवस्था से अधिक बलवान् हो । मन्त्र १९ से २१ तक पठित अन्तयोम आदि परिभाषाओं का वर्णन अध्याय ७ मन्त्र ४० तक और अ० ८ मन्त्र ७ - २१ तक देखो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यज्ञानुष्ठानात्मा । स्वराड् अतिधृतिः । षड्जः ॥
विषय
आग्रयण-हारियोजन [यज्ञविशेषाः]
पदार्थ
१. (आग्रयणः च मे) = [अग्रे अयनं येन ] मेरे अन्दर आगे चलने की वृत्ति हो और इसी वृत्ति के परिणामरूप (वैश्वदेवः च मे) = मेरा जीवन सब दिव्य गुणोंवाला हो । २. (ध्रुवः च मे) = मुझमें ध्रुवता - न्यायमार्ग से विचलित न होने की भावना हो तथा (वैश्वानरः च मे) = मेरा जीवन विश्वनरहित की भावना से ओत-प्रोत हो। मैं सब लोगों का भला करनेवाला बनूँ । ३. (ऐन्द्राग्नः च मे) = मेरा जीवन-यज्ञ इन्द्र व अग्नि देवतावाला हो। मैं जितेन्द्रिय बनूँ और आगे बढूँ। जितेन्द्रिय बनने व आगे बढ़ने के परिणामस्वरूप (महावैश्वदेवः च मे) = मेरा जीवन महनीय विश्वदेवोंवाला हो, अथवा महनीय विश्वदेवों के पुञ्ज प्रभुवाला हो। ४. (मरुत्वतीयाः च मे) = उस प्रभुवाला बनने के लिए मरुत्वतीय यज्ञ मुझमें चलें। मरुत् अर्थात् मैं नियमितरूप से प्राणायाम यज्ञ को करनेवाला बनूँ। इस प्राणायाम यज्ञ के द्वारा इन्द्रियों के दोषों का दहन करके (निष्केवल्यः च मे) = [ नितरां केवलं सुखं यस्मिन् तस्मिन् भव :- द० ] नितरां सुखमय स्थिति में होनेवाला ब्रह्मलोक मुझे प्राप्त हो। ५. (सावित्रः च मे सारस्वतः च मे) इस संसार में जीवन्मुक्त बनने पर मेरा जीवन सविता के यज्ञवाला तथा सरस्वती के यज्ञवाला हो, अर्थात् मैं सदा निर्माण व उत्पत्ति के यज्ञ में प्रवृत्त रहूँ तथा सरस्वती का उपासक, अर्थात् ज्ञान-साधना करनेवाला होऊँ। इस प्रकार मेरा निजू जीवन हो। इसके अतिरिक्त मैं अपने गृहस्थ जीवन में (पात्नीवतः च मे) प्रशस्तता से पत्नी के प्रति धर्म का पालन करनेवाला बनूँ और (हारियोजनः च मे) = मेरा हारियोजनयज्ञ चले, अर्थात् मैं अपने इन्द्रियरूप अश्वों को उत्तमता से शरीररूप रथ में जोतनेवाला बनूँ, [हरीणां अश्वानां योजयिता] और इस प्रकार अपनी जीवन यात्रा में आगे और आगे बढ़ चलूँ।
भावार्थ
भावार्थ- मेरा जीवन मन्त्रवर्णित आग्रयण आदि यज्ञोंवाला हो। मैं आगे बढूँ। आगे बढ़ने के लिए ही इन्द्रियाश्वों को सदा शरीर रथ में जोते रक्खूँ, अर्थात् निरन्तर क्रियाशील बना रहूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे काळानुरूप क्रिया करून विद्वानांचा आश्रय घेतात व विवाहित स्रीशीच संग करण्याचा नियम बनवितात ती माणसे (वेगवेगळ्या) पदार्थविद्या का बरे जाणणार नाहीत?
