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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 32/ मन्त्र 6
    ऋषिः - भृगुः देवता - दर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भ सूक्त
    39

    सह॑स्व नो अ॒भिमा॑तिं॒ सह॑स्व पृतनाय॒तः। सह॑स्व॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दः॑ सु॒हार्दो॑ मे ब॒हून्कृ॑धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सह॑स्व। नः॒। अ॒भिऽमा॑तिम्। सह॑स्व। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। सह॑स्व। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। सु॒ऽहार्दः॑। मे॒। ब॒हून्। कृ॒धि॒ ॥३२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्व नो अभिमातिं सहस्व पृतनायतः। सहस्व सर्वान्दुर्हार्दः सुहार्दो मे बहून्कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्व। नः। अभिऽमातिम्। सहस्व। पृतनाऽयतः। सहस्व। सर्वान्। दुःऽहार्दः। सुऽहार्दः। मे। बहून्। कृधि ॥३२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 32; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं के हराने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमेश्वर !] (नः) हमारे (अभिमातिम्) अभिमानी शत्रु को (सहस्व) हरा और (पृतनायतः) सेनाएँ चढ़ा लानेवालों को (सहस्व) हरा। (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवालों को (सहस्व) हरा, (मे) मेरे लिये (बहून्) बहुत (सुहार्दः) शुभ हृदयवाले लोग (कृधि) कर ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की उपासना करके दुष्टों का अपमान और शिष्टों का सन्मान करें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(सहस्व) अभिभव (नः) अस्माकम् (अभिमातिम्) अ०२।७।४।अभिमानिनं शत्रुम् (सहस्व) (पृतनायतः) अ०१९।२८।५। पृतनाः सेना आत्मन इच्छतः शत्रून् (सहस्व) (सर्वान्) (दुर्हार्दः) अ०१९।२८।२। दुष्टहृदयान् (सुहार्दः) अ०३।२८।५। शुभहृदयान् (मे) (मह्यम्) (बहून्) (कृधि) कुरु ॥

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    विषय

    अभिमाति-सहन

    पदार्थ

    १. हे शतकाण्ड! तू (न:) = हमारे (अभिमातिम्) = [पाप्मा वै अभिमाति: तै०२.१.३.५] पापभावों को (सहस्व) = पराभूत कर। (पृतनायत:) = उपद्व-सैन्य से हमपर आक्रमण करनेवाले रोगों को (सहस्व) = पराभूत कर। २. (सर्वान) = सब (दुर्हार्दः) = दुष्ट हृदयवालों को (सहस्व) = पराभूत कर तथा (मे) = मेरे (बहून्) = बहुत-से व्यक्तियों को (सुहार्दः) = शुभ हृदयवाला (कृधि) = कर। हमारे घर व समाज के सभी व्यक्ति शुभ हृदयवाले हों।

    भावार्थ

    वीर्यरक्षण द्वारा हम पापों, रोगों व दुष्ट-हृदयता को दूर करें।

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    भाषार्थ

    हे अविद्याग्रन्थिविदारक परमेश्वर! (नः) हमारी (अभिमातिम्) अभिमान भावनाओं का (सहस्व) पराभव कीजिए। (पृतनायतः) कामादि, जो कि अपने वर्गों के साथ सेनारूप में हम पर आक्रमण करते हैं, उनका (सहस्व) पराभव कीजिए। (मे) मेरे (दुर्हार्दः) कुत्सित हृदयस्थ भावों का (सहस्व) पराभव कीजिए। और (सुहार्दः) श्रेष्ठ हृदयस्थ भावों की (बहून्) बहुतायत (कृधि) कीजिए।

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    विषय

    शत्रुदमनकारी ‘दर्भ’ नामक सेनापति।

    भावार्थ

    हे (मणे) शत्रुओं को स्तम्भन करने हारे पुरुष ! तू (नः) हमारे प्रति (अभिमातिम्) अभिमान करने वाले, गर्वीले शत्रु को (सहस्व) पराजित कर। और (पृतनायतः) सेना से आक्रमण करने वाले शत्रुओं को भी (सहस्व) पराजित कर। (सर्वान् दुर्हार्दः) समस्त दुष्ट चित्त वालों को भी (सहस्व) पराजित कर। (मे) मेरे (बहून्) बहुत से (सुहार्दः) उत्तम चित्त वाले मित्रों को (कृधि) उत्पन्न कर, बना।

    टिप्पणी

    (प्र० द्वि०) नोऽभि० ‘स्वा०’। इति पैप्प० सं०। (च०) ‘बहुम्’ इति क्वचित्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सर्वकाम आयुष्कामोभृगु र्ऋषिः। मन्त्रोक्तो दर्भो देवता। ८ परस्ताद् बृहती। ९ त्रिष्टुप्। १० जगती। शेषा अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha

    Meaning

    Fight and rout the proud adversary. Fight and defeat the enemies upfront on the field. Challenge and overthrow all those evil hearted. Let the good hearted be many around me.

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    Translation

    May you subdue him who assails us, subdue him who invades (us) subdue all my ill-wishers; make my wellwishers plentiful.

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    Translation

    Let this Darbha subdue our diseases, let it conquer all the malignancies troubling us, let it quell away all that makes the heart and spirit malignant and let it do many thing which keep us good m our hearts.

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    Translation

    O darbha, defeatest thou the proud foe of ours. Letest thou crush the attacking forces of the enemies. Conquer all the wicked-hearted people and make many people friends of mine.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(सहस्व) अभिभव (नः) अस्माकम् (अभिमातिम्) अ०२।७।४।अभिमानिनं शत्रुम् (सहस्व) (पृतनायतः) अ०१९।२८।५। पृतनाः सेना आत्मन इच्छतः शत्रून् (सहस्व) (सर्वान्) (दुर्हार्दः) अ०१९।२८।२। दुष्टहृदयान् (सुहार्दः) अ०३।२८।५। शुभहृदयान् (मे) (मह्यम्) (बहून्) (कृधि) कुरु ॥

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