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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
    सूक्त - आदित्य देवता - साम्नी अनुष्टुप् छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    मा मां प्रा॒णोहा॑सी॒न्मो अ॑पा॒नोऽव॒हाय॒ परा॑ गात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । माम् । प्रा॒ण: । हा॒सी॒त् । मो इति॑ । अ॒पा॒न: । अ॒व॒ऽहाय॑ । परा॑ । गात् ॥४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा मां प्राणोहासीन्मो अपानोऽवहाय परा गात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । माम् । प्राण: । हासीत् । मो इति । अपान: । अवऽहाय । परा । गात् ॥४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 4; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १. आत्मनिरीक्षण करनेवाला व्यक्ति युक्ताहार-विहार करनेवाला बनता है। युक्ताहार विहारवाला होता हुआ यह प्रार्थना करता है कि (माम्) = मुझे (प्राण:) = प्राणशक्ति (मा हासीत) = मत छोड़ जाए। (उ) = और (अपान:) = अपानशक्ति भी (माम्) = मुझे छोड़कर (मा परागात्) = दूर मत चली जाए। २. प्राणशक्ति ने ही तो शरीर में बल का संचार करना है तथा अपान ने सब दोषों का निराकरण करके हमें स्वस्थ बनाना है।

    भावार्थ - आत्मनिरीक्षण करते हुए मैं युक्ताहार-विहारवाला बनूं तथा वासनाओं को विनष्ट करता हुआ अपनी प्राणापानशक्ति को सुरक्षित रक्खें।

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