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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1611
ऋषिः - पर्वतनारदौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
1
गो꣡म꣢न्न इन्दो꣣ अ꣡श्व꣢वत्सु꣣तः꣡ सु꣢दक्ष धनिव । शु꣡चिं꣢ च꣣ व꣢र्ण꣣म꣢धि꣣ गो꣡षु꣢ धारय ॥१६११॥
स्वर सहित पद पाठगो꣡म꣢꣯त् । नः꣣ । इन्दो । अ꣡श्व꣢꣯वत् । सु꣣तः꣢ । सु꣣दक्ष । सु । दक्ष । धनिव । शु꣡चि꣢꣯म् । च꣣ । व꣡र्ण꣢꣯म् । अ꣡धि꣢꣯ । गो꣡षु꣢꣯ । धा꣣रय ॥१६११॥
स्वर रहित मन्त्र
गोमन्न इन्दो अश्ववत्सुतः सुदक्ष धनिव । शुचिं च वर्णमधि गोषु धारय ॥१६११॥
स्वर रहित पद पाठ
गोमत् । नः । इन्दो । अश्ववत् । सुतः । सुदक्ष । सु । दक्ष । धनिव । शुचिम् । च । वर्णम् । अधि । गोषु । धारय ॥१६११॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1611
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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विषय - देदीप्यमान जीवन
पदार्थ -
इसका व्याख्यान ५७४ संख्या पर इस प्रकार हैहे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम! तू (सुतः) = उत्पन्न हुआ-हुआ (नः) = हमारे लिए (गोमत्) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला, (अश्ववत्) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला होकर (धनिव) = हमारे शरीर में गति कर यह सोम (सुदक्ष) = उत्तम बलवाला है। हे सोम! तू (गोषु) = हमारी ज्ञानेन्द्रियों में (शुचिं च वर्णम्) = खूब ही दीप्त रूप को (अधिधारय) = आधिक्येन धारण कर ।
भावार्थ -
सोम हमारे जीवन को चमकानेवाला हो ।
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