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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1717
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
त꣡ꣳ हि꣢न्वन्ति मद꣣च्यु꣢त꣣ꣳ ह꣡रिं꣢ न꣣दी꣡षु꣢ वा꣣जि꣡न꣢म् । इ꣢न्दु꣣मि꣡न्द्रा꣢य मत्स꣣र꣢म् ॥१७१७॥
स्वर सहित पद पाठत꣢म् । हि꣣न्वन्ति । मदच्यु꣡त꣢म् । म꣣द । च्यु꣡त꣢꣯म् । ह꣡रि꣢꣯म् । न꣣दी꣡षु꣢ । वा꣣जि꣡न꣢म् । इ꣡न्दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । म꣣त्सर꣢म् ॥१७१७॥
स्वर रहित मन्त्र
तꣳ हिन्वन्ति मदच्युतꣳ हरिं नदीषु वाजिनम् । इन्दुमिन्द्राय मत्सरम् ॥१७१७॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । हिन्वन्ति । मदच्युतम् । मद । च्युतम् । हरिम् । नदीषु । वाजिनम् । इन्दुम् । इन्द्राय । मत्सरम् ॥१७१७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1717
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
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विषय - किसकी ओर ? उस प्रभु की ओर
पदार्थ -
गत मन्त्र में कहा था कि–'दुर्धी' से– दुष्ट बुद्धि से मनुष्य प्रभु के व्रतों को तोड़ते हैं। व्रतों को तोड़ने पर कष्ट आते हैं, ये कड़वे अनुभव उन्हें फिर से 'सुधी' बनाते हैं और ये सुधी पुरुष (तम्) = उस प्रभु को (हिन्वन्ति) = प्राप्त करते हैं – उस प्रभु की ओर चलते हैं जो -
१. (मदच्युतम्) = सब अहंकार के नाशक है अथवा हर्ष की वर्षा करनेवाले हैं, ‘मदच्युत्’ शब्द के ये दोनों ही अर्थ हैं और इनमें कार्यकारणभाव है। जितना - जितना अहंकार नष्ट होता जाता है उतना-उतना आनन्द अभिवृद्ध होता चलता है।
२. (हरिम्) = सब दोषों व दु:खों का हरण करनेवाले हैं। प्रभु हमारे देषों को दूर करते हैं और इस प्रकार हमारे दु:खों को भी दूर कर देते हैं।
३. (नदीषु वाजिनम्) = अपने स्तोताओं में वाजशक्ति का संचार करनेवाले हैं । हम प्रभु के स्मरण से उसके सम्पर्क में आते हैं और इस सम्पर्क से हममें प्रभु-शक्ति का प्रवाह होता है । ४. इन्दुम्=वे प्रभु परमैश्वर्यशाली हैं। उनका मित्र बन मैं भी इस परमैश्वर्य में भागीदार बनता हूँ ।
५. (इन्द्राय मत्सरम्) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता जितेन्द्रिय भक्त के लिए वे प्रभु हर्ष देनेवाले हैं । प्रभु का सम्पर्क मुझे वासनाओं के विजय में समर्थ करता है। मैं इन्द्रियों का अधिष्ठाता बनता हूँ और ('सर्वमात्मवशं सुखम्') इस नियम के अनुसार मेरा जीवन उल्लासमय होता है।
भावार्थ -
हम सदा प्रभु की ओर चलनेवाले बनें ।
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