Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 431
ऋषिः - ऋण0त्रसदस्यू देवता - पवमानः सोमः छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
5

इ꣡न्दुः꣢ पविष्ट꣣ चा꣢रु꣣र्म꣡दा꣢या꣣पा꣢मु꣣प꣡स्थे꣢ क꣣वि꣡र्भ꣢꣯गाय ॥४३१॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्दुः꣢ । प꣣विष्ट । चा꣡रुः꣢꣯ । म꣡दा꣢꣯य । अ꣣पा꣢म् । उ꣣प꣡स्थे꣢ । उ꣣प꣢ । स्थे꣣ । कविः꣢ । भ꣡गा꣢꣯य ॥४३१॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्दुः पविष्ट चारुर्मदायापामुपस्थे कविर्भगाय ॥४३१॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्दुः । पविष्ट । चारुः । मदाय । अपाम् । उपस्थे । उप । स्थे । कविः । भगाय ॥४३१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 431
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
Acknowledgment

पदार्थ -

सोम का नाम ‘इन्दु' भी है। यह बिन्दु का ही रूपान्तर है। बिन्दु सोमकणों का नाम है—‘मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिन्दुधारणात् ' । [ इन्दति to be powerful] इसका नाम इन्दु इसलिए पड़ा कि यह सम्पूर्ण शक्ति का स्रोत है। यह (पविष्ट)= मेरे जीवन को पवित्र बनाता है। सोम से उत्पन्न ‘शक्ति, पवित्रता व ज्ञान' ये सब तत्त्व मिलकर (चारु:) = मेरे जीवन के सौन्दर्य का हेतु होते हैं। (मदाय) = यह जीवन मेरे उल्लास के लिए होता है। सौन्दर्य के साथ उल्लास का स्वाभाविक सम्बन्ध है। सौन्दर्य व उल्लास से युक्त होकर यह (अपाम्) = कर्मों के (उपस्थे) = मध्य में बिराजता है। यह कर्मों से घबरा कर पर्वत कन्दराओं का आश्रय नहीं करता। यह कवि बनकर कर्म करता है जिससे उनमें उलझ न जाए। (कविः) = क्रान्तदर्शी, तत्त्वद्रष्टा होने से उन कर्मों को यह असक्तभाव से करता चलता है। कर्म उसके लिए स्वाभाविक हो जाते हैं। यह (भगाय) = ऐश्वर्यादि छह भगों की प्राप्ति के समर्थ होता है। उन्हें प्राप्त करके भगवान्-सा बन जाता है। विद्वान् लोग इन्हें वीर मानकर आदर देने लगते हैं। यह मनुष्य के उत्कर्ष की परिनिष्ठा होती है उसका उत्कर्ष यहाँ चरम विकास पर होता है। 

भावार्थ -

मैं सोमपान से सुन्दर, उल्लासमय, कर्मठ, क्रान्तदर्शी व अनासक्त [वैराग्य युक्त] जीवनवाला बनूँ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top