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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गार्ग्यः देवता - नक्षत्राणि छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - नक्षत्र सूक्त
    54

    अ॑नुह॒वं प॑रिह॒वं प॑रिवा॒दं प॑रिक्ष॒वम्। सर्वै॑र्मे रिक्तकु॒म्भान्परा॒ तान्त्सवि॑तः सुव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒नु॒ऽह॒वम्। प॒रि॒ऽह॒वम्। प॒रि॒ऽवा॒दम्। प॒रि॒ऽक्ष॒वम्। सर्वैः॑। मे॒। रि॒क्त॒ऽकु॒म्भान्। परा॑। तान्। स॒वि॒तः॒। सु॒व॒ ॥८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनुहवं परिहवं परिवादं परिक्षवम्। सर्वैर्मे रिक्तकुम्भान्परा तान्त्सवितः सुव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनुऽहवम्। परिऽहवम्। परिऽवादम्। परिऽक्षवम्। सर्वैः। मे। रिक्तऽकुम्भान्। परा। तान्। सवितः। सुव ॥८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 8; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (अनुहवम्) विवाद (परिहवम्) बकवाद (परिवादम्) अपवाद और (परिक्षवम्) नाक के फुरफुराहट, (तान्) इन (रिक्तकुम्भान्) रीते घड़ों [निकम्मे कामों] को (मे) मेरे (सर्वैः) सब [दोषों] सहित, (सवितः) हे सर्वप्रेरक परमात्मन् ! (परा सुव) दूर कर दे ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपने शारीरिक और आत्मिक दोषों को विचारकर परमेश्वर की उपासना करके दूर करे ॥४॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का कुछ मिलान करो-अ० १०।३।६ ॥ ४−(अनुहवम्) ह्वः संप्रसारणं च न्यभ्युपविषु। पा० ३।३।७२। अनु+ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च-अप् संप्रसारणं च बाहुलकात्। विवादम् (परिहवम्) परि+ह्वयतेः-अप् संप्रसारणं च। बकवादम् (परिवादम्) अपवादम् (परिक्षवम्) अ० १०।३।६। टुक्षु नासाशब्दे-अप्। नासातो वायुनिसरणजन्यशब्दम् (सर्वैः) सर्वदोषैः (मे) मम (रिक्तकुम्भान्) शून्यकलशान्। व्यर्थव्यवहारान् (परा) दूरे (तान्) पूर्वोक्तान् (सवितः) हे सर्वप्रेरक परमात्मन् (सुव) षू प्रेरणे। प्रेरय ॥

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    विषय

    रिक्तकुम्भान् परासुव

    पदार्थ

    १. हे (सवितः) = सर्वप्रेरक प्रभो! आप (अनुहवम्) = स्पर्धा को, (परिहवम्) = वर्जनीय संघर्ष को, (परिवादम) = निन्दा को (परिक्षवम्) = क्रोधजनित नासिका की फुरफुराहट को, इन (सर्वैः) = सब दोषों के साथ (मे) = मेरी (तान् रिक्तकुम्भान्) = उन खाली घड़ों के समान निःसार बातों को (परासुव) = दूर कीजिए।

    भावार्थ

    मैं स्पर्धा आदि से बचूँ और व्यर्थ की बातों से सदा दूर रहूँ।

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    भाषार्थ

    (सवितः) हे सूर्य! तथा हे प्रेरक परमेश्वर! (अनुहवम्) निरन्तर अर्थात् देर तक रहनेवाली खांसी को, (परिहवम्) प्रदेशव्यापी खांसी को, (परिवादम्) ज्वर में होने वाली बकवास को, (परिक्षवम्) प्रदेशव्यापी छींकों और खांसी को, अर्थात् प्रदेशव्यापी प्रतिश्याय को, (सर्वैः) तथा अन्य सब रोगों समेत (मे तान्) मेरे उन रोगों को (रिक्तकुम्भान्) मेरे शरीरघट से रिक्त अर्थात् रेचित करके (परा सुव) सूर्य दूर करे, या हे परमेश्वर! आप दूर कीजिए।

