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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1192
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
ते꣡ नः꣢ सह꣣स्रि꣡ण꣢ꣳ र꣣यिं꣡ पव꣢꣯न्ता꣣मा꣢ सु꣣वी꣡र्य꣢म् । स्वा꣣ना꣢ दे꣣वा꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वः ॥११९२॥
स्वर सहित पद पाठते꣢ । नः꣣ । सहस्रि꣡ण꣢म् । र꣣यि꣢म् । प꣡व꣢꣯न्ताम् । आ । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । स्वा꣣नाः꣢ । दे꣣वा꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः ॥११९२॥
स्वर रहित मन्त्र
ते नः सहस्रिणꣳ रयिं पवन्तामा सुवीर्यम् । स्वाना देवास इन्दवः ॥११९२॥
स्वर रहित पद पाठ
ते । नः । सहस्रिणम् । रयिम् । पवन्ताम् । आ । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । स्वानाः । देवासः । इन्दवः ॥११९२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1192
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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विषय - सहस्त्री रयि की प्राप्ति
पदार्थ -
पिछले मन्त्र में उत्तम प्रेरक विद्वानों का उल्लेख था । ये उत्तम प्रेरक विद्वान् 'असित, काश्यप, देवलं' ही हैं—अबद्ध, ज्ञानी, दिव्य गुणसम्पन्न | (ते) = ये विद्वान् (स्वाना:) = [सु आनयति ] उत्तमता से प्राणशक्ति का संचार करनेवाले हैं, (देवासः) = ज्ञान की दीप्ति को देनेवाले हैं । [देव-द्योतन] (इन्दवः) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाले हैं। ये विद्वान् (न:) = हमें (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति से सम्पन्न (सहस्त्रिणं रयिम्) = [हस्=हास्य-आनन्द] उस आनन्दमय प्रभु के ज्ञान से युक्त ऐश्वर्य को (आपवन्ताम्) = सर्वथा प्राप्त कराएँ । वे हमें उस आनन्दमय 'अट्टहास' नामवाले प्रभु का ज्ञान दें, जो ज्ञान हमें उत्तम शक्ति-सम्पन्न बनानेवाला हो । प्रभु का ज्ञान हमारे जीवनों में आनन्दोल्लास को भी भरेगा और हमें शक्तिशाली भी बनाएगा। इसकी प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हमें ऐसे विद्वान् आचार्यों का सम्पर्क प्राप्त हो जो हमारे जीवन में उत्साह, ज्ञान की ज्योति व शक्ति का संचार करनेवाले हों।
भावार्थ -
उत्तम आचार्यों से हमें आनन्दमय प्रभु की ज्योति प्राप्त हो ।
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