Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1559
ऋषिः - सौभरि: काण्व: देवता - अग्निः छन्दः - काकुभः प्रगाथः (विषमा ककुबुष्णिक्, समा सतोबृहती) स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
2

भ꣣द्रो꣡ नो꣢ अ꣣ग्नि꣡राहु꣢꣯तो भ꣣द्रा꣢ रा꣣तिः꣡ सु꣢भग भ꣣द्रो꣡ अ꣢ध्व꣣रः꣢ । भ꣣द्रा꣢ उ꣣त꣡ प्रश꣢꣯स्तयः ॥१५५९॥

स्वर सहित पद पाठ

भ꣣द्रः꣢ । नः꣣ । अग्निः꣢ । आ꣡हु꣢꣯तः । आ । हु꣣तः । भद्रा꣢ । रा꣣तिः꣢ । सु꣣भग । सु । भग । भद्रः꣢ । अ꣣ध्वरः꣢ । भ꣣द्राः꣢ । उ꣣त꣢ । प्र꣡श꣢꣯स्तयः । प्र । श꣣स्तयः ॥१५५९॥


स्वर रहित मन्त्र

भद्रो नो अग्निराहुतो भद्रा रातिः सुभग भद्रो अध्वरः । भद्रा उत प्रशस्तयः ॥१५५९॥


स्वर रहित पद पाठ

भद्रः । नः । अग्निः । आहुतः । आ । हुतः । भद्रा । रातिः । सुभग । सु । भग । भद्रः । अध्वरः । भद्राः । उत । प्रशस्तयः । प्र । शस्तयः ॥१५५९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1559
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment

पदार्थ -

१११ संख्या पर इस मन्त्र की व्याख्या इस प्रकार है

प्रथमाश्रम में (आहुतः) = अर्पण किये हुए (अग्निः) = माता-पिता व आचार्यरूप अग्नियाँ (नः) = हमारे लिए (भद्रः) = कल्याणकर हों ।

द्वितीयाश्रम में (सुभग) = घर को सौभाग्यशील बनानेवाली (राति:) = दान की वृत्ति (भद्रा) = हमारा शुभ करें ।

तृतीयाश्रम में (अध्वरः) = यज्ञ (भद्रः) = हमारे लिए कल्याणकर हो ।

(उत) = और अब चतुर्थाश्रम में (प्रशस्तयः) = प्रभु की स्तुतियाँ (भद्राः) = हमारा कल्याण करनेवाली हों ।

भावार्थ -

हमारे जीवन में क्रमश: समर्पण, दान, यज्ञ तथा प्रभुस्तवन हमारा कल्याण करनेवाले हों ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top