Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 43

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 43/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म छन्दः - त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त

    यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। वा॒युर्मा॒ तत्र॑ नयतु वा॒युः प्र॒णान्द॑धातु मे। वा॒यवे॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। वा॒युः। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। वा॒युः। प्रा॒णान्। द॒धा॒तु॒। मे॒। वा॒यवे॑। स्वाहा॑ ॥४३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्र ब्रह्मविदो यान्ति दीक्षया तपसा सह। वायुर्मा तत्र नयतु वायुः प्रणान्दधातु मे। वायवे स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। वायुः। मा। तत्र। नयतु। वायुः। प्राणान्। दधातु। मे। वायवे। स्वाहा ॥४३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 43; मन्त्र » 2

    Translation -
    Whither the realizers of the Divine Supreme go with consecration and austerity, may the cosmic wind lead me thither; may the cosmic wind grant me vital breaths. I dedicate it to the cosmic wind.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top