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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 7
    सूक्त - गार्ग्यः देवता - नक्षत्राणि छन्दः - द्विपदा निचृत्त्रिष्टुप् सूक्तम् - नक्षत्र सूक्त
    22

    स्व॒स्ति नो॑ अ॒स्त्वभ॑यं नो अस्तु॒ नमो॑ऽहोर॒त्राभ्या॑मस्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒स्ति। नः॒। अ॒स्तु॒। अभ॑यम्। नः॒। अ॒स्तु॒। नमः॑। अ॒हो॒रा॒त्राभ्या॑म्। अ॒स्तु॒ ॥८.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वस्ति नो अस्त्वभयं नो अस्तु नमोऽहोरत्राभ्यामस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वस्ति। नः। अस्तु। अभयम्। नः। अस्तु। नमः। अहोरात्राभ्याम्। अस्तु ॥८.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 8; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (1)

    विषय

    सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) कल्याण [सुन्दर सत्ता] (अस्तु) होवे (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय (अस्तु) होवे, [हमें] (अहोरात्राभ्याम्) दोनों दिन-राति के लिये (नमः) अन्न (अस्तु) होवे ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपनी सत्ता को सुधार कर सदा निर्भय होकर अन्न आदि प्राप्त करें ॥७॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का अन्तिम पाद म० २ में आया है ॥ ७−(स्वस्ति) कल्याणम्। सुष्ठु अस्तित्वम् (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) भवतु (अभयम्) भयराहित्यम् (नः) (अस्तु)। अन्यत् पूर्ववत्-म० २ ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Nakshatras, Heavenly Bodies

    Meaning

    Let there be happiness and well-being for us all round. Let there be no fear around us. O Brahmanaspati, homage and salutations to you by day and by night!

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का अन्तिम पाद म० २ में आया है ॥ ७−(स्वस्ति) कल्याणम्। सुष्ठु अस्तित्वम् (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) भवतु (अभयम्) भयराहित्यम् (नः) (अस्तु)। अन्यत् पूर्ववत्-म० २ ॥

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