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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1214
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
5

म꣣हो꣡ नो꣢ रा꣣य꣡ आ भ꣢꣯र꣣ प꣡व꣢मान ज꣣ही꣡ मृधः꣢꣯ । रा꣡स्वे꣢न्दो वी꣣र꣢व꣣द्य꣡शः꣢ ॥१२१४॥

स्वर सहित पद पाठ

म꣡हः꣢꣯ । नः꣣ । रायः꣢ । आ । भ꣣र । प꣡व꣢꣯मान । ज꣡हि꣢ । मृ꣡धः꣢꣯ । रा꣡स्व꣢꣯ । इ꣣न्दो । वीर꣡व꣢त् । य꣡शः꣢꣯ ॥१२१४॥


स्वर रहित मन्त्र

महो नो राय आ भर पवमान जही मृधः । रास्वेन्दो वीरवद्यशः ॥१२१४॥


स्वर रहित पद पाठ

महः । नः । रायः । आ । भर । पवमान । जहि । मृधः । रास्व । इन्दो । वीरवत् । यशः ॥१२१४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1214
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

हे (पवमान) = हम सबके जीवनों को पवित्र करनेवाले प्रभो ! १. (नः) = हमें (महे राये) = महत्त्वपूर्ण ऐश्वर्य के लिए, अर्थात् ज्ञानरूप ऐश्वर्य के लिए (आभर) = प्राप्त कराइए । २. इस ज्ञानैश्वर्य की प्राप्ति के लिए ही (मृधः) = कामादि हिंसक वृत्तियों को (जही) = नष्ट कीजिए । ३. हे (इन्दो) = परमैश्वर्यशाली, सर्वशक्तिमन् प्रभो! [इदि परमैश्वर्ये, इन्द्=to be powerful] (वीरवद् यशः) = वीरता से युक्त यश - हमें दीजिए । (रास्व) = काम ज्ञान पर सदा आवरण डाले रखता है। इस आवरण के हटने पर ही ज्ञान की दीप्ति चमकती है और मनुष्य उत्तम लोकहित के कार्यों को करता हुआ वीरता पूर्ण यश को प्राप्त करता है।

भावार्थ -

हम ज्ञानी बनें, काम पर विजय पाएँ, वीर व यशस्वी हों ।

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