Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 8

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
    सूक्त - गार्ग्यः देवता - नक्षत्राणि छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - नक्षत्र सूक्त

    अ॑नुह॒वं प॑रिह॒वं प॑रिवा॒दं प॑रिक्ष॒वम्। सर्वै॑र्मे रिक्तकु॒म्भान्परा॒ तान्त्सवि॑तः सुव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒नु॒ऽह॒वम्। प॒रि॒ऽह॒वम्। प॒रि॒ऽवा॒दम्। प॒रि॒ऽक्ष॒वम्। सर्वैः॑। मे॒। रि॒क्त॒ऽकु॒म्भान्। परा॑। तान्। स॒वि॒तः॒। सु॒व॒ ॥८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनुहवं परिहवं परिवादं परिक्षवम्। सर्वैर्मे रिक्तकुम्भान्परा तान्त्सवितः सुव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनुऽहवम्। परिऽहवम्। परिऽवादम्। परिऽक्षवम्। सर्वैः। मे। रिक्तऽकुम्भान्। परा। तान्। सवितः। सुव ॥८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 8; मन्त्र » 4

    टिप्पणीः - इस मन्त्र का कुछ मिलान करो-अ० १०।३।६ ॥ ४−(अनुहवम्) ह्वः संप्रसारणं च न्यभ्युपविषु। पा० ३।३।७२। अनु+ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च-अप् संप्रसारणं च बाहुलकात्। विवादम् (परिहवम्) परि+ह्वयतेः-अप् संप्रसारणं च। बकवादम् (परिवादम्) अपवादम् (परिक्षवम्) अ० १०।३।६। टुक्षु नासाशब्दे-अप्। नासातो वायुनिसरणजन्यशब्दम् (सर्वैः) सर्वदोषैः (मे) मम (रिक्तकुम्भान्) शून्यकलशान्। व्यर्थव्यवहारान् (परा) दूरे (तान्) पूर्वोक्तान् (सवितः) हे सर्वप्रेरक परमात्मन् (सुव) षू प्रेरणे। प्रेरय ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top