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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 53

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 53/ मन्त्र 10
    सूक्त - भृगुः देवता - कालः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त

    का॒लः प्र॒जा अ॑सृजत का॒लो अग्रे॑ प्र॒जाप॑तिम्। स्व॑यं॒भूः क॒श्यपः॑ का॒लात्तपः॑ का॒लाद॑जायत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का॒लः। प्र॒ऽजाः। अ॒सृ॒ज॒त॒। का॒लः। अग्रे॑। प्र॒जाऽप॑तिम्। स्व॒य॒म्ऽभूः। क॒श्यपः॑। का॒लात्। तपः॑। का॒लात्। अ॒जा॒य॒त॒ ॥५३.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कालः प्रजा असृजत कालो अग्रे प्रजापतिम्। स्वयंभूः कश्यपः कालात्तपः कालादजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कालः। प्रऽजाः। असृजत। कालः। अग्रे। प्रजाऽपतिम्। स्वयम्ऽभूः। कश्यपः। कालात्। तपः। कालात्। अजायत ॥५३.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 10

    टिप्पणीः - १०−(कालः) (प्रजाः) जायमानान् जीवान् (असृजत) उदपादयत् (कालः) (अग्रे) सृष्ट्यादौ (प्रजापतिम्) प्रजापालकं मनुष्यम् (स्वयम्भूः) स्वयमुत्पन्नः परमेश्वरः (कश्यपः) पश्यकः। द्रष्टा (कालात्) (तपः) ब्रह्मचर्यादिव्रतम् (कालात्) (अजायत) प्रकटोऽभवत् ॥

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