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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 32/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भृगुः देवता - दर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भ सूक्त
    57

    दि॒वि ते॒ तूल॑मोषधे पृथिव्यामसि॒ निष्ठि॑तः। त्वया॑ स॒हस्र॑काण्डे॒नायुः॒ प्र व॑र्धयामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वि। ते॒। तूल॑म्। ओ॒ष॒धे॒। पृ॒थि॒व्याम्। अ॒सि॒। निऽस्थि॑तः। त्वया॑। स॒हस्र॑ऽकाण्डेन। आयुः॑। प्र। व॒र्ध॒या॒म॒हे॒ ॥३२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवि ते तूलमोषधे पृथिव्यामसि निष्ठितः। त्वया सहस्रकाण्डेनायुः प्र वर्धयामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिवि। ते। तूलम्। ओषधे। पृथिव्याम्। असि। निऽस्थितः। त्वया। सहस्रऽकाण्डेन। आयुः। प्र। वर्धयामहे ॥३२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 32; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं के हराने का उपदेश।

    पदार्थ

    (ओषधे) हे ओषधि [रूप परमात्मा !] (दिवि) सूर्य में (ते) तेरी (तूलम्) पूर्णता है, और तू (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (निष्ठितः) दृढ़ ठहरा हुआ (असि) है। (सहस्रकाण्डेन) सहस्रों सहारा देनेवाले (त्वया) तेरे साथ (आयुः) जीवनकाल को (प्रवर्धयामहे) हम बढ़ा ले जाते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा सबसे ऊँचे और सबसे नीचे स्थान में एकरस व्यापक है, उसकी उपासना से मनुष्य यश प्राप्त करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(दिवि) सूर्य (ते) तव (तूलम्) तूल पूरणे-क प्रत्ययः। पूर्णत्वम् (ओषधे) हे ओषधिरूप परमात्मन् (पृथिव्याम्) भूमौ (निष्ठितः) अवस्थितः (त्वया) (सहस्रकाण्डेन) म०१। अनन्तरक्षणोपेतेन (आयुः) जीवनम् (प्र) प्रकर्षेण (वर्धयामहे) अभिवृद्धं कुर्मः ॥

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    विषय

    ज्ञानाग्नि की दीप्ति, शरीर की दृढ़ता

    पदार्थ

    १. हे (ओषधे) = दोषों का दहन करनेवाली वीर्यमणे । (दिवि) = मस्तिष्करूप द्युलोक में (ते) = तेरा (तूलम्) = [तूल पूरणे to fill] पूरण हुआ है। वीर्य की ऊर्ध्वगति होने पर यह वीर्य ज्ञानाग्नि का ईंधन बना है। हे वीर्य! तू (पृथिव्याम्) = इस शरीररूप पृथिवी में (निष्ठितः असि) = निश्चय से स्थित हुआ है। वीर्य ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है, तो शरीररूप पृथिवी को दृढ़ बनाता है। २. (सहस्त्रकाण्डेन) = शत्रुओं के संहार के लिए हज़ारों बाणोंवाले (त्वया) = तुझसे हम (आयुः) = अपने जीवन को (प्रवर्धयामहे) = दीर्घ बनाते हैं।

    भावार्थ

    वीर्य की ऊर्ध्वगति होने पर यह ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है। यह शरीररूप पृथिवी को दृढ़ बनाता है। शत्रुओं को नष्ट करने के लिए सहखों बाण तुझे धारण करके अपने जीवन को दीर्घ बनाते हैं।

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    भाषार्थ

    (ओषधे) ताप-सन्तान तथा समग्रदोषों के ओषधिरूप हे परमेश्वर! (दिवि) द्युलोक में (ते) आपका (तूलम्) निष्कर्ष है, (पृथिव्याम्) पृथिवी में भी आप (निष्ठितः) नितरां स्थित हैं। (सहस्रकाण्डेन) हजारों के परिपालक (त्वया) आपकी सहायता द्वारा (आयुः) आयुएँ (प्रवर्धयामहे) हम बढ़ाते हैं, प्रकृष्ट करते हैं।

    टिप्पणी

    [दिवि= “यस्य तऽउपरि गृहाः” (यजुः० १८.४४), अर्थात् ऊपर के नक्षत्र तथा तारागण और सूर्य आपके घर हैं, इनमें आप निवास किये हुए हैं। तथा “योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ओ३म् खं ब्रह्म” (यजुः० ४०.१७), अर्थात् आदित्य में जो पुरुष है वह मैं हूँ, ओ३म् खम् और ब्रह्म। तथा “नक्षत्राणि रूपम्” (यजुः० ३१.२२), अर्थात् नक्षत्र आपके प्रकाशस्वरूप प्रतिनिधि हैं। इस प्रकार द्युलोक का निष्कर्ष अर्थात् सार है—परमेश्वर। आयुः= जीवनकाल तथा जीवन। तूलम्=तूल निष्कर्षे, निष्कर्ष=सार।]

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    विषय

    शत्रुदमनकारी ‘दर्भ’ नामक सेनापति।

    भावार्थ

    हे (ओषधे) शत्रुओं को संतापदायक पुरुष ! (ते) तेरा (तूलम्) तूल, मुख्य बल (दिवि) आकाश में सूर्य के समान सभा में विद्यमान है। और तू स्वयं (पृथिव्याम्) पृथिवी में (निष्ठितः, असि) दृढ़ता से स्थित है। (सहस्रकाण्डेन त्वया) सहस्त्रों वाणों से युक्त तेरे द्वारा हम राष्ट्र के (आयुः) आयु, जीवन को (प्र वर्धयामहे) बढ़ाते हैं।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘निष्ठितः’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सर्वकाम आयुष्कामोभृगु र्ऋषिः। मन्त्रोक्तो दर्भो देवता। ८ परस्ताद् बृहती। ९ त्रिष्टुप्। १० जगती। शेषा अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha

    Meaning

    O Saviour from suffering, Oshadhi, your top is in the sun while you are rooted on the earth. By you, who expand over a hundred stems and branches, we increase and immunise the life and health of people.

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    Translation

    O (darbha) plant, your tuft is in the sky: on the earth you are firmly set; with you of a thousand joints, we increase the life-span (of this person).

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    Translation

    The staminal power of this herb remains in the sun and it is stationed on the earth. Through this Darbha having thousand stems I, the physician prolong the life of men.

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    Translation

    O herb, (i.e, kusha-grass) thy main root is in the heavens but are firmly established on the earth. We prolong our lives through thee of thousands of reeds.

    Footnote

    The main root being in heavens is due to its being born from the brilliant drops from the thundering clouds accompanied by lightning. Wherever it grows, it covers up the earth fully and consolidates it against erosion by water. Its use for longevity of life is worth research.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(दिवि) सूर्य (ते) तव (तूलम्) तूल पूरणे-क प्रत्ययः। पूर्णत्वम् (ओषधे) हे ओषधिरूप परमात्मन् (पृथिव्याम्) भूमौ (निष्ठितः) अवस्थितः (त्वया) (सहस्रकाण्डेन) म०१। अनन्तरक्षणोपेतेन (आयुः) जीवनम् (प्र) प्रकर्षेण (वर्धयामहे) अभिवृद्धं कुर्मः ॥

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