विषय
पुन्हा तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (मे) माझी वा मी (आग्रयण:) आग्रहायण (मार्गशीर्ष) आदी महिन्यात केलेला यज्ञ (च) आणि त्याकरिता उपयोगात आणलेले साहित्य, (साधन आदी) तसेच (मे) माझा वा मी (वैश्वदेव:) समस्त विद्वज्जनांशी करीत असलेला विचार-विमर्ष वा चर्चा (च) आणि त्याचा परिणाम (माझ्यासाठी सुखकर होवो) (मे) माझा (ध्रुव:) स्थायी आचरण (पवित्र शुद्ध स्वभाव) (च) आणि त्यासाठी आवश्यक साधने (भाव, विचार वा प्रवृत्ती) तसेच (मे) माझा वा मी करीत असलेला (वैश्वानर:) सर्व योग्य माणसांचा सत्कार (च) आणि सत्कार करणारा (मी वा माझी माणसे, माझ्यासाठी हितकर व्हावीत) (मे) माझा वा मी (ऐन्द्राग्न:) पवन आणि विद्युतशक्तीद्वारे करीत असलेले काम (च) आणि त्यासाठी लागणारी आवश्यक ती साधनें, तसेच (महावैश्वदेव:) सार्या मोठ्या माणसांनी केलेली कामें वा आचरण (च) आणि त्याकरिता आवश्यक ती साधने (माझ्यासाठी उपयोगी वा हितकर व्हावीत) (मे) माझे (मरूत्वतीया:) पवनांशी संबंधित सर्व कार्य (च) आणि त्यापासून मला मिळणारे लाभ, तसेच (मे) माझी (निष्कैवल्य:) ज्यात निरंतर सुखाची प्राप्ती होते, अशी कामें (च) आणि त्यासाठी आवश्यक ती साधनें (मला सुखकर वा समर्थ व्हावीत) (मे) माझा वा मला (सावित्र:) सूर्यापासून मिळणारा प्रभाव (च) आणि त्यापासून मिळणारे लाभ, तसेच (मे) माझे (सारस्वत:) वाणीविषयक अशी सर्व कामें (च) आणि त्यापासून मला होणारे सर्व लाभ (माझ्यासाठी हितकर व्हावेत) (मे) माझे (पत्नीव्रत:) उत्तम यज्ञविषयी कार्य करणार्या स्त्रीच्या (पत्नीच्या) पती प्रमाणे (दृढ व्रत वा संकल्प) (च) आणि त्या व्रताच्या पूर्ततेसाठी आवश्यक कार्य (च) आणि त्यासाठी आवश्यक ती साधनें, तसेच (वे) माझे (हारियोजन:) घोड्यांना रथात जुपण्याचे आरंभ केलेले काम (च) त्यासाठी लागणारे साहित्य (यज्ञेन) पदार्थांच्या मिश्रण कलेद्वारे मला (कल्पन्ताम्) सुखकर व फलदायी होवोत) ॥20॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक कार्य, काल आणि क्रिया यांच्याविषयी नियमानुकूल वागतात आणि विद्वज्जनांच्या संगतीत राहतात, आणि विवाहिता स्त्रीप्रमाणे (स्वीकृत कार्याशी एकनिष्ठ) असतात, ते पदार्थविद्या (भोतिकशास्त्र) चे ज्ञान वलाभ प्राप्त करून सुखी आनंदी का बरे होणार नाहीत ॥20॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May my yajna performed in November-December and its substances, my discourse with the learned and its result, my iron determination and its causes, my respect for all and respecter, my use of air and electricity and their sources, my spiritual enjoyment and its means, my lustre like the sun and its usefulness, my vows and their result, my performance of yajna in the company of my wife and its means, my procedure of yoking the horses in chariots and its materials prosper through skilful application of all substances.
