अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 11/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं नो॑ अ॒ज एक॑पाद्दे॒वो अ॑स्तु॒ शमहि॑र्बु॒ध्न्यः शं स॑मु॒द्रः। शं नो॑ अ॒पां नपा॑त्पे॒रुर॑स्तु॒ शं नः॒ पृष्णि॑र्भवतु दे॒वगो॑पा ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। अ॒जः। एक॑ऽपात्। दे॒वः । अ॒स्तु॒। शम्। अहिः॑। बु॒ध्न्यः᳡। शम्। स॒मु॒द्रः। शम्। नः॒। अ॒पाम्। नपा॑त्। पे॒रुः। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। पृश्निः॑। भ॒व॒तु॒। दे॒वऽगो॑पा ॥११.३॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो अज एकपाद्देवो अस्तु शमहिर्बुध्न्यः शं समुद्रः। शं नो अपां नपात्पेरुरस्तु शं नः पृष्णिर्भवतु देवगोपा ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। अजः। एकऽपात्। देवः । अस्तु। शम्। अहिः। बुध्न्यः। शम्। समुद्रः। शम्। नः। अपाम्। नपात्। पेरुः। अस्तु। शम्। नः। पृश्निः। भवतु। देवऽगोपा ॥११.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
विषय - अज: एकपाद् देवः
पदार्थ -
१. (नः) = हमारे लिए (अज:) = गति के द्वारा सब बुराइयों को दूर करनेवाला (एकपात्) = अद्वितीय गतिबाला (देव:) = प्रकाशमय सूर्य (शम्) = शान्ति दे। (अहिर्बुध्य:) = अहीन बुध्नवाला-जिसका मूल नष्ट नहीं होता-ऐसा यह वायु (शम् अस्तु) = शान्तिकर हो । (समुद्रः शम्) = यह अन्तरिक्ष का समुद्र 'मेघ' शान्ति दे। २. (अपां नपात्) = प्रजाओं को न नष्ट होने देनेवाला यह (पेरु:) = पालक अग्नि [fire] (नः शम् अस्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हो। (देवगोपा) = देवों का रक्षण करनेवाली (पृश्नि:) = सब रसों का स्पर्श करनेवाली यह पृथिवी (नः शं भवतु) = हमारे लिए शान्तिकर हो। इस पृथ्वी पर जो भी व्यक्ति देववृत्ति के बनकर चलते हैं, यह पृथिवी उनका रक्षण करती ही है।
भावार्थ - 'सूर्य, वायु, मेघ, अग्नि व पृथिवी' ये सब हमारे लिए शान्तिकर हों।
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