अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
ऋषिः - आदित्य
देवता - साम्नी अनुष्टुप्
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
56
मा मां प्रा॒णोहा॑सी॒न्मो अ॑पा॒नोऽव॒हाय॒ परा॑ गात् ॥
स्वर सहित पद पाठमा । माम् । प्रा॒ण: । हा॒सी॒त् । मो इति॑ । अ॒पा॒न: । अ॒व॒ऽहाय॑ । परा॑ । गात् ॥४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
मा मां प्राणोहासीन्मो अपानोऽवहाय परा गात् ॥
स्वर रहित पद पाठमा । माम् । प्राण: । हासीत् । मो इति । अपान: । अवऽहाय । परा । गात् ॥४.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पदार्थ
[हे ईश्वर !] (प्राणः)प्राण [श्वास] (माम्) मुझे (मा हासीत्) न छोड़े, (मो) और न (अपानः) अपान [प्रश्वास] (अवहाय) छोड़कर (परा गात्) दूर जावे ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य शरीर कीस्वस्थता के साथ आत्मबल बढ़ाते रहें ॥३॥
टिप्पणी
३−(मा हासीत्) मा त्यजेत् (माम्)प्राणिनम् (प्राणः) श्वासः (मो) न च (अपानः) प्रश्वासः (अवहाय) परित्यज्य (परागात्) दूरे गच्छतु ॥
विषय
प्राणापान
पदार्थ
१. आत्मनिरीक्षण करनेवाला व्यक्ति युक्ताहार-विहार करनेवाला बनता है। युक्ताहार विहारवाला होता हुआ यह प्रार्थना करता है कि (माम्) = मुझे (प्राण:) = प्राणशक्ति (मा हासीत) = मत छोड़ जाए। (उ) = और (अपान:) = अपानशक्ति भी (माम्) = मुझे छोड़कर (मा परागात्) = दूर मत चली जाए। २. प्राणशक्ति ने ही तो शरीर में बल का संचार करना है तथा अपान ने सब दोषों का निराकरण करके हमें स्वस्थ बनाना है।
भावार्थ
आत्मनिरीक्षण करते हुए मैं युक्ताहार-विहारवाला बनूं तथा वासनाओं को विनष्ट करता हुआ अपनी प्राणापानशक्ति को सुरक्षित रक्खें।
भाषार्थ
(प्राणः) प्राण वायु (माम्) मुझे (मा) न (हासीत्) त्यागे, (मा उ) और न (आपानः) अपान वायु (अवहाय) मुझे छोड़ कर (परा गात्) मुझ से पराङ्मुख हो जाय ।
टिप्पणी
[परा गात् =परे चली जाय। वैदिक योगी, मृत्युकाल की प्रतीक्षा में शरीर धारण करते रहते के विचार वाला नहीं, अपितु परमेश्वर से चिरायु की प्रार्थना वह इसलिये करता है ताकि वह योगमार्ग में अन्यों को दीक्षित करने का अधिक अवसर प्राप्त कर सके]
विषय
रक्षा, शक्ति और सुख की प्रार्थना।
भावार्थ
(माम्) मुझको (प्राण मा हासीत्) प्राण त्याग न करे। (अपानः उ) अपान भी (मा अवहाय परा गात्) मुझे छोड़ कर परे न जाय।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। आदित्यो देवता। १, ३ सामन्यनुष्टुभौ, २ साम्न्युष्णिक्, ४ त्रिपदाऽनुष्टुप्, ५ आसुरीगायत्री, ६ आर्च्युष्णिक्, ७त्रिपदाविराङ्गर्भाऽनुष्टुप्। सप्तर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
Let not prana forsake me, let not apana forsake me and go apart.
Translation
May in-breath not desert me; may out-breath also not go away deserting me.
Translation
Let not in ward breath leave me and let not outward one go away leaving me.
Translation
Let not inward breath desert me; let not outward breath depart and leave me.
Footnote
I must enjoy the full span of life, and die not at an early age.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(मा हासीत्) मा त्यजेत् (माम्)प्राणिनम् (प्राणः) श्वासः (मो) न च (अपानः) प्रश्वासः (अवहाय) परित्यज्य (परागात्) दूरे गच्छतु ॥
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