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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 67

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 67/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - सूर्यः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    पश्ये॑म श॒रदः॑ श॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पश्ये॑म। श॒रदः॑। श॒तम् ॥६७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पश्येम शरदः शतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पश्येम। शरदः। शतम् ॥६७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 67; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. शतवर्षपर्यन्त हमारी देखने की शक्ति ठीक बनी रहे। २. शतवर्षपर्यन्त हमारी जीवनशक्ति ठीक बनी रहे। ३. शतवर्षपर्यन्त हमारी बोधशक्ति ठीक [mentally alert] बनी रहे। ४. हम शतवर्षपर्यन्त उत्तरोत्तर प्ररूढ़-प्रबुद्ध होते चलें। ५. हम शतवर्षपर्यन्त उत्तरोत्तर पोषण को प्राप्त करें। ६. हम शतवर्षपर्यन्त बने रहें। हमारी सत्ता विनष्ट न हो जाए। फूलें-फलें [to be prosper ous] ७. हम शतवर्षपर्यन्त शुद्ध जीवनवाले हों [to be purified]| ८. सौ वर्ष से अधिक काल तक भी इसीप्रकार हमारी शक्तियों स्थिर रहें।

    भावार्थ - प्रभु-कृपा से हम शतवर्षपर्यन्त व सौ से अधिक वर्षों तक शक्तियों को स्थिर रखते हुए समृद्ध व पवित्र जीवनवाले हों।

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