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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 552
ऋषिः - अम्बरीषो वार्षागिर ऋजिष्वा भारद्वाजश्च
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣢रि꣣ त्य꣡ꣳ ह꣢र्य꣣त꣡ꣳ हरिं꣢꣯ ब꣣भ्रुं꣡ पु꣢नन्ति꣣ वा꣡रे꣢ण । यो꣢ दे꣣वा꣢꣫न्विश्वा꣣ꣳ इ꣢꣫त्परि꣣ म꣡दे꣢न स꣣ह꣡ गच्छ꣢꣯ति ॥५५२॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । त्यम् । ह꣣र्यतम् । ह꣡रि꣢꣯म् । ब꣣भ्रु꣢म् । पु꣣नन्ति । वा꣡रे꣢꣯ण । यः । दे꣣वा꣢न् । वि꣡श्वा꣢꣯न् । इत् । प꣡रि꣢꣯ । म꣡दे꣢꣯न । स꣣ह꣢ । ग꣡च्छ꣢꣯ति ॥५५२॥
स्वर रहित मन्त्र
परि त्यꣳ हर्यतꣳ हरिं बभ्रुं पुनन्ति वारेण । यो देवान्विश्वाꣳ इत्परि मदेन सह गच्छति ॥५५२॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । त्यम् । हर्यतम् । हरिम् । बभ्रुम् । पुनन्ति । वारेण । यः । देवान् । विश्वान् । इत् । परि । मदेन । सह । गच्छति ॥५५२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 552
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
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विषय - ठीक चुनाव, ठीक प्रगति
पदार्थ -
‘अम्बरीष' = आये-गये का मधुर शब्दों में स्वागत करनेवाला 'वर्षागिर' = जिसकी वाणी से मधु टपकता है, वह अपने जीवन को उस व्यक्ति जैसा बनाता है (यः) = जो (विश्वा देवान्) = सब दिव्य गुणों की ओर (इत्) = सचमुच (मदेन सह) = आनन्द के साथ (परि गच्छति) = जाता है। दिव्य गुणों में आनन्द लेनेवाला व्यक्ति उस उत्तम मार्ग पर उत्साह से चलता है और लक्ष्य स्थान पर अवश्य ही पहुँचता है। परन्तु इस मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक चलना तभी सम्भव हो सकता है जब हम अपने जीवन का ठीक चुनाव कर लें। इसी ठीक चुनाव का उल्लेख मन्त्र के पूर्वार्ध में है। ये लोग (त्यम्)= उस (हर्यतम्) = काम्य-कामना करने के योग्य-चाहने योग्य (हरिम्) = सब दुःखों के हरनेवाले तथा (बभ्रुम्) = भरण-पोषण करनेवाले प्रभु को वारेण - वासनाओं के वारण के द्वारा (परिपुनन्ति) = ज्ञान का विषय बनाते हैं - प्रभु का चिन्तन करते हैं। प्रभु सर्वव्यापक होने से हमारे अन्दर भी विद्यमान् हैं ही, परन्तु सामान्यतः हमें उस प्रभु का आभास नहीं होता। जब काम-क्रोध का निवारण करके हम अपने ज्ञान को आवृत नहीं होने देते तो उस प्रभु की हमें प्रतीति होती है। उसमें जो आनन्द व शान्ति प्राप्त होती है, वह सांसारिक ऐश्वर्यों इस भरपूर होने पर भी प्राप्त नहीं हो सकती। यह व्यक्ति विचार कर अब ठीक निश्चय करता है। और प्रेय के बजाय श्रेय मार्ग को ही चुनता है । इस ठीक चुनाव को करने के बाद वह आनन्दपूर्वक इस दिव्यता की प्राप्ति के मार्ग पर बढ़ता है। संसार की चकाचौंध से इसकी आँखें चुंधयाती नहीं, यह प्रसिद्धि या यश का भूखा नहीं बनता। अप्रसिद्धि में ही रहकर, चुपचाप लोक सेवा करता हुआ, यह दिव्यता के मार्ग पर आगे-और-आगे बढ़ता ही जाता है।
भावार्थ -
मेरा चुनाव ठीक हो, और तब उस श्रेय मार्ग पर मैं प्रसन्नता से आगे बढूँ।
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