Meaning
My special yajna of the month of Margashirsha, and my guests of this noble assembly at the yajna, and my settled behaviour and universal hospitality and reverence, and my yajna for the development of wind and fire energy, and my reverence for the noblest people of the world, and my dedication to the yajna of the liberation stage of yoga, and my yajna for solar energy, and my dedication to the eminent scholars of science and literature, and my love and regard for the married couples, and my travels, transport and transporters, may all these grow and be good and auspicious for me and for all by yajna.
Translation
May my foremost one (agrayanah) and my all the Nature’s bounties (vaisvadevah), my steadfastness (dhruvah) and my benevolence towards all men (vaisvanarah), my intimacy with the army-chief and the king (aindragnah) and my great offerings to all the bounties of Nature (mahavaisvadevah), my hospitality to brave soldiers (marutvatiyah) and my absolute bliss (niskevalyah), my inspiration (savitrah) and refined speech (sarasvatah), my delight from a good wife (patnivatah), and my yoking of swift horses (hariyojanah) be secured by means of sacrifice. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥ পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(মে) আমার (আগ্রয়ণঃ) অগ্রহায়ণাদি মাসে নিষ্পন্ন যজ্ঞ (চ) এবং ইহার সামগ্রী (মে) আমার (বৈশ্বদেবঃ) সমস্ত বিদ্বান্দের সঙ্গে সম্পর্ককারী বিচার (চ) এবং ইহার ফল (মে) আমার (ধ্রুবঃ) নিশ্চল ব্যবহার (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (বৈশ্বানরঃ) সকল মনুষ্যদিগের সৎকার (চ) তথা সৎকারকারী (মে) আমার (ঐন্দ্রাগ্নঃ) পবন ও বিদ্যুৎ দ্বারা নিষ্পন্ন কর্ম (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (মহাবৈশ্বদেবঃ) সমস্ত বড় লোকদের এই ব্যবহার (চ) ইহাদের সাধন (মে) আমার (মরুত্বতীয়াঃ) পবনদের সম্পর্ককারী ব্যবহার (চ) তথা ইহার ফল (মে) আমার (নিষ্কেবল্যঃ) নিরন্তর কেবল সুখ হয় যন্মধ্যে সে কর্ম (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (সাবিত্রঃ) সূর্য্যের এই প্রভাব (চ) এবং ইহা হইতে উপকার (মে) আমার (সারস্বতঃ) বাণী সম্বন্ধীয় ব্যবহার (চ) এবং ইহার ফল (মে) আমার (পাত্নীবতঃ) প্রশংসিত যজ্ঞসম্বন্ধিনী স্ত্রীর কর্ম (চ) ইহার সাধন (মে) আমার (হারিয়োজনঃ) অশ্বদেরকে রথে নিযুক্তকারীর এই আরম্ভ (চ) ইহার সামগ্রী (য়জ্ঞেন) সঙ্গতিকরণ দ্বারা (কল্পন্তাম্) সমর্থ হউক্ ॥ ২০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে সব মনুষ্য কার্যকালের ক্রিয়া এবং বিদ্বান্দিগের সঙ্গের আশ্রয় লইয়া বিবাহিত স্ত্রীর নিয়ম করিয়াছে তাহারা পদার্থবিদ্যাকে কেন জানিবে না? ॥ ২০ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
আ॒গ্র॒য়॒ণশ্চ॑ মে বৈশ্বদে॒বশ্চ॑ মে ধ্রু॒বশ্চ॑ মে বৈশ্বান॒রশ্চ॑ মऽঐন্দ্রা॒গ্নশ্চ॑ মে ম॒হাবৈ॑শ্বদেবশ্চ মে মরুত্ব॒তীয়া॑শ্চ মে॒ নিষ্কে॑বল্যশ্চ মে সাবি॒ত্রশ্চ॑ মে সারস্ব॒তশ্চ॑ মে পাত্নীব॒তশ্চ॑ মে হারিয়োজ॒নশ্চ॑ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ২০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
আগ্রয়ণশ্চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । য়জ্ঞানুষ্ঠানাত্মা দেবতা । স্বরাডতিধৃতিশ্ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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