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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1300
ऋषिः - पवित्र आङ्गिरसो वा वसिष्ठो वा उभौ वा देवता - पवमानाध्येता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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पा꣣वमानीः꣢ स्व꣣स्त्य꣡य꣢नीः सु꣣दु꣢घा꣣ हि꣡ घृ꣢त꣣श्चु꣡तः꣢ । ऋ꣡षि꣢भिः꣣ सं꣡भृ꣢तो꣣ र꣡सो꣢ ब्राह्म꣣णे꣢ष्व꣣मृ꣡त꣢ꣳ हि꣣त꣢म् ॥१३००

स्वर सहित पद पाठ

पा꣣वमानीः꣢ । स्व꣣स्त्य꣡य꣢नीः । स्व꣣स्ति । अ꣡यनीः꣢꣯ । सु꣣दु꣡घाः꣢ । सु꣣ । दु꣡घाः꣢꣯ । हि । घृ꣣तश्चु꣡तः꣢ । घृ꣣त । श्चु꣡तः꣢꣯ । ऋ꣡षि꣢꣯भिः । स꣡म्भृ꣢꣯तः । सम् । भृ꣣तः । र꣡सः꣢꣯ । ब्रा꣣ह्मणे꣡षु꣢ । अ꣣मृ꣡त꣢म् । अ꣣ । मृ꣡त꣢꣯म् । हि꣣त꣢म् ॥१३००॥


स्वर रहित मन्त्र

पावमानीः स्वस्त्ययनीः सुदुघा हि घृतश्चुतः । ऋषिभिः संभृतो रसो ब्राह्मणेष्वमृतꣳ हितम् ॥१३००


स्वर रहित पद पाठ

पावमानीः । स्वस्त्ययनीः । स्वस्ति । अयनीः । सुदुघाः । सु । दुघाः । हि । घृतश्चुतः । घृत । श्चुतः । ऋषिभिः । सम्भृतः । सम् । भृतः । रसः । ब्राह्मणेषु । अमृतम् । अ । मृतम् । हितम् ॥१३००॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1300
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

ये ऋचाएँ १. (पावमानी:) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाली हैं— मनोवृत्ति को उत्तम बनाकर ये हमारे जीवनों को सुन्दर बना देती हैं । २. (स्वस्त्ययनीः) = ये हमें सदा कल्याण के मार्ग पर लेचलनेवाली हैं, उत्तम कर्मों की प्रेरणा द्वारा हमें अशुभ मार्ग से निवृत्त करती हैं । ३. (सु-दुघा) = उत्तम वस्तुओं का हममें पूरण करनेवाली हैं। हमारे मनों में उत्तम भावनाओं को भरनेवाली हैं। ४. (हि) = निश्चय से ये (घृतश्चुतः) = हममें [घृ दीप्ति] दीप्ति को प्राप्त करानेवाली हैं, [घृ=क्षरण] मलों को दूर करके हमारी बुद्धियों की कुण्ठा को नष्ट करके ये हमारे ज्ञान को दीप्त करती हैं ।

इन्हीं के द्वारा (ऋषिभिः) = मन्त्रार्थद्रष्टाओं ने (रसः संभृतः) = अपने जीवन में रस का संचार किया अपने जीवन को मधुर बनाया और इन्हीं के द्वारा (ब्राह्मणेषु) = ब्रह्मज्ञानियों में (अमृतं हितम्) = मोक्ष निहित हुआ । इन्हीं का आश्रय करके उन्होंने अमरता का लाभ किया।

भावार्थ -

ऋचाओं से हम अपने जीवनों को पवित्र बनाएँ जिससे इहलोक में हमारा जीवन रसमय हो और परलोक में हम अमृत हों ।

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