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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 9
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - भुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    य॒माय॒ त्वाङ्गि॑रस्वते पितृ॒मते॒ स्वाहा॑।स्वाहा॑ घ॒र्माय॒ स्वाहा॑ घ॒र्मः पि॒त्रे॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒माय॑। त्वा॒। अङ्गि॑रस्वते। पि॒तृ॒मत॒ इति॑ पितृ॒मते। स्वाहा॑ ॥ स्वाहा॑। घ॒र्माय॑। स्वाहा॑। घ॒र्मः। पि॒त्रे ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमाय त्वाङ्गिरस्वते पितृमते स्वाहा । स्वाहा घर्माय स्वाहा घर्मः पित्रे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यमाय। त्वा। अङ्गिरस्वते। पितृमत इति पितृमते। स्वाहा॥ स्वाहा। घर्माय। स्वाहा। घर्मः। पित्रे॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 9
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    भावार्थ - या मंत्रातही (उप यच्छामि) पदांची अनुवृत्ती झालेली आहे. जे स्री-पुरुष प्राणाप्रमाणे न्यायी असून, पितरांचे व विद्वानांचे अनुसरण करतात. ते यज्ञासारखे सर्वांना सुख देतात.

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