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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 2
    ऋषिः - आथर्वण ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    इड॒ऽएह्यदि॑त॒ऽएहि॒ सर॑स्व॒त्येहि॑।असा॒वेह्यसा॒वेह्यसा॒वेहि॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इडे॑। एहि॑। अदि॑ते। एहि॑। सर॑स्वति। एहि॑ ॥ असौ॑। एहि॑। असौ॑। एहि॑। असौ॑। एहि॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडऽएहिऽअदितऽएहि सरस्वत्त्येहि । असावेह्यसावेह्यसावेहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इडे। एहि। अदिते। एहि। सरस्वति। एहि॥ असौ। एहि। असौ। एहि। असौ। एहि॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 2
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    भावार्थ - स्री व पुरुषाला जेव्हा विवाह करण्याची इच्छा होते तेव्हा ब्रह्मचर्य व विद्या या द्वारे स्री आणि पुरुषांचा धर्म (गुण, कर्म, स्वभाव) व वर्तन जाणूनच विवाह करावा.

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