अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं नः॑ स॒त्यस्य॒ पत॑यो भवन्तु॒ शं नो॒ अर्व॑न्तः॒ शमु॑ सन्तु॒ गावः॑। शं न॑ ऋ॒भवः॑ सु॒कृतः॑ सु॒हस्ताः॒ शं नो॑ भवन्तु पि॒तरो॒ हवे॑षु ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। स॒त्यस्य॑। पत॑यः। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। अर्व॑न्तः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। गावः॑। शम्। नः॒। ऋ॒भवः॑। सु॒ऽकृतः॑। सु॒ऽहस्ताः॑। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। पि॒तरः॑। हवे॑षु ॥११.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नः सत्यस्य पतयो भवन्तु शं नो अर्वन्तः शमु सन्तु गावः। शं न ऋभवः सुकृतः सुहस्ताः शं नो भवन्तु पितरो हवेषु ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। सत्यस्य। पतयः। भवन्तु। शम्। नः। अर्वन्तः। शम्। ऊं इति। सन्तु। गावः। शम्। नः। ऋभवः। सुऽकृतः। सुऽहस्ताः। शम्। नः। भवन्तु। पितरः। हवेषु ॥११.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
विषय - सत्यस्य पतयः
पदार्थ -
१. (सत्यस्य पतयः) = अपने में सत्य वेदज्ञान का रक्षण करनेवाले ब्राह्मण (नः शं भवन्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हों। (न:) = हमारे लिए (अर्वन्तः) = घोड़े (शम्) = शान्ति दें, (उ) = और (गाव:) = गौएँ शं सन्तु शान्तिकर हों। २. ये (ऋभव:) = [उरुभान्ति] उस-उस कला से दीप्त होनेवाली (सुकृत:) = उत्तमता से वस्तुओं का निर्माण करनेवाले (सुहस्ता:) = उत्तम हस्तकौशलवाले शिल्पी (नः शम्) = हमें शान्ति प्राप्त कराएँ, (पितर:) = सब रक्षक लोग (हुवेषु) = संग्रामों में (नः शं भवन्तु) = हमारे लिए शान्ति देनेवाले हों।
भावार्थ - ब्राह्मण, घोड़े, गौएँ, शिल्पी व रक्षक लोग हमें शान्ति प्राप्त कराएँ।
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