अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 32/ मन्त्र 3
दि॒वि ते॒ तूल॑मोषधे पृथिव्यामसि॒ निष्ठि॑तः। त्वया॑ स॒हस्र॑काण्डे॒नायुः॒ प्र व॑र्धयामहे ॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वि। ते॒। तूल॑म्। ओ॒ष॒धे॒। पृ॒थि॒व्याम्। अ॒सि॒। निऽस्थि॑तः। त्वया॑। स॒हस्र॑ऽकाण्डेन। आयुः॑। प्र। व॒र्ध॒या॒म॒हे॒ ॥३२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवि ते तूलमोषधे पृथिव्यामसि निष्ठितः। त्वया सहस्रकाण्डेनायुः प्र वर्धयामहे ॥
स्वर रहित पद पाठदिवि। ते। तूलम्। ओषधे। पृथिव्याम्। असि। निऽस्थितः। त्वया। सहस्रऽकाण्डेन। आयुः। प्र। वर्धयामहे ॥३२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 32; मन्त्र » 3
Translation -
O (darbha) plant, your tuft is in the sky: on the earth you are firmly set; with you of a thousand joints, we increase the life-span (of this person).