अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
ऋषिः - आदित्य
देवता - आसुरी गायत्री
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
62
प्राणा॑पानौ॒ मामा॑ हासिष्टं॒ मा जने॒ प्र मे॑षि ॥
स्वर सहित पद पाठप्राणा॑पानौ । मा । मा॒ । हा॒सि॒ष्ट॒म् । मा । जने॑ । प्र । मे॒षि॒ ॥४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राणापानौ मामा हासिष्टं मा जने प्र मेषि ॥
स्वर रहित पद पाठप्राणापानौ । मा । मा । हासिष्टम् । मा । जने । प्र । मेषि ॥४.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पदार्थ
(प्राणापानौ) हे प्राणऔर अपान ! तुम दोनों (मा) मुझे (मा हासिष्टम्) मत छोड़ो, (जने) मनुष्यों के बीच (मा प्र मेषि) कभी नष्ट न होऊँ ॥५॥
भावार्थ
मनुष्य अपने शरीर औरआत्मा से सावधान रहकर निर्भयता से कर्तव्यपरायण हो ॥५॥
टिप्पणी
५−(प्राणापानौ) हेश्वासप्रश्वासौ (मा) माम् (मा हासिष्टम्) नैव त्यजतम् (जने) मनुष्येषु (प्र)प्रकर्षेण (मा मेषि) मीङ् हिंसायाम्-लुङ्। नाशं मा प्राप्नुयाम् ॥
विषय
प्राणसाधना द्वारा दोषदहन
पदार्थ
१. (प्राणापानौ) = प्राण और अपान (मा) = मुझे (मा हासिष्टं) = मत छोड़ जाएँ। मैं सदा प्राणापान की साधना करनेवाला बनूं। प्राण की अपान में तथा अपान की प्राण में आहुति देता हुआ प्राणापान यज्ञ को करनेवाला बनूं। २. इस साधना को करता हुआ मैं (जने) = मनुष्य के विषय में (मा) = मत (प्रमेषि) = भ्रान्त [goastray] हो जाऊँ, अर्थात् मनुष्यों के विषय में किसी प्रकार की गलती न करूँ। सदा मानवोचित कार्य ही करनेवाला बनूं।
भावार्थ
हम प्राणसाधना में प्रवृत्त रहते हुए इन्द्रिय-दोषों को दूर करनेवाले बनें 'तथेन्द्रियाणां दह्यन्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहात्।
भाषार्थ
(प्राणपानौ) हे प्राण-अपान! (मा) मुझे (मा) न (हासिष्टम्) तुम त्यागो (जने) जन समुदाय में (मा) न (प्र मेषि) मैं शीघ्र मरुं।
टिप्पणी
[मेषि=मीङ् हिंसायाम्]
विषय
रक्षा, शक्ति और सुख की प्रार्थना।
भावार्थ
(प्राणापानौ) प्राण और अपान दोनों (मा मा हासिष्टम्) मुझे त्याग न करें। मैं (जने) लोगों के बीच रहता हुआ (मा प्रमेषि) कभी न मरूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। आदित्यो देवता। १, ३ सामन्यनुष्टुभौ, २ साम्न्युष्णिक्, ४ त्रिपदाऽनुष्टुप्, ५ आसुरीगायत्री, ६ आर्च्युष्णिक्, ७त्रिपदाविराङ्गर्भाऽनुष्टुप्। सप्तर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
Let prana and apana not forsake me, let me not die out among men.
Translation
May both, the in-breath and the out-breath, not desert me. May I not be killed by man.
Translation
Let not prana and apana abondon me and I living amog men may not die.
Translation
Let not inward and outward breath fail me. May I not be destroyed among the men.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(प्राणापानौ) हेश्वासप्रश्वासौ (मा) माम् (मा हासिष्टम्) नैव त्यजतम् (जने) मनुष्येषु (प्र)प्रकर्षेण (मा मेषि) मीङ् हिंसायाम्-लुङ्। नाशं मा प्राप्नुयाम् ॥
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