यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 8
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - आत्मा देवता
छन्दः - स्वराट् शक्वरी
स्वरः - धैवतः
181
शं च॑ मे॒ मय॑श्च मे प्रि॒यं च॑ मेऽनुका॒मश्च॑ मे॒ काम॑श्च मे सौमन॒सश्च॑ मे॒ भग॑श्च मे॒ द्रवि॑णं च मे भ॒द्रं च॑ मे॒ श्रेय॑श्च मे॒ वसी॑यश्च मे॒ यश॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥८॥
स्वर सहित पद पाठशम्। च॒। मे॒। मयः॑। च॒। मे॒। प्रि॒यम्। च॒। मे॒। अ॒नु॒का॒म इत्य॑नुऽका॒मः। च॒। मे॒। कामः॑। च॒। मे॒। सौ॒म॒न॒सः। च॒। मे॒। भगः॑। च॒। मे॒। द्रवि॑णम्। च॒। मे॒। भ॒द्रम्। च॒। मे॒। श्रेयः॑। च॒। मे॒। वसी॑यः। च॒। मे॒। यशः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शञ्च मे मयश्च मे प्रियञ्च मे नुकामश्च मे कामश्च मे सौमनसश्च मे भगश्च मे द्रविणञ्च मे भद्रञ्च मे श्रेयश्च मे वसीयश्च मे यशश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
शम्। च। मे। मयः। च। मे। प्रियम्। च। मे। अनुकाम इत्यनुऽकामः। च। मे। कामः। च। मे। सौमनसः। च। मे। भगः। च। मे। द्रविणम्। च। मे। भद्रम्। च। मे। श्रेयः। च। मे। वसीयः। च। मे। यशः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
मे शं च मे मयश्च मे प्रियं च मेऽनुकामश्च मे कामश्च मे सौमनसश्च मे भगश्च मे द्रविणं च मे भद्रं च मे श्रेयश्च मे वसीयश्च मे यशश्च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥८॥
पदार्थः
(शम्) कल्याणम् (च) (मे) (मयः) ऐहिकं सुखम् (च) (मे) (प्रियम्) प्रीतिकारकम् (च) (मे) (अनुकामः) धर्मानुकूला कामना (च) (मे) (कामः) काम्यते येन यस्मिन् वा (च) (मे) (सौमनसः) शोभनं च तन्मनः सुमनस्तस्य भावः (च) (मे) (भगः) ऐश्वर्य्यसंघातः (च) (मे) (द्रविणम्) बलम् (च) (मे) (भद्रम्) भन्दनीयं सुखम् (च) (मे) (श्रेयः) मुक्तिसुखम् (च) (मे) (वसीयः) अतिशयेन वस्तृ वसीयः (च) (मे) (यशः) कीर्तिः (च) (मे) (यज्ञेन) सुखसिद्धिकरेणेश्वरेण (कल्पन्ताम्)॥८॥
भावार्थः
मनुष्यैर्येन कर्मणा सुखादयो वर्द्धेरंस्तदेव कर्म सततं सेवनीयम्॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(मे) मेरा (शम्) सर्व सख (च) और सुख की सब सामग्री (मे) मेरा (मयः) प्रत्यक्ष आनन्द (च) और इसके साधन (मे) मेरा (प्रियम्) पियारा (च) और इसके साधन (मे) मेरी (अनुकामः) धर्म के अनुकूल कामना (च) और इसके साधन (मे) मेरा (कामः) काम अर्थात् जिससे वा जिसमें कामना करें (च) तथा (मे) मेरा (सौमनसः) चित्त का अच्छा होना (च) और इसके साधन (मे) मेरा (भगः) ऐश्वर्य्य का समूह (च) और इसके साधन (मे) मेरा (द्रविणम्) बल (च) और इसके साधन (मे) मेरा (भद्रम्) अति आनन्द देने योग्य सुख (च) और सुख के साधन (मे) मेरा (श्रेयः) मुक्ति सुख (च) और इसके साधन (मे) मेरा (वसीयः) अतिशय करके वसने वाला (च) और इसकी सामग्री (मे) मेरी (यशः) कीर्ति (च) और इसके साधन (यज्ञेन) सुख की सिद्धि करने वाले ईश्वर से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें॥८॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि जिस काम से सुख आदि की वृद्धि हो, उस काम का निरन्तर सेवन करें॥८॥
विषय
यज्ञ से शान्ति, सुख मनोरथ, धनैश्वर्य, श्रेय, कल्याण, समृद्धि की प्राप्ति ।
भावार्थ
( शं च ) कल्याण और ( मयः च ) सुख, ऐहिक और पारमार्थिक, ( प्रियं च ) प्रिय पदार्थ और ( अनुकामः च ) धर्मानुकूल कामना, (कामः च) उत्तम स्त्री, पुत्र, धन आदि काम्य एवं ग्राह्य विषयों की अभिलाषा, ( सौमनसः च ) उत्तम मन की स्थिति, शुभचित्तता, ( भगः च ) अष्टविध ऐश्वर्य, ( द्रविणं च ) सुवर्णादि द्रव्य, (भद्रं च ) सुखदायी पदार्थ, (श्रेयः ) श्रेष्ठ, मुक्ति का सुख, ( बसीयः च) उत्तम धन-धान्य समृद्धि, ( यशः च ) और यश, कीर्त्ति ये समस्त पदार्थ (मे) मुझे ( यज्ञेन कल्पन्ताम् ) परस्पर संग तथा धर्मानुष्ठान और प्रजापालन आदि सत्कर्म और ईश्वर कृपा से प्राप्त हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वराट् शक्वरी । धैवतः ॥
विषय
शम्+यशः
पदार्थ
१. पिछले मन्त्र के अन्तिम वाक्य के अनुसार कृषि करते हुए तथा कृषि में आनेवाले प्रतिबन्धों को निवृत्त करते हुए (शं च मे) = मुझे ऐहिक सुख प्राप्त हो और साथ ही (मयः च मे) = आमुष्मिक सुख भी मैं प्राप्त कर सकूँ। कृषि से मेरा जीवन इस प्रकार पुरुषार्थ का हो कि मैं व्यसनों से ऊपर उठा रहूँ। २. (प्रियं च मे) = मुझे सब प्रीत्युत्पादक वस्तुएँ प्राप्त हों। (अनुकामः च मे) = सब धर्मानुकूल काम मुझे प्राप्त हों। ३. (कामः च मे) संसार के उचित आनन्द मुझे मिलें और (सौमनसः च मे) = मेरा मन सदा प्रसन्न रहे । ४. (भगः च मे) = मुझे सदा सौभाग्य प्राप्त हो। (द्रविणं च मे) = और कार्य सञ्चालन के लिए आवश्यक धन भी मुझे प्राप्त हो। ५. (भद्रं च मे) = मुझे कल्याण व सुख प्राप्त हो तथा (श्रेयः च मे) = मैं मोक्ष को प्राप्त करनेवाला बनूँ। ६. (वसीयः च मे) = मुझे [अतिशयेन वस्तृ] निवास के योग्य वसुमान् गृह प्राप्त हो तथा (यशः च मे) = मुझे उत्तम कर्मों से होनेवाली कीर्ति प्राप्त हो । मेरी ये सब वस्तुएँ (यज्ञेन कल्पन्ताम्) = यज्ञ से सम्पन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ- मुझे इस लोक व परलोक का कल्याण प्राप्त हो। मुझे आवश्यक धन की कमी न हो और मुझे प्रसन्न मन व यश का लाभ हो ।
मराठी (2)
भावार्थ
ज्या कामामुळे सुखाची वाढ होते ते काम माणसांनी सदैव करावे.
