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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
    ऋषिः - आदित्य देवता - त्रिपदा विराण्नाम गायत्री छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    63

    शक्व॑री स्थप॒शवो॒ मोप॑ स्थेषुर्मि॒त्रावरु॑णौ मे प्राणापा॒नाव॒ग्निर्मे॒ दक्षं॑ दधातु॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शक्व॑री: । स्थ॒ । प॒शव॑: । मा॒ । उप॑ । स्थे॒षु॒: । मि॒त्रावरु॑णौ । मे॒ । प्रा॒णा॒पा॒नौ । अ॒ग्नि: । मे॒ । दक्ष॑म् । द॒धा॒तु॒ ॥४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शक्वरी स्थपशवो मोप स्थेषुर्मित्रावरुणौ मे प्राणापानावग्निर्मे दक्षं दधातु॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शक्वरी: । स्थ । पशव: । मा । उप । स्थेषु: । मित्रावरुणौ । मे । प्राणापानौ । अग्नि: । मे । दक्षम् । दधातु ॥४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (4)

    विषय

    आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे प्रजाओ !] तुम (शक्वरीः) बलवती (स्थ) हो, (पशवः) सब प्राणी (मा उप) मेरे समीप (स्थेषुः) ठहरें, (अग्निः) ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर (मित्रावरुणौ) दो श्रेष्ठ मित्र (मे) मेरे (प्राणापानौ) प्राण और अपान को और (मे) मेरी (दक्षम्) चतुराई को (दधातु) स्थिररक्खे ॥७॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य विद्वानोंके उपदेश और परमात्मा की उपासना में तत्पर रहते हैं, वे अपने शरीर और आत्मा सेस्वस्थ रहकर कार्यकुशल होते हैं ॥७॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    ७−(शक्वरीः)स्नामदिपद्यर्त्तिपॄशकिभ्यो वनिप्। उ० ४।११३। शक्नोतेर्वनिप्, ङीब्रेफौ।शक्तिमत्यः प्रजाः (स्थ) भवथ (पशवः) प्राणिनः (मा) माम् (उप) उपेत्य (स्थेषुः)तिष्ठन्तु (मित्रावरुणौ) मित्रवरौ (मे) मम (प्राणापानौ) श्वासप्रश्वासौ (अग्निः)ज्ञानस्वरूपः परमेश्वरः (मे) (दक्षम्) कार्यकुशलताम् (दधातु) स्थापयतु ॥

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    विषय

    मित्रावरुणौ-दक्षम्

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र से'आप:' का यहाँ भी अनुवर्तन है। हे (आपः) [शरीरस्थ रेत:कणो]! (शक्वरी स्थ) = तुम शरीर को शक्तिशाली बनानेवाले हो। इन रेत:कणों के रक्षण से (पशवः) [प्राणः पशव: शत० ७.५.२.६]-(प्राण मा उपस्थेषुः) = मुझे प्राप्त हों। रेतःकणों का रक्षण मेरे प्राणापान को सबल बनाए। २. ये (प्राणपानौ) = प्राण और अपान मे मित्रावरुणौ मुझे पापों व मृत्यु से बचानेवाले [प्रमीतेः त्रयते] तथा मुझे द्वेषशुन्य बनानेवाले [वारयति] है। प्राणसाधना के होने पर शरीर नीरोग बनता है तथा मन निष्याप व निर्दोष होता है। ३. इन रेत:कणों का रक्षण होने पर (अग्निः) = शरीर में उचित मात्रा में विकसित हुआ-हुआ अग्नितत्व में (दक्षं दधातु) = मुझमें बल का धारण करे ।

    भावार्थ

    प्राणसाधना द्वारा शरीर में रेत:कणों का रक्षण होता है। इसप्रकार ये प्राणापान हमें 'नीरोग, निष, निष्पाप व शक्तिशाली' बनाते हैं। प्राणसाधना द्वारा हम इन्द्रियों का संयम करनेवाले 'यम' बनते हैं। अगले सब सूक्तों का [५ से ९ तक] ऋषि 'यम' ही है

