अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 32/ मन्त्र 5
त्वम॑सि॒ सह॑मानो॒ऽहम॑स्मि॒ सह॑स्वान्। उ॒भौ सह॑स्वन्तौ भू॒त्वा स॒पत्ना॑न्सहिषीमहि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम्। अ॒सि॒। सह॑मानः। अ॒हम्। अ॒स्मि॒। सह॑स्वान्। उ॒भौ। सह॑स्वन्तौ। भू॒त्वा। स॒ऽपत्ना॑न्। स॒हि॒षी॒म॒हि॒ ॥३२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमसि सहमानोऽहमस्मि सहस्वान्। उभौ सहस्वन्तौ भूत्वा सपत्नान्सहिषीमहि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। असि। सहमानः। अहम्। अस्मि। सहस्वान्। उभौ। सहस्वन्तौ। भूत्वा। सऽपत्नान्। सहिषीमहि ॥३२.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं के हराने का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर !] (त्वम्) तू (सहमानः) वश में करनेवाला (असि) है, और (अहम्) मैं (सहस्वान्) बलवान् (अस्मि) हूँ। (उभौ) हम दोनों (सहस्वन्तौ) बलवान् (भूत्वा) होकर (सपत्नान्) विरोधियों को (सहिषीमहि) हम सब वश में करें ॥५॥
भावार्थ
वीर पुरुष परमेश्वर का आश्रय लेकर और सब साथियों को मिलाकर शत्रुओं का नाश करे ॥५॥
टिप्पणी
इस मन्त्र का मिलान करो-अ०३।१८।५ और ऋग्वेद १०।१४५।५॥५−(त्वम्) (असि) (सहमानः) अभिभवनशीलः (अहम्) (अस्मि) (सहस्वान्) बलवान् (उभौ) (सहस्वन्तौ) बलवन्तौ (भूत्वा) (सपत्नान्) विरोधिनः (सहिषीमहि) षह मर्षणे-आशीर्लिङि। अभिभवेम ॥
विषय
सहमान-सहस्वान्
पदार्थ
१. हे शतकाण्ड [शत्रुओं के संहार के लिए सैकड़ों शरोंवाले] वीर्य! (त्वम्) = तु (सहमानः असि) = रोगरूप शत्रुओं का मर्पण करनेवाला है। (अहम्) = मैं भी (सहस्वान् अस्मि) = वासनारूप शत्रु मर्षण की वृत्तिवाला हूँ। २. इसप्रकार (उभौ) = हम दोनों (सहस्वन्तौ) = शत्रुओं को कुचलनेवाले (भूत्वा) = होकर (सपत्नान) = इन रोग व वासनारूप शत्रुओं को (सहिषीमहि) = कुचल डालें।
भावार्थ
हम वासनारूप शत्रुओं को कुचलने की वृत्तिवाले बनें। सुरक्षित वीर्य भी शतकाण्ड है-यह रोगों का संहार करता है, अतः मैं वीर्यरक्षण करता हुआ शत्रुओं का पराभव करनेवाला बनें।
भाषार्थ
हे दोषों के ओषधिरूप परमेश्वर! (त्वम्) आप (सहमानः) सहनशील होते हुए कामादि शत्रुओं का पराभव करनेवाले हैं, (अहम्) मैं भी (सहस्वान्) सहनशील होता हुआ कामादि शत्रुओं का पराभव करनेवाला (अस्मि) हूँ। (उभौ) हम दोनों (सहस्वन्तौ) सहनशील तथा पराभव करने वाले (भूत्वा) होकर (सपत्नान्) कामादि शत्रुओं का (सहिषीवहि) पराभव करें।
टिप्पणी
[यदि व्यक्ति सहनशील होकर अर्थात् धैर्यपूर्वक कामादि शत्रुओं के पराभव के लिए यत्नवान् होता है, तो परमेश्वर भी इस प्रयत्न में उसका सहायक होता है। सहमानः=षह मर्षणे।]
विषय
शत्रुदमनकारी ‘दर्भ’ नामक सेनापति।
भावार्थ
हे शिरोमणे ! (त्वम्) तू (सहमानः) शत्रुओं को निरन्तर दबाता रहता (असि) है। और (अहम्) मैं राजा भी (सहस्वान्) शत्रुओं को पराजित करने वाले बल से युक्त (अस्मि) हूं। (उभौ) हम दोनों (सहस्वन्तौ भूत्वा) बलवान् होकर (सपत्नान्) शत्रुओं को अपने सेनाओं सहित (सहिषीमहि) दबाने में समर्थ होवें।
टिप्पणी
अहमस्मि सहमाना त्वमसि सासहिः। उभे सहस्वती भूत्वी सपत्नीं मे सावहै। इति। (च) ‘सहिषीवहि’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सर्वकाम आयुष्कामोभृगु र्ऋषिः। मन्त्रोक्तो दर्भो देवता। ८ परस्ताद् बृहती। ९ त्रिष्टुप्। १० जगती। शेषा अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Darbha
Meaning
O Darbha, you are master of patience and courage, victor of war, in the process of fighting, I am courageous and challenging too on way to battle, unflinching. Both of us together, possessed of strength, courage and will, ready to fight, shall conquer the adversaries.
Translation
You are overpowering; I am full of overwhelming power; both of us, becoming overwhelmingly strong, will subdue our rivals.
Translation
This Darbha is an over-powering force and I am endowed with conquering vigour. Let both of us possessed of over- powering powers crush the enemies, the diseases etc.
Translation
Thou art powerful enough to subdue the enemies. I am also strong enough to crush them. Both of us being strong and valorous, may suppress the foes.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस मन्त्र का मिलान करो-अ०३।१८।५ और ऋग्वेद १०।१४५।५॥५−(त्वम्) (असि) (सहमानः) अभिभवनशीलः (अहम्) (अस्मि) (सहस्वान्) बलवान् (उभौ) (सहस्वन्तौ) बलवन्तौ (भूत्वा) (सपत्नान्) विरोधिनः (सहिषीमहि) षह मर्षणे-आशीर्लिङि। अभिभवेम ॥
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