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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1657
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चाङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
प꣡न्यं꣢पन्य꣣मि꣡त्सो꣢तार꣣ आ꣡ धा꣢वत꣣ म꣡द्या꣢य । सो꣡मं꣢ वी꣣रा꣢य꣣ शू꣡रा꣢य ॥१६५७॥
स्वर सहित पद पाठप꣡न्यं꣢꣯पन्यम् । प꣡न्य꣢꣯म् । प꣣न्यम् । इ꣢त् । सो꣣तारः । आ꣢ । धा꣣वत । म꣡द्या꣢꣯य । सो꣡म꣢꣯म् । वी꣣रा꣡य꣢ । शू꣡रा꣢꣯य ॥१६५७॥
स्वर रहित मन्त्र
पन्यंपन्यमित्सोतार आ धावत मद्याय । सोमं वीराय शूराय ॥१६५७॥
स्वर रहित पद पाठ
पन्यंपन्यम् । पन्यम् । पन्यम् । इत् । सोतारः । आ । धावत । मद्याय । सोमम् । वीराय । शूराय ॥१६५७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1657
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - सात्त्विक भोजन
पदार्थ -
यह मन्त्र १२३ संख्या पर व्याख्यात है । मन्त्र का सरलार्थ निम्न है = (सोतार:) = हे प्रभु के उपासको ! (इत्) = निश्चय से (पन्यंपन्यम्) = स्तुत्य और स्तुत्य ही, अर्थात् सात्त्विक भोजनों का ही ग्रहण करो और इस प्रकार (सोमं आ धावत) = सोम को सर्वथा शुद्ध रक्खो । यह सुरक्षित सोम (मद्याय) = हर्ष के लिए होगा, (वीराय) = वीरत्व [Virtue] व गुणों के उत्पादन के लिए होगा तथा (शूराय) = [शृ हिंसायाम्] सब रोगों का शीर्ण करनेवाला होगा।
भावार्थ -
सोमरक्षा के लिए सात्त्विक भोजन आवश्यक है ।
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