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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1600
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स्तो꣣त्र꣡ꣳ रा꣢धानां पते꣣ गि꣡र्वा꣢हो वीर꣣ य꣡स्य꣢ ते । वि꣡भू꣢तिरस्तु सू꣣नृ꣡ता꣢ ॥१६००॥

स्वर सहित पद पाठ

स्तो꣣त्र꣢म् । रा꣣धानाम् । पते । गि꣡र्वा꣢꣯हः । वी꣣र । य꣡स्य꣢꣯ । ते꣣ । वि꣡भू꣢꣯तिः । वि । भू꣣तिः । अस्तु । सूनृ꣡ता꣢ । सू꣣ । नृ꣡ता꣢꣯ ॥१६००॥


स्वर रहित मन्त्र

स्तोत्रꣳ राधानां पते गिर्वाहो वीर यस्य ते । विभूतिरस्तु सूनृता ॥१६००॥


स्वर रहित पद पाठ

स्तोत्रम् । राधानाम् । पते । गिर्वाहः । वीर । यस्य । ते । विभूतिः । वि । भूतिः । अस्तु । सूनृता । सू । नृता ॥१६००॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1600
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

गत मन्त्र में शुन: शेप ने ज्ञान के वचनों को प्राप्त कराने के लिए प्रार्थना की थी । उस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए प्रभु शुनः शेप से कहते हैं - हे (वीर) = कामादि शत्रुओं को कम्पित करके दूर करनेवाले ! (राधानां पते) = सफलताओं के पति शुन: शेप ! (गिरवाहः) = वेदवाणियों को धारण करनेवाले (यस्य ते) = जिस तेरा (स्तोत्रम्) = यह स्तुतिवचन है, अर्थात् जो तू प्रभु की स्तुति करने में प्रवृत्त है, उस तेरी (विभूतिः) = समृद्धि (सूनृता अस्तु) = प्रिय व सत्य हो ।

प्रभु का स्तोता बनने के लिए आवश्यक है कि हम १. वीर हों – कामादि शत्रुओं को दूर भगानेवालो हों। २. कर्मों को इस प्रकार कुशलता व समझदारी से करें कि हमें सफलता-हीसफलता मिले। ३. वेदवाणियों को धारण करनेवाले बनें तथा ४. हमारी समृद्धि प्रिय व सत्य हो - अर्थात् हम क्रूरता व अन्याय से धन जुटानेवाले न हों।

सच्चे स्तोता बनने के लिए आवश्यक ये चार बातें ही हमारे जीवन को सचमुच सुखी करेंगी और हम सच्चे अर्थों में 'शुन: शेप' बन पाएँगे ।

भावार्थ -

मैं वीर, राधानां पति, गिर्वाह तथा सूनृत विभूतिवाला बनूँ ।

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