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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1436
ऋषिः - कविर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
त꣡या꣢ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या꣣ य꣢या꣣ गा꣡व꣢ इ꣣हा꣢गम꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢स꣣ उ꣡प꣢ नो गृ꣣ह꣢म् ॥१४३६॥
स्वर सहित पद पाठत꣡या꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । य꣡या꣢꣯ । गा꣡वः꣢꣯ । इ꣣ह꣢ । आ꣣ग꣡म꣢न् । आ꣢ । ग꣡म꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢꣯सः । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । गृह꣢म् ॥१४३६॥
स्वर रहित मन्त्र
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम् ॥१४३६॥
स्वर रहित पद पाठ
तया । पवस्व । धारया । यया । गावः । इह । आगमन् । आ । गमन् । जन्यासः । उप । नः । गृहम् ॥१४३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1436
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - गौवें आनन्द व प्रेम
पदार्थ -
वृष्टि के ठीक होने पर सुभिक्ष होता है। सुभिक्ष गोपालनादि में सहायक होता है तथा सब घरों में आनन्द-मङ्गल बना रहता है । इसी भावना को 'कविर्भार्गव' इस रूप में कहता है कि -
हे सोम! आप (तया) = उस (धारया) = धारण करनेवाली वृष्टि जल धारा से (पवस्व) = जलों को आकाश से क्षरित कीजिए (यया) = जिससे (इह) = यहाँ — हमारे घरों में (गाव:) = गौवें (आगमन्) = आएँ । हमें चारे इत्यादि की कमी न होने से गौवों के रखने की सुविधा हो और परिणामत: (न: गृहम् उप) = हमारे घरों के समीप (जन्यासः) = आनन्द-ही-आनन्द [ pleasure, happiness ] हो तथा उनमें प्रेम [Affection] का राज्य हो ।
जिस घर में गौवों का निवास होता है वहाँ १. शरीर स्वस्थ होते हैं, २. मन विशाल होता है तथा ३. बुद्धि तीव्र व सात्त्विक होती है। परिणामतः वहाँ आनन्द द- ही - आनन्द होता है । सब लोग परस्पर प्रेम से रहते हैं ।
भावार्थ -
वृष्टि ठीक हो और हम घरों में गौवों को रक्खें, जिससे हममें नीरोगता, निश्छलता व निःस्वार्थता का आनन्द हो और परस्पर प्रेम हो ।
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