Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 40
    ऋषिः - आगस्त्य ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत् ब्राह्मी त्रिष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
    4

    अग्ने॑ व्रतपा॒स्त्वे व्र॑तपा॒ या तव॑ त॒नूर्मय्यभू॑दे॒षा सा त्वयि॒ यो मम॑ त॒नूस्त्वय्यभू॑दि॒यꣳ सा मयि॑। य॒था॒य॒थं नौ॑ व्रतपते व्र॒तान्यनु॑ मे दी॒क्षां दी॒क्षाप॑ति॒रम॒ꣳस्तानु॒ तप॒स्तप॑स्पतिः॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। व्र॒त॒पा॒ इति॑ व्रतऽपाः। ते॒। व्र॒त॒पा॒ इति॑ व्रतऽपाः। या। तव॑। त॒नूः। मयि॑। अभू॑त्। ए॒षा। सा। त्वयि॑। योऽइति॒ यो। मम॑। तनूः। त्वयि॑। अभू॑त्। इ॒यम्। सा। मयि॑। य॒था॒य॒थमिति॑ यथाऽय॒थम्। नौ। व्र॒त॒प॒त॒ इति॑ व्रतऽपते। व्र॒तानि॑। अनु। मे॒। दी॒क्षाम्। दी॒क्षाप॑ति॒रिति॑ दीक्षाऽप॑तिः। अमं॑स्त। अनु॑। तपः॑। तप॑स्पति॒रिति॒ तपः॑ऽपतिः ॥४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने व्रतपास्त्वे व्रतपा या तव तनूर्मय्यभूदेषा सा त्वयि यो मम तनूस्त्वय्यभूदियँ सा मयि । यथायथन्नौ व्रतपते व्रतान्यनु मे दीक्षान्दीक्षापतिरमँस्तानु तपस्तपस्पतिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। व्रतपा इति व्रतऽपाः। ते। व्रतपा इति व्रतऽपाः। या। तव। तनूः। मयि। अभूत्। एषा। सा। त्वयि। योऽइति यो। मम। तनूः। त्वयि। अभूत्। इयम्। सा। मयि। यथायथमिति यथाऽयथम्। नौ। व्रतपत इति व्रतऽपते। व्रतानि। अनु। मे। दीक्षाम्। दीक्षापतिरिति दीक्षाऽपतिः। अमंस्त। अनु। तपः। तपस्पतिरिति तपःऽपतिः॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 40
    Acknowledgment

    भावार्थ - प्राचीन काळी जसे विद्वान अध्यापक होऊन गेले तसेच आपणही बनावे. जोपर्यंत माणसे आपल्याप्रमाणेच इतरांचे सुखदुःख, हानी-लाभ जाणत नाहीत तोपर्यंत ते पूर्ण सुखी होऊ शकत नाहीत. त्यामुळे माणसांनी श्रेष्ठ व्यवहारच करावा.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top