अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 11/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं नो॑ दे॒वा वि॒श्वदे॑वा भवन्तु॒ शं सर॑स्वती स॒ह धी॒भिर॑स्तु। शम॑भि॒षाचः॒ शमु॑ राति॒षाचः॒ शं नो॑ दि॒व्याः पार्थि॑वाः॒ शं नो॒ अप्याः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। दे॒वाः। वि॒श्वऽदे॑वाः। भ॒व॒न्तु॒। शम्। सर॑स्वती। स॒ह॒। धी॒भिः। अ॒स्तु॒। शम्। अ॒भि॒ऽसाचः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। रा॒ति॒ऽसाचः॑। शम्। नः॒। दि॒व्याः। पार्थि॑वाः। शम्। नः॒। अप्याः॑ ॥११.२॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो देवा विश्वदेवा भवन्तु शं सरस्वती सह धीभिरस्तु। शमभिषाचः शमु रातिषाचः शं नो दिव्याः पार्थिवाः शं नो अप्याः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। देवाः। विश्वऽदेवाः। भवन्तु। शम्। सरस्वती। सह। धीभिः। अस्तु। शम्। अभिऽसाचः। शम्। ऊं इति। रातिऽसाचः। शम्। नः। दिव्याः। पार्थिवाः। शम्। नः। अप्याः ॥११.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
विषय - दिव्य, पार्थिव, अप्य
पदार्थ -
१. (नः) = हमारे लिए (विश्वदेवा:) = सब दिव्यगुणों से युक्त (देवा:) = विद्वान् पुरुष (शं भवन्तु) = शान्ति प्राप्त कराएँ। (सरस्वती) = ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता (धीभिः) = बुद्धियों के साथ (शम् अस्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हो। २. (अभिषाच:) = उस प्रभु की ओर [अभि] अपना मेल करनेवाले (शम्) = शान्ति दें, (उ) = और (रातिषाच:) = दान के साथ मेलवाले त्यागी पुरुष (शम्) = शान्ति प्रास कराएँ । २. (नः) = हमारे लिए (दिव्या:) = द्युलोक के पदार्थ (शम्) = शान्तिकर हों। (पार्थिवा:) = पृथिवी के पदार्थ शान्तिकर हों तथा (नः) = हमारे लिए (अप्या:) = अन्तरिक्षलोक में होनेवाले पदार्थ (शम्) = शान्ति दें।
भावार्थ - हमारे लिए दिव्यवृत्तिवाले ज्ञानी पुरुष शान्ति दें। हमें विद्या व बुद्धि शान्ति दे, प्रभु के साथ मेलवाले त्यागी पुरुष शान्ति दें। दिव्य, पार्थिव व अन्तरिक्ष के पदार्थ हमारे लिए शान्तिकर हों।
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