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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाम्बरीषः देवता - आपः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    शं नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ आपो॑ भवन्तु पी॒तये॑ । शं योर॒भि स्र॑वन्तु नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । नः॒ । दे॒वीः । अ॒भिष्ट॑ये । आपः॑ । भ॒व॒न्तु॒ । पी॒तये॑ । शम् । योः । अ॒भि । स्र॒व॒न्तु॒ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम् । नः । देवीः । अभिष्टये । आपः । भवन्तु । पीतये । शम् । योः । अभि । स्रवन्तु । नः ॥ १०.९.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 4

    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज -

    भाषार्थ सबका प्रकाशक, सबको आनन्द देने वाला, और सर्वव्यापक ईश्वर, मनोवाञ्छित आनन्द के लिये, और पूर्णानन्द की प्राप्ति के लिये, हमको कल्याणकारी हो, अर्थात हमारा कल्याण करे। वही परमेश्वर हम पर सुख की सवर्था वृष्टि करे। हे प्रभु! जेब मैं माता के गर्भ में था तो मेरा जल ही ओढ़ना था और जल ही मेरा बिछौना था और जल ही मेरे पाँसे बने हुये थे।

    शृङ्गी ऋषि कृष्णदत्त जी महाराज

    संध्या में सबसे पूर्व शन्नो देवी आता है। हे शन्नो! तू देवी है, तू हमारे कंठ में विराजमान हो। वह शन्नो हमारे कण्ठ में विराजमान हो जाती है।

    सबसे प्रथम जब आत्म लोक में प्रवेश करता है, आत्म लोक में जब जाता है तो वह तीन आचमन करता है

    आदि ऋषियों ने विराजमान हो करके सबसे प्रथम कहा कि मानव को तीन आचमन करने चाहिएतीन आचमन क्यों करता है प्राणी? आचमन इसलिए करता है कि त्रिविद्या की वह महान महत्ता में रमण करने वाला बने और त्रिविद्या को पान करने वाला जो होता है वह ब्रह्मणाः वृत्तम देवाः, वह ब्रह्म वस्तुतिः वृत्तः देवा अभ्यम् गति नानश्चतःवेद का आचार्य कहता है कि वह जब आचमन करता है तो वह त्रिविद्या का पान करता है और त्रिविधा क्या है? जैसे शीतल जल मानव के कण्ठ में शान्ति स्थापित करता है, मानव का कण्ठ शान्त हो जाता है इसी प्रकार यह जो त्रिविद्या है इसको हम ज्ञान, कर्म और उपासना कहते हैं ज्ञान, कर्म और उपासना ही तीन आचमन कहलाये जाते हैं सबसे प्रथम वह ज्ञान में जाता है

    तो वह तीन आचमन करता है आचमन का अभिप्राय त्रिविद्या को धारण करने वालों में नाना ब्रह्मवेत्ता हुये हैं परन्तु आज का विचार क्या? मुनिवरों! देखो, तीन आचमन करता है आचमन करने के पश्चात सर्वत्र जो इन्द्रियाँ हैं मानव के शरीर में, इन इन्द्रियों के ऊपर वह अपना आधिपत्य करता है

    आज सबसे पूर्व अपने को बनाना है जब मनुष्य शन्नो देवी का पाठ करता है तो कहता है हे देवी! तू कल्याण करने वाली है तू हमारे कंठ में आ समा जैसे जल हमारी तृषा को शान्त कर देता है उसी तरह हमारा कंठ उस जल रूपी तृषा का इच्छुक न रहेहे शन्नो देवी! हम तो उस आनन्द के इच्छुक है जैसे जल शीतल बना देता है उसी प्रकार हे शन्नो देवी! तू आ और हमारे कंठ में विराजमान हो हे माता! हमारा कंठ मधुर बने, सुन्दर बने जिससे हे माता! हमारे कंठ में जो वार्त्ता होगी, यथार्थ होगी और वह अन्तकरण तक जाएगी हमारे द्वारा जो मल, विक्षेप आवरण हैं हे शन्नो देवी! वे मेरे शांत हो जाएंगे जैसे जल से तृषा शान्त हो जाती है उसी प्रकार ज्ञान से हमारे मल, विक्षेप आवरण शान्त हो जाएंगे जब ज्ञान का प्रकाश हो जाएगा तो अन्धकार कहा रहेगा जैसे रात्रि को शान्त करने वाला सूर्य प्रातःकाल में आता है और रात्रि का नाश कर देता है इसी प्रकार हे शन्नो देवी! तू वाणी में विराजमान हो जाएगी और वाणी का प्रभाव अन्तःकरण तक जाने के पश्चात मल विक्षेप आवरण जो हमारे पापों से बन चुके हैं वह सब शान्त हो जाएंगे हे माता! हम तुझसे अनुरोध करते चले जा रहे हैं संध्या में सबसे पूर्व हमें अपने को बनाना है

    सन्ध्या की तीन व्याहृतियां होती हैं, एक अपने को बनाना है कि मैं कौन हूँ और मैं कैसा बनूं? मेरा हृदय कैसा बने, आज मेरा कंठ कैसा बने? मेरे चक्षुः, मेरे श्रोत्र, मेरी घ्राण कैसी बने? मेरी त्वचा यह सब ही कुछ कैसे बने अपने को परमात्मा के समर्पण कर दो प्रत्येक इन्द्रिय के विषय को जानो पहली व्याहृति यह है

    द्वितीय व्याहृति वह है कि हम परमात्मा की सृष्टि का प्रकरण लेते हैं हम परमात्मा का गुणगान गाते हैं, हे परमात्मा! अब हम आपके पात्र हुए हैं मैंने आज से पूर्व काल में कहा है कि परमात्मा के गुणगान गाने के लिए तुम पात्र बनो जैसे यज्ञोपवीत लेने से पूर्व पात्र बनो उसके पश्चात तुम किसी की याचना कर सकोगे आज जैसे किसी द्रव्यपति के द्वारा कोई सेवक है और किसी काल में अपने स्वामी से कहता है कि मेरा जो वेतन है, वह मुझे दो तो वह वेतन किस काल में प्राप्त करता है? वह उसी काल में प्राप्त करता है जब वह पात्र बनता है इसी प्रकार हमें सबसे पूर्व अपने को बनाना है और अपने को जानना है जब हम अपने को जान जाएंगे, तो उसके पश्चात हम परमात्मा के गुण गाने योग्य होंगे, प्रभु का गुणगान गाएंगे तो एक समय वह आएगा कि प्रभु हमारा रक्षक बन जाएगा जब प्रभु हमारा रक्षक बन जाता है तो उस काल में वह हिंसक प्राणियों से, जो हमें कष्ट देने वाले हैं उनसे हमारी रक्षा करता है तो आज सबसे पूर्व हमें पात्र बनना है और सब कुछ परमात्मा के अर्पण कर देना है

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