    टिप्पणी

    [अनुहवम्— आदि के अर्थ अधिक विचारणीय हैं। मन्त्र में यतः सविता (=सूर्य) का वर्णन है, इसलिए प्रतीत होता है कि शरत्कालीन ज्वर और खांसी जुकाम और ज्वर में प्रलाप करने का वर्णन मन्त्र में हैं। ये रोग ग्रीष्म ऋतु में प्रायः कम होते हैं। इसलिए सूर्य को इन रोगों का निवारक कहा है। रोगों के निवारण में परमेश्वरीय कृपा का भी वर्णन हुआ है। अनुहवम् आदि में “हवम्” का अर्थ है—खांसते हुए आवाज का होना। ह्वेञ् शब्दे।]

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    विषय

    नक्षत्रों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे परमेश्वर ! (अनुहवम्) मेरे साथ दूसरे का स्पर्द्धा करना, (परिहवम्) वर्जन करने योग्य संघर्ष, (परिवादम्) वर्जनीय, वचन, निन्दा, (परिक्षवम्) चारों ओर से मुझपर घृणा का भाव या वर्जनीय खाद्य इन (सर्वैः) सबके साथ (मे) मेरे प्रति (रिक्तकुम्भान्) खाली घड़ों के समान निःसार बातों को और समस्त क्षुद्र पुरुषों और तुच्छ बातों को भी हे (सवितः) सर्वप्रेरक ! सूर्य विद्वान् एवं परमेश्वर ! तू (परा सुव) मुझसे दूर कर।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘सर्वतोमे’ इति ह्विटनिकामितः। ‘परिवादम् परिक्षयम्’ (तृ० च०) स व्यैम विरिक्त कुम्भ्या पराक्तं सवितः सवः। इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गार्ग्य ऋषिः। मन्त्रोक्तानि नक्षत्राणि देवताः। ६ ब्रह्मणस्पतिर्देवता। १ विराट जगती। २, ५, ७ त्रिष्टुभः। ६ त्र्यवसाना षट्पदा अति जगती। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Nakshatras, Heavenly Bodies

    Meaning

    O Savita, lord of life and giver of light, ward off detraction, scandal mongering, reproach, hate, all these negativities toward others, like empty pitchers (full of garbage).

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    Translation

    Calling back, crying, abuse, abhorrence, and the empty vessels -- these, O impeller Lord, may you keep away from me by all your devices.

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    Translation

    O All-creating God, please, keep away from me like the empty pitchers all those evils, excitement, talkative struggle, hot wordy exchange and abominator cry.

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    Translation

    O God, throw away from me all envy, jealousy, fault-finding, hatred or impure food and empty vessels, the symbol of penury.

    Footnote

    A prayer for righteous and rich living. The reading of omens by Sayana and Griffith is to lower the grandeur of the Vedic Text.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का कुछ मिलान करो-अ० १०।३।६ ॥ ४−(अनुहवम्) ह्वः संप्रसारणं च न्यभ्युपविषु। पा० ३।३।७२। अनु+ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च-अप् संप्रसारणं च बाहुलकात्। विवादम् (परिहवम्) परि+ह्वयतेः-अप् संप्रसारणं च। बकवादम् (परिवादम्) अपवादम् (परिक्षवम्) अ० १०।३।६। टुक्षु नासाशब्दे-अप्। नासातो वायुनिसरणजन्यशब्दम् (सर्वैः) सर्वदोषैः (मे) मम (रिक्तकुम्भान्) शून्यकलशान्। व्यर्थव्यवहारान् (परा) दूरे (तान्) पूर्वोक्तान् (सवितः) हे सर्वप्रेरक परमात्मन् (सुव) षू प्रेरणे। प्रेरय ॥

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