अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
परी॒मं सोम॒मायु॑षे म॒हे श्रोत्रा॑य धत्तन। यथै॑नं ज॒रसे॑ न॒यां ज्योक्श्रोत्रेऽधि॑ जागरत्॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑। इ॒मम्। सोम॑म्। आयु॑षे। म॒हे। श्रोत्रा॑य। ध॒त्त॒न॒। यथा॑। ए॒न॒म्। ज॒रसे॑। न॒याम्। ज्योक्। श्रोत्रे॑। अधि॑। जा॒ग॒र॒त् ॥२४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
परीमं सोममायुषे महे श्रोत्राय धत्तन। यथैनं जरसे नयां ज्योक्श्रोत्रेऽधि जागरत्॥
स्वर रहित पद पाठपरि। इमम्। सोमम्। आयुषे। महे। श्रोत्राय। धत्तन। यथा। एनम्। जरसे। नयाम्। ज्योक्। श्रोत्रे। अधि। जागरत् ॥२४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 3
विषय - प्रभु-धारण व ज्ञान-प्राप्ति
पदार्थ -
१. (इमं सोमम्) = इस सौम्य [शान्त] प्रभु को आयुषे दीर्घजीवन के लिए तथा (महे श्रोत्राय) = महान् श्रवणीय ज्ञान के लिए (परिधत्तन) = अपने हृदयों में धारण करो। २. (यथा) = जिस प्रकार (एनम्) = इस प्रभु को (जरसे) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाली स्तुति के लिए (नयाम्) = प्राप्त करूँ, जिससे (ज्योक्) = दीर्घकाल तक (श्रोत्रे) = श्रवणीय ज्ञान के विषय में यह स्तोता (अधिजागरत्) = खूब जागरित रहे-अप्रमत्त रहे।
भावार्थ - हम जितना-जितना प्रभु का धारण करेंगे उतना-उतना ही वासना-विनाश द्वारा ज्ञान का धारण कर पाएँगे।
इस भाष्य को एडिट करें