विषय
पुनश्च तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (उपासक म्हणत आहे) (मे) माझे (शम्) सर्व सुख (च) आणि सुखाचे सर्व साहित्य (पदार्थ व साधने) तसेच (मे) माजे (मय:) मी भोगत असलेले आनंद(च) आणि आनंद प्राप्तीची साधने (सुखकारक ईश्वराने पूर्ण करावीत) (मे) माझे वा मला जे (प्रियं) प्रिय आहे ते (च) आणि त्याच्याशी संबंधित सर्व पदार्थ, तसेच (मे) माझी (अनुकाम:) धर्माशी अनुकूल अशा कामना (च) आणि (त्यांच्या पूर्ततेसाठी) असलेली साधने (ईश्वर कृपया समर्थ वा योग्य असावीत) (मे) माझे (काम) अर्थात ज्याद्वारे कामना केली जाते वा ज्यात सर्व जण इच्छा करतात (ते माझे चित्त) (च) आणि (मे) माझे (सौममस:) चित्तातील भावना, तसेच (मे) माझे (भग:) ऐश्वर्य (च) आणि ऐश्वर्याची साधने (ईश्वरकृपा माझ्यासाठी अनुकूल असावीत) (मे) माझे (द्रविणम्) बळ (च) आणि बळप्राप्तीची साधने, तसेच (मे) माझे (भद्रम्) अत्यानंदकारी सुख (च) आणि सुखप्राप्तीची साधने (अनुकूल वा समर्थ व्हावीत) (मे) माझे (श्रेय:) मुक्तीचे सुख (च) (मुक्तिसुखासाठी आवश्यक उपाय) (वम नियमादी योगाड्ग) तसेच (मे) माझी (वसीय) वस्ती (वा गृह) (च) गृहाची साधने (मे) माझी (यश:) कीर्ती (च) आणि ती वाढविण्याची साधने (यज्ञेय) सुखदाता ईश्वराच्या कृपेने (कल्पन्ताम्) समर्थ व्हावीत ॥8॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांचे कर्तव्य आहे की ज्या कार्यामुळे सुख आदी (आनंददायक कारणांची) वृद्धी होत असेल, ती कामें अवश्य व निंतर करावीत. ॥8॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May my welfare and its materials, my comfort and its means, my affection and its sources, my religious desire and its means, my purity of mind and its sources, my immense supremacy and its means, my strength and its sources, my pleasure-giving comfort and its means, my pleasure of salvation and its sources, my excellent residence and its materials, my fame and its cause prosper through the grace of God.
Meaning
My peace and well-being, and my comfort and happiness, and my love, and my desire, and my ambition, and the good cheer of my mind, and my dignity, and my wealth, and my worldly good, and my ultimate good, and my advancement, and my honour and glory, may all these grow and be good and auspicious by yajna for all.
Translation
May my happiness here and happiness hereafter, the things dear to me and the things that I desire, my love and my friendships, my respectability and my wealth, my well-being here and well-being hereafter, my comfortable residence and my fame be secured by means of sacrifice. (1)
Notes
Vasiyaḥ, comfortable housing.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(মে) আমার (শম্) সর্বসুখ (চ) এবং সুখের সব সামগ্রী (মে) আমার (ময়ঃ) প্রত্যক্ষ আনন্দ (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (প্রিয়ম্) প্রিয় (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (অনুকামঃ) ধর্মানুকূল কামনা (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (কামঃ) কর্ম অর্থাৎ যদ্দ্বারা বা যন্মধ্যে কামনা করিবে (চ) তথা (মে) আমার (সৌমনসঃ) চিত্তের উত্তম হওয়া (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (ভগঃ) ঐশ্বর্য্য সমূহ (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (দ্রবিণম্) বল (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (ভদ্রম্) অতি আনন্দ প্রদান করিবার যোগ্য সুখ (চ) এবং সুখের সাধন (মে) আমার (শ্রেয়ঃ) মুক্তি সুখ (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (বসীয়ঃ) অতিশয় করিয়া বাসকারী (চ) এবং ইহার সামগ্রী (ম) আমার (য়শঃ) কীর্ত্তি (চ) এবং ইহার সাধন (য়জ্ঞেন) সুখের সিদ্ধিকারী ঈশ্বর দ্বারা (কল্পন্তাম) সমর্থ হউক ॥ ৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, যে কর্ম দ্বারা সুখাদির বৃদ্ধি হয় সেই কর্মের নিরন্তর সেবন করিবে ॥ ৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
শং চ॑ মে॒ ময়॑শ্চ মে প্রি॒য়ং চ॑ মেऽনুকা॒মশ্চ॑ মে॒ কাম॑শ্চ মে সৌমন॒সশ্চ॑ মে॒ ভগ॑শ্চ মে॒ দ্রবি॑ণং চ মে ভ॒দ্রং চ॑ মে॒ শ্রেয়॑শ্চ মে॒ বসী॑য়শ্চ মে॒ য়শ॑শ্চ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
শং চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । আত্মা দেবতা । স্বরাট্ শক্বরী ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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