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    भाषार्थ

    हे गौओ! (शक्वरः) शक्ति शालिनी (स्थ) तुम हो, (पशवः) गोपशु (मा) मेरे समीप (उप स्थेषुः) उपस्थित रहें (मित्रावरुणौ) मित्र और वरुण जो कि (मे) मेरे (प्राणापानौ) प्राण और अपान है वे, तथा (अग्निः) अग्नि, (मे) मुझ में (दक्षम्) बल (दधातु) धारण कर।

    टिप्पणी

    [शक्वरीः= शकि वनिप्, रेफ, ङीप् (उणा० ४।११४); शक्वरी गोनाम (निघं० २।११)। गौओं में शक्तिशाली दूध देने की शक्ति होती है। इन का दूध सात्त्विक होता है, अतः इनकी प्राप्ति की प्रार्थना है। प्राण=मित्र; और अपान=वरुण। जीवन में प्राण स्नेहकारी है अतः मित्र है (मिदि स्नेहने); अथवा मित्रः=प्रमीते ! त्रायते (निरु० १०।२।२१), प्राण मृत्यु से रक्षा करता है। अपान शरीरगत मलमूत्र तथा अशुद्ध वायु को अपगत करता है, निवारित करता है, अतः वरुण है। शक्वरीः=योगी के लिए सात्त्विक गोदुग्ध महोपकारी है। शक्वरी गोनाम (निघं० २।११)। "शक्वरीः=(शक्) शक्ति प्रदान में+ (वरीः) श्रेष्ठ=गौएं]

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    विषय

    रक्षा, शक्ति और सुख की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे आप्त पुरुषो ! आप लोग (शक्वरीः स्थ) शक्ति से सम्पन्न हो। (पशवः) पशु लोग (मा उपस्थेषुः) मेरे पास आवें। (मित्रा-वरुणौ) मित्र और वरुण (मे) मुझे (प्राणापानौ) प्राण और अपान, बल प्रदान करें। (अग्निः मे दक्षं दधातु) अग्नि, जाठर अभि मुझे बल प्रदान करे।

    टिप्पणी

    ‘स्थेषु’ इति बहुत्र।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। आदित्यो देवता। १, ३ सामन्यनुष्टुभौ, २ साम्न्युष्णिक्, ४ त्रिपदाऽनुष्टुप्, ५ आसुरीगायत्री, ६ आर्च्युष्णिक्, ७त्रिपदाविराङ्गर्भाऽनुष्टुप्। सप्तर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    O people of the world, be bold and powerful, may all living beings around me abide in joy. May Mitra and Varuna, divine sun and moon, give me prana and apana energies of nature, and Agni, heat and light of life, bless me with strength and efficiency.

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    Translation

    Cows you are, May the cattle come to me. May the Lord friendly and venerable preserve my in-breath and out-breath. May the adorable Lord grant me dexterity.

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    Translation

    These water are powerful, let the animals remain with me, let day and night strengthen my inward and outward breath and let fire give me strength.

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    Translation

    O learned persons, may ye be endowed with power! May all creatures stand beside me. May Mitra and Varuna strengthen my inward breath and outward breath. May God grant me practical wisdom.

    Footnote

    Mitra and Varuna: Two learned friends.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(शक्वरीः)स्नामदिपद्यर्त्तिपॄशकिभ्यो वनिप्। उ० ४।११३। शक्नोतेर्वनिप्, ङीब्रेफौ।शक्तिमत्यः प्रजाः (स्थ) भवथ (पशवः) प्राणिनः (मा) माम् (उप) उपेत्य (स्थेषुः)तिष्ठन्तु (मित्रावरुणौ) मित्रवरौ (मे) मम (प्राणापानौ) श्वासप्रश्वासौ (अग्निः)ज्ञानस्वरूपः परमेश्वरः (मे) (दक्षम्) कार्यकुशलताम् (दधातु) स्थापयतु ॥

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